अजमेर. राजस्थान विधानसभा में लंबे समय तक विधायक रहने वालों में एक नाम गोविंद सिंह गुर्जर का भी है, जो अजमेर के नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से 7 बार चुनाव लड़े थे. 6 बार वो विधानसभा पहुंचे थे. उन्होंने पहला चुनाव 1977 में लड़ा था, तब वो हार गए थे, लेकिन इसके बाद 1980 से 2003 तक गुर्जर अपराजित रहें. यानी गुर्जर ने लगातार 6 चुनाव जीते थे. 2003 के बाद गुर्जर को यूपीए सरकार में पांडिचेरी का उपराज्यपाल भी बनाया गया था. उनके बाद कांग्रेस ने नसीराबाद सीट से उनके ममेरे भाई महेंद्र सिंह को दो बार व रामनारायण गुर्जर को एक बार टिकट दिया.
2018 के उपचुनाव में रामनारायण गुर्जर को टिकट दिया था, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की थी. प्रदेश में कांग्रेस के सियासी अतीत में गोविंद सिंह गुर्जर जाना पहचाना नाम है. गोविंद सिंह गुर्जर अपने समाज के नेता रहे हैं. अपने सहज और सरल व्यवहार से उन्होंने सभी 36 कौम का दिल जीता था. उस दौर में प्रदेश की कांग्रेस सरकार में गोविंद सिंह गुर्जर मंत्री भी रहे हैं. गोविंद सिंह गुर्जर का व्यक्तित्व सरल और सादगी पूर्ण था. यही वजह है कि आमजन का उनसे मिलना काफी आसान था. क्षेत्र के लोग गोविंद सिंह गुर्जर को बाबा के नाम से पुकारते थे. नसीराबाद क्षेत्र के विकास में गोविंद सिंह गुर्जर का विशेष योगदान रहा है. तत्कालीन समय में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक गोविंद सिंह गुर्जर की धाक थी. उनके टिकट पर कभी मंथन नहीं किया गया. उन्हें टिकट देना मतलब नसीराबाद से कांग्रेस की जीत पक्की.
गोविंद सिंह गुर्जर जब तक जीवित रहे तब तक बीजेपी के लिए नसीराबाद सीट को जीतना एक सपना ही बना रहा. गुर्जर की लोकप्रियता नसीराबाद तक ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में थी.राजस्थान में शिवचरण माथुर सरकार में गोविंद सिंह गुर्जर पहली बार मंत्री बने थे. वे नसीराबाद सैन्य छावनी में अध्यक्ष भी रहे हैं. 2003 के कार्यकाल के बाद गोविंद सिंह गुर्जर को पांडिचेरी का राज्यपाल बनाया गया था.
छह बार विधायक बने गोविंद : गोविंद सिंह गुर्जर की लोकप्रियता इस बात से साबित होती है कि वह नसीराबाद विधानसभा सीट से छह बार लगातार विधायक रहें. हालांकि, उनका पहला चुनाव 1977 में वे हार गए थे. गोविंद सिंह गुर्जर के संघर्ष के दिनों के साथी एडवोकेट अशोक जैन बताते है कि गोविंद सिंह गुर्जर के पिता का जल्द ही निधन हो गया था. उन्होंने अपने मामा घोघरा गुर्जर के पास रहकर ही दसवीं के बाद की पढ़ाई की. जैन बताते है कि गोविंद सिंह गुर्जर की रेलवे में बाबू की नौकरी लग गई थी. उन्होंने नौकरी छोड़कर वकालत की. वे उनके पास जूनियर वकील थे. वकालत करते हुए ही पहली बार 1974 के लगभग गोविंद सिंह गुर्जर ने निर्दलीय सैन्य छावनी बोर्ड का चुनाव लड़ा. गोविंद सिंह गुर्जर ने नसीराबाद सीट से कांग्रेस की टिकट पर पहली बार 1977 में चुनाव लड़ा.
उस वक्त देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल था. कांग्रेस से कोई टिकट लेने को तैयार नहीं था, तब गोविंद सिंह गुर्जर ने टिकट लिया और बहुत ही कम अंतर यानी 139 मतों से चुनाव हार गए. गोविंद सिंह गुर्जर का मुकाबला स्वतंत्र पार्टी से भंवरलाल एरोन से हुआ था. उन्होंने बताया कि इस असफलता के बाद सफलता ने गोविंद सिंह गुर्जर का हाथ कभी नहीं छोड़ा. उनकी सादगी, ईमानदारी और सरल स्वभाव से लोग उनके कायल थे.
