अजमेर. पर्यटन नगरी अजमेर अपने आंवला के कारोबार के (Amla cultivation in Ajmer) लिए भी जाना जाता है. यहां के आंवले देश के कई राज्यों में जाते हैं, लेकिन अबकी आंवले की कम पैदावार ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. जिले के पुष्कर अंचल में भारी मात्रा में आंवले की पैदावार होती है, लेकिन पहली बार यहां पेड़ों में रोग लगने की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ है. ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर किसानों से बातचीत की. साथ ही इस रोग के बारे में एक्सपर्ट की राय भी जानी.
पेड़ों पर लदा आंवला किसानों के लिए उम्मीद है, लेकिन एक विचित्र रोग ने किसानों की चिंता (Gooseberry cultivation affected in Ajmer ) बढ़ा दी है. आंवले को विटामिन सी का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है. आंवला स्कीन को डिटॉक्सिफाई करता है और बालों को चमकदार के साथ ही मजबूत भी बनाता है. अजमेर में साढ़े चार सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में आंवले की खेती होती है. एक पेड़ पर सौ से डेढ़ सौ किलो के बीच आंवले की पैदावार हो जाती है. इन दिनों आंवले का सीजन भी है, लेकिन पुष्कर के कुछ इलाकों में आंवले की खेती करने वाले किसान खुश नहीं हैं.
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दरअसल, आंवले के पेड़ पर विचित्र रोग के आने से पैदावार काफी (Amla farmers upset in Ajmer) कम हो गई है. किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. किसानों को पैदावार से अधिक चिंता आंवले के उन पेड़ों की है, जिन पर यह विचित्र रोग लगा है. इन पेड़ों को फलदार बनने में एक वर्ष का समय लगता है. इस नए रोग से आंवले के पेड़ के तने और शाखाओं का छिलका सूख रहा है. जिसके कारण आंवले की पैदावार पर भी इसका असर पड़ा है. किसानों की मानें तो आंवले की साइज छोटी होती जा रही है और वह सिकुड़ रहा है.
तने और शाखाओं से छूट रही छाल: ग्राउंड जीरो पर ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की तो वाकई में आंवले के पेड़ के तने और शाखाओं से छाल सूखकर छूटती पाई गई. यहां इन पेड़ों से एक प्रकार का कीड़ा निकल रहा है, जो इन सुखी हुई छाल पर मकड़ी की तरह जाला बना रहा है. यह कीड़ा छोटे बेर के आकार का है. ऐसे में इसे गौर से देखने पर ही दिखाई देता है. वहीं, इसका रंग बिल्कुल सुखी हुई छाल की तरह है. एक बार में तो कीड़ा भी देखने पर छाल का हिस्सा लगेगा. पड़ताल में यह भी सामने आया कि आंवले के पेड़ की टहनियां भी खोखली हो रही है. यह रोग पेड़ में नीचे से ऊपर की ओर पंहुच रहा है. कई पेड़ों पर ऊपर की ओर आंवले लदे हैं, लेकिन (Seeking help from state government) नीचे की ओर उनका आकार छोटा हो गया है. यह आंवले पेड़ से अपने आप जमीन पर भी गिर रहे हैं. जिससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है.
तो इसलिए बंद हो गई अमरूद और मिर्च की खेती: ईटीवी भारत ने अलग-अलग गांवों के किसानों से बातचीत की. चावंड़िया ग्राम निवासी कृषक रूप चंद मारोठिया ने बताया कि पुष्कर में आंवले की व्यापक स्तर पर खेती होती है. आंवले के पेड़ पर विचित्र रोग लगा है, जो आंवले के पेड़ को खत्म कर रहा है. वर्षों पहले पुष्कर में अमरूद बहुत होते थे. वहीं, यहां से मिर्च पूरे देश मे जाती थी, लेकिन रोग की वजह अमरूद और मिर्च की खेती लगभग बंद हो गई. मारोठिया ने कहा कि पानी के बिना गुलाब की खेती चौपट हो चुकी है और अब आंवले में आई यह बीमारी हम किसानों को समझ में नहीं आ रही है. उन्होंने बताया कि पेड़ से आंवले के अलावा गोंद भी मिलता था, लेकिन इस बार काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
आंवले के भंडार पर रोग की मार: गनाहेड़ा क्षेत्र के किसान ताराचंद गहलोत ने बताया कि आंवले के पेड़ में इस तरह की बीमारी पहली बार आई है. पुस्तक को आंवले का भंडार कहा जाता है. उन्होंने बताया कि पुष्कर से पूरे देश में आंवले की सप्लाई होती है. औषधीय गुणों के कारण आंवले की मांग रहती है. उन्होंने बताया कि आंवले की पैदावार कम होने से किसानों को नुकसान हुआ है, लेकिन उससे बड़ी चिंता आंवले के पेड़ों की है. पेड़ों को किसानों ने वर्षों तक पाला है. गहलोत ने बताया कि हॉर्टिकल्चर विभाग और प्रशासन के माध्यम से सरकार को भी आंवले के पेड़ में आए रोग से अवगत करवाकर इसका समाधान निकालने की मांग की गई है.
