अजमेर. जिले का प्रसिद्ध मुड्डा व्यवसाय लॉकडाउन की मार झेल रहा है. एक तरफ ट्रांसपोर्ट व्यवस्था नहीं मिलने से मुड्डे के निर्माण के लिए कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है तो वहीं बना हुआ माल भी नहीं बिक रहा है. ऐसे में मुड्डा व्यवसाय से जुड़े 2 हजार लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
अजमेर का मुड्डा व्यवसाय सबसे पुराना व्यवसाय है जो 18वीं सदी से अजमेर में संचालित हो रहा है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी मुड्डा कारोबार से जुड़े हजारों लोगों ने अपने हुनर के दम पर सिर्फ अपना ही नहीं, बल्कि मुड्डा बनाने की हस्तकला को देश-विदेश तक पहचान दिलाई है. वर्तमान में 2 हजार परिवार मुड्डा व्यवसाय से जुड़े हुए हैं.
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कभी खास चुनिंदा रईसों और रजवाड़ों के घरों में दिखने वाला मुड्डा समय के साथ आम हो गया है. अब ये मुड्डा आम घरों की रौनक बढ़ा रहा है. अजमेर के मुड्डों की राजस्थान ही नहीं, अन्य राज्यों में भी भारी डिमांड है. यही नहीं, पुष्कर आनेवाले विदेशी पर्यटक मुड्डा खरीदना नहीं भूलते हैं.
कभी चुनिंदा रईसों के घरों की शोभा बढ़ाता था मुड्डा...
राजस्थान का ह्रदय कहे जाने वाले अजमेर को ब्रिटानिया हुकूमत ने अपनी छावनी बनाया था. यहां रेल कारखाना स्थापित किया गया. अंग्रेजों की हुकूमत में जिले में कई बदलाव हुए. उस वक्त कई लोग बाहर से आकर अजमेर में बस गए. तब जंगल से लकड़ियां काटकर उसे बेचने का काम करने वाले लोगों ने मुड्डा बनाना शुरू किया. जिसके बाद उन्होंने अपने हुनर से सबको इतना आकर्षित किया कि उस दौर में मुड्डा चुनिंदा रईसों के घरों की शोभा बन गया.
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अत्याधुनिक फर्नीचर के दौर में भी इस व्यवसाय ने अपना वजूद कायम रखा है, लेकिन लॉकडाउन के बाद मुड्डा व्यवसाय की कमर टूट गई है. इससे जुड़े 2 हजार परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया.
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मुड्डा व्यवसाय से जुड़े बुजुर्ग वेणु गोपाल बताते हैं कि लॉकडाउन में कच्चा माल नहीं मिल रहा था. वहीं, लॉकडाउन खुलने के बाद भी ना कच्चा माल मिल रहा है और ना ही मुड्डे की बिक्री हो रही है.
नायलॉन की रस्सी का भी हो रहा उपयोग...
इस व्यवसाय में व्यवसायी कम और लेबर ज्यादा हैं. मुड्डे के अलावा टेबल, सोफा सेट, बेबी चेयर और मुड्डी भी बनाई जाती है. परंपरागत तरीके से बनने वाले मुड्डे में सरकंडे और मुंज का उपयोग होता है लेकिन समय के साथ मुड्डा बनाने में भी बदलाव हुआ है.
अब मूंज की कमी के कारण मुड्डा बनाने में नायलॉन की रस्सी का भी उपयोग होने लगा है. वहीं, हजार से 1500 रुपए का मुड्डा मिल जाता है. साथ ही इस हस्तकला से निर्मित सोफा सेट 7 हजार और 300 रुपए में मुड्डी मिलती है.
उधार लेकर गुजारा करने को मजबूर...
मुड्डा श्रमिक सुरेंद्र बताते हैं कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी मुड्डा व्यवसाय ठप है. पहले मुड्डा बनाकर एक श्रमिक 400 रुपए प्रतिदिन कमा लेता था लेकिन लॉकडाउन ने काम छीन लिया. अब परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो गया. आज इसे खरीदने कोई ग्राहक नहीं आ रहा है. एक अन्य श्रमिक कहते हैं कि व्यवसाय ठप हो गया. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली, उधार लेकर पेट पालने को मजबूर हैं. अगर व्यवसाय चलेगा, तभी उधार चुका पाएंगे.
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पहले का ऑर्डर भी दुकान में पड़ा...
श्रमिकों का कहना है कि पहले दिए गए आर्डर का भी माल दुकान में पड़ा है. लोग ऑर्डर लेने नहीं आ रहे हैं. पहले से बनाकर रखा गया माल भी बिक नहीं रहा है. वहीं, कुछ लोग उम्मीद के साथ कम मात्रा में मुड्डा निर्माण करने में लगे है. उन्हें उम्मीद है कि शायद एक-दो माल बिक जाए तो कुछ कमाई हो सके. व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि बड़े व्यापारियों को लोन में राहत देकर सरकार मदद कर रही है. छोटे लघु उद्योगों पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है.