अलवर. दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीपक का खास महत्व है. भगवान राम जब सीता माता के साथ अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने तेल और घी के दीपक जलाएं थे. उसी समय से हर साल दिवाली पर दीपक जलाएं जाते हैं. लेकिन समय के साथ लोगों की सोच में बदलाव होने लगा है. लोग दीपक जलाने की जगह चाइनीस दीपक काम में लेने लगे हैं. इसका प्रभाव लाखों लोगों के व्यवसाय पर पड़ रहा है.
मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाने वाले कुम्हार को दिवाली से खासी उम्मीद रहते हैं कि मिट्टी के दीपक बिकने पर उनकी बच्चों के साथ दीपावली अच्छी मन जाएगी. लेकिन दो साल से कोरोना के चलते उन लोगों का व्यवसाय नहीं के बराबर रहा है. अब बाजार में रौनक है लेकिन लोग मिट्टी के दीपक की जगह चाइनीज दीपक ज्यादा खरीदते हैं.
इसके अलावा बाजार में सरसों के तेल के भाव आसमानों को छू रहे हैं. तेल सबसे ऊंचे स्तर पर 200 रुपये प्रति किलो के भाव को पार कर चुका है. ऐसे में लोग दीपक जलाने की जगह चाइनीज मॉम के दीपक खरीद रहे हैं. इसका सीधा प्रभाव कुम्हार पर पड़ रहा है. अलवर के कुम्हार परेशान हैं. ऐसे में उनकी दिवाली कैसे मनेगी. उनके सामने यह एक बड़ी परेशानी है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हार ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब है. सरसों के तेल के भाव 200 रुपये के करीब होने के कारण लोग दीपक खरीदने की बजाय चाइनीज आइटम खरीदने पर मजबूर हो रहे हैं. कुम्हारों को सालभर दिवाली का इंतजार रहता है. इसकी वो लोग तैयारी करते हैं. एक कुम्हार ने कहा कि उसने करीब एक हजार दीपक बनाए थे, लेकिन अभी तक एक भी नहीं बिका है. इसी तरह के सभी के हालात है. शहरी क्षेत्र में लोग फिर भी खरीददारी करते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब है.