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Maha Shivratri 2023 : अजमेर में हैं 4 मराठाकालीन शिवालय, श्रद्धालुओं ने अनुभव किए चमत्कार

मराठा शासन के दौरान अजमेर शहर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए (Shiva temples in Ajmer) थे. सन 1790 में अहिल्याबाई होल्कर के निर्देश पर यहां 4 प्रमुख शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया गया था. यहां जानें क्या है खास...

Shiva temples in Ajmer
अजमेर में है 4 मराठाकालीन शिवालय
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Published : Feb 18, 2023, 10:04 AM IST

Updated : Feb 18, 2023, 10:09 AM IST

अजमेर में हैं 4 मराठाकालीन शिवालय...

अजमेर. अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन के बाद अजमेर ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं. यहां मुगलिया सल्तनत का प्रभाव रहा तो मराठों ने भी अजमेर पर शासन किया. मराठों के शासन में अजमेर शहर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए थे. यह शिवलिंग जीवन की चार अवस्थाओं के अनुरूप है. इन चारों प्राचिन शिवलिंग को अजमेर के चार ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. यह चारों प्राचीन शिवलिंग अलग-अलग स्थान पर हैं और अजमेर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से हैं.

मराठाकालीन के शिवालय : अजमेर में मराठाकालीन 4 शिवालय लोगों की गहरी आस्था का केंद्र हैं. मराठा महारानी अहिल्या बाई की भगवान शंकर पर गहरी आस्था थी. उन्होंने काशी विश्वनाथ समेत कई प्रमुख शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया. उस दौर में अजमेर में भी मराठों का शासन था. सन 1790 में अहिल्याबाई होल्कर के निर्देश पर सूबेदार गोविंदराव कृष्णा ने अजमेर में यह चार प्रमुख शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया था. इन चार प्रमुख शिवालयों में एक अजमेर शहर की हृदय स्थली मदार गेट स्थित शांतेश्वर महादेव, कोतवाली थाने के नजदीक राज राजेश्वर, नया बाजार स्थित शिव बाग में अर्द्ध चंद्रेश्वर और दरगाह क्षेत्र में अंदरकोट के समीप पहाड़ी पर झरनेश्वर महादेव बिराजे हैं. यहां प्रतिदिन इन शिवालयों में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है.

मंदिर के पुजारी नरेश शुक्ला बताते हैं कि मराठा काल में स्थापित इन चार शिव मंदिरों को अजमेर के 4 ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. उन्होंने बताया कि बालस्वरूप के रूप में शांतेश्वर महादेव को माना जाता है. इसी प्रकार अंदरकोट स्थित पहाड़ी पर झरनेश्वर महादेव को युवा अवस्था के रूप में देखा जाता है. प्रौढ़ अवस्था के रूप में अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव हैं. वहीं, राजराजेश्वर महादेव को का मंदिर कोतवाली थाने के नजदीक है. राजराजेश्वर महादेव का शिवलिंग को वृद्ध के रूप में देखा जाता है.

पढ़ें: Maha Shivratri 2023 : महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में विशेष व्यवस्था, जलाभिषेक से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ

अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव के पंचमुखी शिवलिंग : अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव मंदिर और आसपास की 5 बीघा भूमि मराठों ने ताम्र पत्र के जरिए महानंद शुक्ला को सौंपी थी. महानंद शुक्ला ज्योतिषाचार्य थे. बताया जाता है कि महानंद शुक्ला का परिवार इंदौर से था. अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को अपने पुत्र की जन्म कुंडली दिखाई थी. महानंद शुक्ला ने पुत्र की अल्पायु की होना उन्हें बताया था. इस बात से नाराज अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को देश निकाला दिया था. रोजगार की तलाश में महानंद शुक्ला अजमेर आ बसे. जब अजमेर में मराठों का राज हुआ तब महानंद शुक्ला के अजमेर में होने की सूचना अहिल्याबाई होल्कर को लगी.

अहिल्याबाई होल्कर ने महारानी शुक्ला को निहाल भट्ट की उपाधि दी और सूबेदार गोविंदराव कृष्णा को अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव मंदिर समेत आसपास की 5 बीघा जमीन दी. तब से पीढ़ी दर पीढ़ी महानंद शुक्ला का परिवार मंदिर की देखरेख करता है. महानंद शुक्ला की पीढ़ियों में शामिल अरविंद शुक्ला बताते हैं कि अजमेर में मराठों के शासन में सन 1790 में अजमेर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए थे. चारों शिवलिंग की अपनी अपनी विशेषता है. उन्होंने बताया कि अर्द्धचंद्रेश्वर शिवलिंग पंच मुखी है. इसके हर मुख की भाव भंगिमाएं अलग-अलग है. मसलन किसी को कोई चेहरा मुस्कुराता दिखेगा तो कोई चेहरा उदास दिखेगा, यानी श्रद्धालुओं के भाव के अनुरूप ही शिव के इन चेहरों में दर्शन होते हैं.

