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कंधों पर अर्थी का बोझ, नीचे घुटनों तक पानी...कैसी है ये 'विकास की गंगा' - अजमेर न्यूज

कंधों पर अर्थी लिए लोगों को पानी से होकर गुजरने के दौरान अर्थी के साथ-साथ पानी में फिसल कर गिरने का डर बना रहता है. साथ ही हादसे की संभावना भी बनी रहती है.

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Published : Nov 7, 2019, 2:09 PM IST

केकड़ी (अजमेर). केकड़ी के लसाड़िया गांव के पास रंगीली के झोंपड़ा गांव के लोग गांव में किसी की भी मौत नहीं होने की प्रार्थना करते हैं. इसकी मुख्य वजह पानी है, अंतिम संस्कार के लिए घुटनों तक भरे पानी से होकर शवयात्रा निकालना पड़ता है.

कंधों पर अर्थी का बोझ, नीचे घुटनों तक पानी

क्षेत्र में सरकार की ओर से बहाई गई विकास की गंगा का यह हाल है कि जिंदा लोग तो भले ही सुविधाओं के लिए तरस ही रहे हैं, लेकिन मुर्दों को भी चिता की आग बड़ी मुश्किलों के बाद नसीब हो रही है. लोगों को करीब गले तक के पानी में से जान जोखिम में ड़ालकर ड़ाई नदी को पार कर अर्थी को जलाना पड़ता है. गले तक के पानी में से अपने कंधो पर अर्थी लेकर निकलना ग्रामीणों के लिए काफी मुश्किल भरा काम है.

यह भी पढ़ें- निकाय चुनाव 2019: पुष्कर के पवित्र सरोवर में सीवेज के पानी की आवक का मुद्दा फिर गर्माया, कांग्रेस और बीजेपी भुनाने में जुटी

ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के समय लसाड़िया और रंगीली का झोंपड़ा के बीच बनी पुलिया बह गई थी, जिसके चलते दोनों ओर से आना-जाना बंद है. रंगीली का झोंपड़ा के ग्रामीण यही प्रार्थना करते हैं कि गांव में किसी की मौत ना हो जाए. रंगीली का झोंपड़ा के नंदलाल माली पुत्र श्योजी माली की मौत हो गई थी, जिसके अंतिम संस्कार को लेकर लोगों को घुटनों तक पानी में से होकर श्मशान जाना पड़ा.

ऐसे में कंधों पर अर्थी लिए लोगों को पानी से होकर गुजरने के दौरान अर्थी के साथ-साथ पानी में फिसल कर गिरने का डर बना रहता है. साथ ही हादसे की संभावना भी बनी रहती है. मृतक के परिजनों की जान में जान तब आई, जब अर्थी लेकर श्मशान घाट पहुंच गए.

यह भी पढ़ें- नर्मदा की वितरिकाओं से पानी मांग को लेकर किसानों का प्रदर्शन, कहा- मिले पूरा पानी

इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या इस बार की बारिश के चलते ड़ाई नदी पर बनी पुलिया के क्षतिग्रस्त होने से हुई है. इस पर ग्रामीणों ने पिछले तीन माह से कई बार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा एवं प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसे हाल में ग्रामीण हमेशा भगवान से यही प्रार्थना करते हैं. कम से कम उनके यहां किसी की मौत ना हो, नहीं तो उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ेगा.

केकड़ी (अजमेर). केकड़ी के लसाड़िया गांव के पास रंगीली के झोंपड़ा गांव के लोग गांव में किसी की भी मौत नहीं होने की प्रार्थना करते हैं. इसकी मुख्य वजह पानी है, अंतिम संस्कार के लिए घुटनों तक भरे पानी से होकर शवयात्रा निकालना पड़ता है.

कंधों पर अर्थी का बोझ, नीचे घुटनों तक पानी

क्षेत्र में सरकार की ओर से बहाई गई विकास की गंगा का यह हाल है कि जिंदा लोग तो भले ही सुविधाओं के लिए तरस ही रहे हैं, लेकिन मुर्दों को भी चिता की आग बड़ी मुश्किलों के बाद नसीब हो रही है. लोगों को करीब गले तक के पानी में से जान जोखिम में ड़ालकर ड़ाई नदी को पार कर अर्थी को जलाना पड़ता है. गले तक के पानी में से अपने कंधो पर अर्थी लेकर निकलना ग्रामीणों के लिए काफी मुश्किल भरा काम है.

