अजमेर. स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में पित्ती एक लाइलाज बीमारी है. इसे ऑटोइम्यून डिजीज भी कहा जाता है. इसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता दिन-ब-दिन कम होती जाती है. जिसके कारण व्यक्ति पित्ती रोग की समस्याओं से ग्रसित होता जाता है. हालांकि होम्योपैथिक पद्वति में पित्ती का इलाज संभव है. राजस्थान होम्योपैथिक चिकित्सा विभाग से सेवानिवृत्त उपनिदेशक डॉ. एमएस तड़ागी ने इस बीमारी के निदान से संबंधित कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए. जिस पर अमल कर इस बीमारी से मुक्ति पाई जा सकती है.
पित्ती रोग (urticaria) की समस्या इन दिनों आम हो चली है. लगातार इस रोग से ग्रसित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. डॉ. एमएस तड़ागी बताते हैं कि ऑटोइम्यून डिजीज में पित्ती एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है. उन्होंने बताया कि वर्तमान जीवन शैली में लोग फास्ट फूड, डिब्बाबंद खाने और मसालेदार भोजन का ज्यादा उपयोग करते हैं. भोजन में पौष्टिकता हो न हो, लेकिन स्वाद जरूर होना चाहिए. लोगों की इस आदत की वजह से ही कई लोगों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है. यही कारण है कि लोग पित्ती रोग के शिकार हो जाते हैं.
डॉ. तड़ागी बताते हैं कि पित्ती रोग लाइलाज बीमारी है. इस बीमारी का संपूर्ण इलाज किसी भी चिकित्सा पद्धति में नहीं है. केवल होम्योपैथिक पद्धति से रोगी में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इसे जड़ से खत्म किया जाता है. उन्होंने बताया कि जितनी पुरानी बीमारी होगी, उतना ही ठीक होने में वक्त लगता है. डॉ. तड़ागी बताते हैं कि रोगी को ठीक होने में दो से तीन माह तक का समय लग जाता है. लेकिन यदि पित्ती की तीव्रता है तो अधिक समय भी लग सकता है.
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ये हैं पित्ती के लक्षण - डॉ. तड़ागी बताते हैं कि पित्ती रोग से ग्रसित व्यक्ति के शरीर के कई हिस्सों में खुजली हो जाती है. जहां रोगी खुजलाता है, वहां लाल हो जाता है. रोगी का वही हाथ शरीर के अन्य जगह पर लगता है तो वहां भी खुजली शुरू हो जाती है. इतना ही नहीं हाथ जोर से पकड़ने पर भी त्वचा का रंग लाल हो जाता है. कई बार त्वचा पर खुजली असहनीय हो जाती है. उन्होंने बताया कि कई बार त्वचा पर छोटे बड़े उभार भी आने लगते हैं. सामान्य बोल चाल की भाषा में इसे दाफड़ भी कहा जाता है.
पित्ती होने के कारण - डॉ. तड़ागी बताते हैं कि खानपान में किसी भी खाद्य सामग्री से एलर्जी होने, दवा के रिएक्शन होने, बदलते मौसम, पाचन क्रिया कमजोर होना, पेट संबंधी बीमारियों के कारण भी पित्ती रोग होता है. इस बीमारी का मुख्य कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना है. उन्होंने बताया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है, उस कारण से महिलाओं में पित्ती अधिक होती है. महिलाओं में पित्ती रोग के कारण गायनिक समस्या भी हो सकती है.
पित्ती होने पर खाने पीने का रखे विशेष ध्यान - डॉ. तड़ागी ने बताया कि पित्ती रोग से ग्रसित रोगी के लिए खटाई जहर के समान है. रोगी को टमाटर, नींबू, दही, खट्टे फल, तेज मिर्च मसालेदार भोजन, नमक के ज्यादा उपयोग करने और आचार खाने से बचना चाहिए. जबकि रोगी को तरल पदार्थ का सेवन ज्यादा करना चाहिए. मसलन दूध, छाछ ( खट्टी नही ), गुलकोज और उबला हुआ भोजन करना चाहिए. उन्होंने बताया कि रोगी की पाचन क्रिया जितनी अच्छी होगी उतना ही रोगी को ठीक होने में सहायता मिलेगी. जल्दी ठीक होने के लिए रोगी का पेट भी साफ रहने की जरूरत है.
पित्ती से बढ़ता है तनाव - पित्ती से ग्रसित रोगी को कई बार तेज खुजली होती है तो कभी सामान्य खुजली. इस कारण रोगी में अन्य लोगों को देखकर हीन भावना बढ़ने लगती है. इलाज नहीं मिलने पर रोगी मानसिक तनाव में आ जाता है. हालांकि ये जानलेवा नहीं है, लेकिन इसकी तीव्रता होने पर रोगी की परेशानी बढ़ जाती है.