पढ़ें: Maha Shivratri 2023 : क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि और क्या है महत्व ? यहां जानें

मंदिर से जुड़े श्रद्धालु और अधिवक्ता डॉ. योगेंद्र ओझा बताते हैं कि अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव में चमत्कार देखने को मिलता है. यहां शिवलिंग पर सावन में सहस्त्रधारा होती है. हजारों लीटर जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है शिवलिंग से होकर जल एक छोटी सी कुंडी में जाता है. खास बात यह है कि वह कुंडी कभी नहीं भरती है. कोई नहीं जानता कि वह जल कहां जाता है. डॉ. ओझा बताते हैं कि एक बार कुएं का जल सूख गया था. तब तत्कालीन समय में नगरपालिका से पूजा के लिए पानी मंगवाया गया था. यह पानी जब शिवलिंग पर अर्पित किया गया तो कुंडी से बाहर निकल गया. उन्होंने बताया कि अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव के शिवलिंग पर शिव बाग में ही स्थित एक कुए से परंपरागत तरीके से ही पानी लाकर पूजा की जाती है. कुएं के जल के अलावा और कोई जल यहां स्वीकार नहीं किया जाता. उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के गर्भ गृह में पुरुष के शरीर पर केवल एक धोती (बिना सिलाई वाले कपड़े) और जनेऊ धारी होना अनिवार्य है. यही वजह है कि श्रद्धालुओं के लिए गर्भ गृह के बाहर एक और शिवलिंग स्थापित किया गया है जहां श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं.

पढ़ें: कोटा में 100 साल पुराना शिव का यह मंदिर सालभर में केवल एक बार ही खुलता है, यह है कारण

श्रद्धालुओं ने अनुभव किए चमत्कार : मंदिर में आने वाले श्रद्धालु सुनील शर्मा बताते हैं कि शिवलिंग पर अर्पित जल एक छोटी सी कुंडी में आता है. इस जल का भी विशेष महत्व है. शर्मा बताते हैं कि बड़े से बड़ा चर्म रोग इस जल से मिट जाता है. वह खुद इसके प्रमाण है. उन्होंने बताया कि अर्द्ध चंद्रेश्वर में गहरी आस्था रखने वाले के सकल मनोरथ सिद्ध होते है. एक बुजुर्ग श्रद्धालु कमल बोराणा बताते हैं कि होश संभाला तब से वह मंदिर आ रहे हैं. अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

अजमेर में हैं 4 मराठाकालीन शिवालय...

अजमेर. अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन के बाद अजमेर ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं. यहां मुगलिया सल्तनत का प्रभाव रहा तो मराठों ने भी अजमेर पर शासन किया. मराठों के शासन में अजमेर शहर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए थे. यह शिवलिंग जीवन की चार अवस्थाओं के अनुरूप है. इन चारों प्राचिन शिवलिंग को अजमेर के चार ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. यह चारों प्राचीन शिवलिंग अलग-अलग स्थान पर हैं और अजमेर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से हैं.

मराठाकालीन के शिवालय : अजमेर में मराठाकालीन 4 शिवालय लोगों की गहरी आस्था का केंद्र हैं. मराठा महारानी अहिल्या बाई की भगवान शंकर पर गहरी आस्था थी. उन्होंने काशी विश्वनाथ समेत कई प्रमुख शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया. उस दौर में अजमेर में भी मराठों का शासन था. सन 1790 में अहिल्याबाई होल्कर के निर्देश पर सूबेदार गोविंदराव कृष्णा ने अजमेर में यह चार प्रमुख शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया था. इन चार प्रमुख शिवालयों में एक अजमेर शहर की हृदय स्थली मदार गेट स्थित शांतेश्वर महादेव, कोतवाली थाने के नजदीक राज राजेश्वर, नया बाजार स्थित शिव बाग में अर्द्ध चंद्रेश्वर और दरगाह क्षेत्र में अंदरकोट के समीप पहाड़ी पर झरनेश्वर महादेव बिराजे हैं. यहां प्रतिदिन इन शिवालयों में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है.

मंदिर के पुजारी नरेश शुक्ला बताते हैं कि मराठा काल में स्थापित इन चार शिव मंदिरों को अजमेर के 4 ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. उन्होंने बताया कि बालस्वरूप के रूप में शांतेश्वर महादेव को माना जाता है. इसी प्रकार अंदरकोट स्थित पहाड़ी पर झरनेश्वर महादेव को युवा अवस्था के रूप में देखा जाता है. प्रौढ़ अवस्था के रूप में अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव हैं. वहीं, राजराजेश्वर महादेव को का मंदिर कोतवाली थाने के नजदीक है. राजराजेश्वर महादेव का शिवलिंग को वृद्ध के रूप में देखा जाता है.