150 से ज्यादा प्रोसेसिंग यूनिट: पुष्कर में आंवले की खेती के अलावा आंवले के पौधे तैयार किए जाते हैं. पुष्कर के कई गांवों में आंवले की प्रोसेसिंग यूनिट लगी हुई है. बताया जाता है कि डेढ़ सौ से ज्यादा आंवले की प्रोसेसिंग यूनिट पुस्तक क्षेत्र में हैं. आंवले को उबालकर और उसे सुखाया जाता है. उसका उपयोग आयुर्वेद की दवाइयां बनाने, आंवले का जूस बनाने में भी किया जाता है. इन प्रोसेसिंग यूनिट से कंपनियां सूखा आंवला खरीदती हैं. पुष्कर में आंवले की मंडी है. 2021 के आंकड़े देखे तो अजमेर में साढ़े चार सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में आंवले की खेती हुई थी. जिसमें करीब 845 मेट्रिक टन आंवले की पैदावार हुई थी.
आंवले की खेती पर मंडराता संकट: कोठी गांव के किसान सूरजमल दगदी ने बताया कि पीढ़ी दर पीढ़ी पुष्कर में आंवले की खेती की जा रही है. जीवन में पहली बार आंवले में इस तरह का रोग देखा है. उन्होंने बताया कि आंवले की औषधि महत्व के कारण विदेशों से भी इसकी डिमांड आ रही थी. उन्होंने बताया कि वह केवल आंवले की खेती ही नहीं, बल्कि आंवले के पौधे भी तैयार करते हैं. पुष्कर के आसपास के गांव में आंवले की कई प्रोसेसिंग यूनिट लगी हुई है, जिनमें 100 टन के लगभग खपत प्रतिदिन हो रही है. उन्होंने कहा कि आंवले के पेड़ पर आए इस रोग का उचित समाधान नहीं हुआ तो पुष्कर से आंवले की खेती लुप्त हो सकती है.
ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो पर कृषि पर्यवेक्षक विष्णु सांखला से इस रोग के बारे में बातचीत की. सांखला ने बताया कि किसानों से आंवले के पेड़ में रोग लगने की शिकायत आने के बाद कई जगहों पर जांच की गई. उन्होंने कहा कि इस वर्ष आंवले के पेड़ पर यह नई बीमारी देखी जा रही है. पेड़ की छाल सूख कर गिर रही है और छाल में जाला बन रहा है. जाल में कुछ कीड़े भी दिखाई दे रहे हैं. पेड़ की छाल पर भक्षक कीट (स्टेम बोरर) लगा हुआ है. इसके लिए किसानों को ट्रीटमेंट बताया जा रहा है.
सांखला ने बताया कि आंवले की 3 किस्में होती है. जिसमें चकइया, कृष्णा और एन ए 7 शामिल है. आंवले के पेड़ की जड़ों के लिए किसानों को ट्रीटमेंट बताया जा रहा है. इसमें थायोफेनेट मिथाइल और कार्बनडाजीम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में नाप से डालकर जड़ों में छिड़का जाता है. इसी तरह प्रोफेनोफास 50 प्रतिशत ईसी या क्युनालफोस 25 प्रतिशत ईसी दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से पेड़ पर छिड़कने से किट खत्म होंगे.