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ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के समय लसाड़िया और रंगीली का झोंपड़ा के बीच बनी पुलिया बह गई थी, जिसके चलते दोनों ओर से आना-जाना बंद है. रंगीली का झोंपड़ा के ग्रामीण यही प्रार्थना करते हैं कि गांव में किसी की मौत ना हो जाए. रंगीली का झोंपड़ा के नंदलाल माली पुत्र श्योजी माली की मौत हो गई थी, जिसके अंतिम संस्कार को लेकर लोगों को घुटनों तक पानी में से होकर श्मशान जाना पड़ा.

ऐसे में कंधों पर अर्थी लिए लोगों को पानी से होकर गुजरने के दौरान अर्थी के साथ-साथ पानी में फिसल कर गिरने का डर बना रहता है. साथ ही हादसे की संभावना भी बनी रहती है. मृतक के परिजनों की जान में जान तब आई, जब अर्थी लेकर श्मशान घाट पहुंच गए.

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इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या इस बार की बारिश के चलते ड़ाई नदी पर बनी पुलिया के क्षतिग्रस्त होने से हुई है. इस पर ग्रामीणों ने पिछले तीन माह से कई बार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा एवं प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसे हाल में ग्रामीण हमेशा भगवान से यही प्रार्थना करते हैं. कम से कम उनके यहां किसी की मौत ना हो, नहीं तो उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ेगा.

Intro:Body:केकड़ी-कंधों पर अर्थी का बोझ,नीचे घुटनों तक पानी।रंगीली का झौंपड़ा के ग्रामीणों को ड़ाई नदी में से होकर अर्थी लेकर जाना पड़ता है।
एंकर- केकड़ी के लसाड़िया गांव के पास रंगीली के झोंपड़ा गांव के लोग गांव में किसी की भी मौत नहीं होने की प्रार्थना करते हैं। इसकी मुख्य वजह अंतिम संस्कार के लिए घुटनों तक भरे पानी से होकर शवयात्रा निकालना पड़ता है। क्षेत्र में सरकार की और से बहाई गई विकास की गंगा का यह हाल है कि जिंदा लोग तो भले ही सुविधाओं के लिए तरस रहे है। लेकिन मुर्दों को भी चिता की आग बड़ी मुश्किलों के बाद नसीब हो रही है। लोगों को करीब गले तक के पानी में से जान जोखिम में ड़ालकर ड़ाई नदी को पार कर अर्थी को जलाना पड़ता है। गले तक के पानी में से अपने कंधो पर अर्थी लेकर निकलना ग्रामीणों के लिए काफी मुश्किल भरा काम है। ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के समय लसाड़िया व रंगीली का झौंपड़ा के बीच बनी पुलिया बह गई थी। जिसके चलते दोनो और से आना-जाना बंद है। रंगीली का झौंपड़ा के ग्रामीण यही प्रार्थना करते है कि गांव में किसी की मौत ना हो जाए। रंगीली का झौंपड़ा के नंदलाल माली पुत्र श्योजी माली की मौत हो गई थी। जिसके अंतिम संस्कार को लेकर लोगों को घुटनों तक पानी में से होकर श्मशान जाना पड़ा। ऐसे में कंधों पर अर्थी लिए लोगों को पानी से होकर गुजरने के दौरान अर्थी के साथ-साथ पानी में फिसल कर गिरने का डर बना रहा। साथ ही हादसे की संभावना बनी रही है। मृतक के परिजनों की जान में जान तब आई जब अर्थी लेकर श्मशान घाट पहुंच गए। इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या इस बार आई बारिश के चलते ड़ाई नदी पर बनी पुलिया के क्षतिग्रस्त होने से हुई है। इस पर ग्रामीणों ने पिछले तीन माह से कई बार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. रघु शर्मा एवं प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराया लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। ऐसे हाल में ग्रामीण हमेशा भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कम से कम उनके यहां किसी की मौत ना हो,नहीं तो उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ेगा।Conclusion:
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