पढ़ें: Maha Shivratri 2023 : महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में विशेष व्यवस्था, जलाभिषेक से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ

अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव के पंचमुखी शिवलिंग : अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव मंदिर और आसपास की 5 बीघा भूमि मराठों ने ताम्र पत्र के जरिए महानंद शुक्ला को सौंपी थी. महानंद शुक्ला ज्योतिषाचार्य थे. बताया जाता है कि महानंद शुक्ला का परिवार इंदौर से था. अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को अपने पुत्र की जन्म कुंडली दिखाई थी. महानंद शुक्ला ने पुत्र की अल्पायु की होना उन्हें बताया था. इस बात से नाराज अहिल्याबाई होल्कर ने महानंद शुक्ला को देश निकाला दिया था. रोजगार की तलाश में महानंद शुक्ला अजमेर आ बसे. जब अजमेर में मराठों का राज हुआ तब महानंद शुक्ला के अजमेर में होने की सूचना अहिल्याबाई होल्कर को लगी.

अहिल्याबाई होल्कर ने महारानी शुक्ला को निहाल भट्ट की उपाधि दी और सूबेदार गोविंदराव कृष्णा को अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव मंदिर समेत आसपास की 5 बीघा जमीन दी. तब से पीढ़ी दर पीढ़ी महानंद शुक्ला का परिवार मंदिर की देखरेख करता है. महानंद शुक्ला की पीढ़ियों में शामिल अरविंद शुक्ला बताते हैं कि अजमेर में मराठों के शासन में सन 1790 में अजमेर में चार शिवलिंग स्थापित किए गए थे. चारों शिवलिंग की अपनी अपनी विशेषता है. उन्होंने बताया कि अर्द्धचंद्रेश्वर शिवलिंग पंच मुखी है. इसके हर मुख की भाव भंगिमाएं अलग-अलग है. मसलन किसी को कोई चेहरा मुस्कुराता दिखेगा तो कोई चेहरा उदास दिखेगा, यानी श्रद्धालुओं के भाव के अनुरूप ही शिव के इन चेहरों में दर्शन होते हैं.

पढ़ें: Maha Shivratri 2023 : क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि और क्या है महत्व ? यहां जानें

मंदिर से जुड़े श्रद्धालु और अधिवक्ता डॉ. योगेंद्र ओझा बताते हैं कि अर्द्धचंद्रेश्वर महादेव में चमत्कार देखने को मिलता है. यहां शिवलिंग पर सावन में सहस्त्रधारा होती है. हजारों लीटर जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है शिवलिंग से होकर जल एक छोटी सी कुंडी में जाता है. खास बात यह है कि वह कुंडी कभी नहीं भरती है. कोई नहीं जानता कि वह जल कहां जाता है. डॉ. ओझा बताते हैं कि एक बार कुएं का जल सूख गया था. तब तत्कालीन समय में नगरपालिका से पूजा के लिए पानी मंगवाया गया था. यह पानी जब शिवलिंग पर अर्पित किया गया तो कुंडी से बाहर निकल गया. उन्होंने बताया कि अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव के शिवलिंग पर शिव बाग में ही स्थित एक कुए से परंपरागत तरीके से ही पानी लाकर पूजा की जाती है. कुएं के जल के अलावा और कोई जल यहां स्वीकार नहीं किया जाता. उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के गर्भ गृह में पुरुष के शरीर पर केवल एक धोती (बिना सिलाई वाले कपड़े) और जनेऊ धारी होना अनिवार्य है. यही वजह है कि श्रद्धालुओं के लिए गर्भ गृह के बाहर एक और शिवलिंग स्थापित किया गया है जहां श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं.

पढ़ें: कोटा में 100 साल पुराना शिव का यह मंदिर सालभर में केवल एक बार ही खुलता है, यह है कारण

श्रद्धालुओं ने अनुभव किए चमत्कार : मंदिर में आने वाले श्रद्धालु सुनील शर्मा बताते हैं कि शिवलिंग पर अर्पित जल एक छोटी सी कुंडी में आता है. इस जल का भी विशेष महत्व है. शर्मा बताते हैं कि बड़े से बड़ा चर्म रोग इस जल से मिट जाता है. वह खुद इसके प्रमाण है. उन्होंने बताया कि अर्द्ध चंद्रेश्वर में गहरी आस्था रखने वाले के सकल मनोरथ सिद्ध होते है. एक बुजुर्ग श्रद्धालु कमल बोराणा बताते हैं कि होश संभाला तब से वह मंदिर आ रहे हैं. अर्द्ध चंद्रेश्वर महादेव मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

Last Updated : Feb 18, 2023, 10:09 AM IST
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