अजमेर. बाल मनोरोग कई तरह के हो सकते हैं. इनमें स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर (एसएलडी) भी काफी बच्चों में पाया जाता है. इस रोग के कई प्रकार हैं. क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से जानते हैं बच्चों में होने वाले इस बाल मनोरोग स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय.
स्कूल में बच्चा पढ़ाई या खेलकूद में कमजोर है तो उसका कारण उसकी मानसिक कमजोरी भी हो सकती है. मशहूर फिल्म अभिनेता आमिर खान की फिल्म 'तारे जमीन पर' आपने देखी होगी. इसमें एक बच्चा ईशान अवस्थी को पढ़ाई में कमजोर बताया गया है. कम मार्क्स, खाने और पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण उनके मुख्य किरदार ईशान अवस्थी को स्कूल से भी निकाल दिया जाता है. घर पर पिता उसे डांटते हैं और बोर्डिंग स्कूल भेज देते हैं. वहां भी बच्चे में सुधार नहीं आता है. साथ पढ़ने वाले बच्चे भी उसे चिढ़ाते हैं और ईशान अवसाद की ओर बढ़ने लगता है. फ़िल्म में बताया गया है कि ऐसे बच्चों की कमियों को नजरअंदाज कर बच्चे की अन्य खूबियों और हुनर को प्रोत्साहित करना चाहिए.
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विशेषज्ञों की माने तो दुनिया में ऐसे कई नामचीन लोग हैं जिनको बचपन में स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर की समस्या रही है. उसके बावजूद वे आज बेहतर मुकाम पर हैं. क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि 10 में से 3 बच्चों को एसएलडी होने की संभावना रहती है. यह अनुवांशिक हो सकती है. वहीं इसका दूसरा कारण न्यूरोलॉजिकल भी हो सकता है. मनोरोग से ग्रसित बच्चों में कुछ क्षमताओं की कमी होती है. बच्चा शारीरिक रूप से सामान्य होने के बाद भी एसएलडी की समस्या हो ग्रसित हो सकती है. 8 वर्ष तक के बच्चों में यह समस्या ठीक से पहचानी (डायग्नोज) जा सकती है. डॉ गौड़ बताती हैं कि लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में यह रोग ज्यादा पाया जाता है.
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स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर के प्रकार
डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर के कई प्रकार होते हैं. इनमें डिस्लेक्सिया, डिस्केलकुलिया, डिसग्राफिया, डिस्प्रेक्सिया आदि हैं. डॉ गौड़ ने विस्तार से इनके बारे में जानकारी देते हुए बताया कि डिस्लेक्सिया में बच्चों को पढ़ने-लिखने में दिक्कत आती है. ऐसे बच्चे स्पेलिंग मिस्टेक, वाक्य को ठीक से बोल और लिख नहीं पाते हैं. वह d को b या 6 को 9 समझते हैं. इसमें बच्चों को मिरर इमेज की समस्या होती है. वाक्य में कॉमा कहां लगाना है, कैपिटल लेटर का उपयोग कहां और कब करना है यह वे नहीं समझ पाते.
डिस्केलकुलिया में गणना संबंधी समस्या होती है. ऐसे बच्चे गणित के साइन नहीं पहचान पाते हैं. डिसग्राफिया में बच्चों को लिखने में समस्या आती है. अक्सर बच्चे टेढ़े मेढ़े शब्द लिखते हैं. वाक्य को सीधी लाइन में नहीं लिख पाते हैं. उन्हें हैंडराइटिंग में काफी दिक्कत आती है. सामान्य बच्चों की तुलना में उनके लिखने की रफ्तार भी कम होती है. डिस्प्रेक्सिया के कारण बच्चे को संतुलन बनाने में दिक्कत आती है. खेलकूद में बच्चों को कठिनाई होती है. मसलन डिस्प्रेक्सिया के शिकार बच्चे बॉल फेंकने पर कैच नहीं पकड़ पाते. ऐसे बच्चों को सही दिशा का अंदाजा नहीं होता है.
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बच्चे में आत्मविश्वास की रहती है कमी
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों को स्कूल और घर में काफी डांट सुनने को मिलती है. इससे उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी रहती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि ऐसे बच्चों का एसएलडी टेस्ट होता है. इससे पता चलता है कि एसएलडी किस प्रकार का है.
बच्चों में हुनर को पहचाने और करें प्रोत्साहित
डॉ. गौड़ कहती हैं कि एसएलडी से ग्रसित बच्चों को उनकी कमजोरी पर डांटे-फटकारने की बजाय हमें उनकी खूबियों और हुनर को पहचानना चाहिए ताकि उन खूबियों और हुनर को प्रोत्साहित किया जा सके. उन्होंने बताया कि स्पेशल एजुकेशन, ऑक्यूपेशन थेरेपी ऐसे बच्चों के लिए काफी मददगार होती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि समय पर एसएलडी का पता लगाकर मनोवैज्ञानिक की सलाह से थेरेपी एवं रेमेडीज के जरिए बच्चे में सुधार आने की संभावना बढ़ जाती है. वरना ऐसे बच्चों को स्कूलिंग में काफी दिक्कत होती है. बच्चों में हीन भावना और अवसाद की समस्या उत्पन्न होने लगती है. अभिभावक ही नहीं स्कूल संचालकों को भी ऐसे बच्चों के प्रति जागरूक होना आवश्यक है.