सन 1980 से 2003 तक अपराजित रहे गुर्जर : सन 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में गोविंद सिंह गुर्जर ने भाजपा के उम्मीदवार देवी सिंह रावत को 12 हजार 688 मतों से शिकस्त दी. सन 1985 में गोविंद सिंह गुर्जर ने बीजेपी से प्रत्याशी रहे करण चौधरी को करारी शिकस्त देकर 15,728 मतों से जीत हासिल की थी. सन 1980 में गोविंद सिंह गुर्जर ने बीजेपी के उम्मीदवार हरीश चौधरी को हराया और 8928 मतों से गुर्जर ने जीत दर्ज की थी. इसी तरह सन 1993 में गुर्जर का बीजेपी के उम्मीदवार मदन सिंह रावत के साथ कड़ा मुकाबला हुआ. यहां किस्मत ने भी गोविंद सिंह गुर्जर का साथ नहीं छोड़ा. 39 मतों से गुर्जर जीत गए. सन 1998 में कांग्रेस ने गोविंद सिंह गुर्जर पर भरोसा जताया और बीजेपी के उम्मीदवार मदन सिंह रावत के सामने टिकट दिया. इस चुनाव में वो 3 हजार 175 मतों से विजयी हुए. इसी तरह सन 2003 में गोविंद सिंह गुर्जर का मुकाबला बीजेपी के मदन सिंह रावत से तीसरी बार हुआ. इस बार भी मुकाबला काफी कड़ा रहा. हालांकि गोविंद सिंह गुर्जर किस्मत के धनी निकले. 453 मतों से वो चुनाव जीत गए.
फिर ममेरे भाइयों को मिला टिकट : गोविंद सिंह गुर्जर को पांडिचेरी का उपराज्यपाल बनाकर कांग्रेस ने उन्हें सम्मान दिया. एडवोकेट अशोक जैन बताते है कि गोविंद सिंह गुर्जर के कोई औलाद नहीं थी. उनका अपने सभी रिश्तेदारों से बहुत ही अच्छा व्यवहार था. गोविंद सिंह गुर्जर के उपराज्यपाल बनाए जाने पर सन 2008 में उनके ममेरे भाई महेंद्र सिंह गुर्जर को कांग्रेस ने टिकट दिया. वहीं भाजपा ने सांवरलाल जाट को उम्मीदवार बनाया था. दोनों के बीच कड़ा मुकाबला हुआ. 71 मतों से महेंद्र सिंह गुर्जर जीत गए. सन 2013 में महेंद्र गुर्जर का मुकाबला भाजपा के सांवरलाल जाट से फिर से हुआ. इस मुकाबले में महेंद्र सिंह गुर्जर को करारी शिकस्त मिली. 28 हजार 900 मतों से सांवरलाल जाट ने शानदार जीत दर्ज की. इस चुनाव में नसीराबाद में पहली बार बीजेपी ने कांग्रेस के मजबूत गढ़ को ढहाने में सफलता पाई.
सन 2018 में कांग्रेस ने महेंद्र गुर्जर के भाई रामनारायण गुर्जर को टिकट दिया. वहीं बीजेपी ने जाट नेता और पूर्व मंत्री सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा. 16 हजार 684 मतों से लांबा जीत गए. इस चुनाव से पहले केंद्रीय राज्य मंत्री रहे सांवरलाल जाट ने अजमेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट को शिकस्त दी थी. लिहाजा नसीराबाद में उपचुनाव हुआ था. इस दौरान कांग्रेस ने रामनारायण गुर्जर और बीजेपी ने सरिता गैना को उम्मीदवार बनाया था. इस उपचुनाव में रामनारायण गुर्जर ने जीत हासिल की. उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस इस बार भी इन दोनों भाइयों में से एक को टिकट दे सकती है.
निधन के बाद भी सेवा : एडवोकेट अशोक जैन बताते है कि सन 2009 में पांडिचेरी के उपराज्यपाल रहते हुए गोविंद सिंह गुर्जर का निधन हो गया था. वे ईमानदार छवि के व्यक्ति थे. जनसेवा उनकी पहली प्राथमिकता रही है. निधन से पहले उन्होंने अपनी मां और मामा के नाम माता नारायणी देवी और घोघरा गुर्जर के नाम से ट्रस्ट बनाया और उनके पास जो कुछ भी था, वो सब ट्रस्ट के नाम कर दिया. गोविंद सिंह गुर्जर की ओर से बनाया गया ट्रस्ट आज भी कई असहाय लोगों की सहायता, गरीबों के इलाज में सहयोग, मेधावी विद्यार्थियों को प्रोत्साहन कर रहा है.