अजमेर. सावन के सोमवार के दिन नागपंचमी का अद्भुत संयोग है. इस विशेष दिन धर्म परायण लोग भगवान शिव की आराधना के साथ-साथ नाग का पूजन भी कर रहे हैं. जिले में तीर्थराज गुरु पुष्कर की नाग पहाड़ी की तलहटी में स्थित पंचकुंड में अति प्राचीन नाग मंदिर और नाग कुंड है. नागपंचमी के दिन सुबह से ही मंदिर में श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना के लिए आना-जाना लगा है. माना जाता है कि जिस किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष है. नागपंचमी के दिन यहां स्नान करने से इस दोष का निवारण होता है.
सावन के सोमवार को नागपंचमी का विशेष दिन है. पुष्कर में पंचकुंड में नागपंचमी का मेला लगा हुआ है. श्रद्धालुओं ने पंचकुंड में नाग कुंड में स्नान किया. उसके बाद नाग मंदिर में पूजन किया. नाग कुंड के ऊपर ही भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना की. बताया जाता है कि नागपंचमी पर नाग कुंड में स्नान के बाद नाग मंदिर में पूजन और भगवान शिव की आराधना करने पर हर मनोकामना यहां पूरी होती है.
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माना जाता है कि निसंतान दंपती के यहां आकर पूजन करने से उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है. पुष्कर में तीर्थ पुरोहित दीपक कुमार जोशी ने बताया कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष रहता है. वह काल सर्प दोष का पूजन नहीं करवा पाता है, तो वह यहां नागपंचमी पर नाग कुंड में स्नान करने के बाद काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए पूजन करवाता है. उसका दोष दूर होता है. जोशी ने बताया कि यह स्थान पंचकुंड के नाम से भी जाना जाता है. यहां पांडव भी आए थे.
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पुष्कर में दो बार यहां आकर रुके थे पांडव: पंचकुंड के पांच कुंडों का पांच पांडवों से गहरा नाता रहा है. यहां हर कुंड पांडवों के नाम से है. सबसे बड़ा कुंड युधिष्ठिर का है. इस कुंड को नाग कुंड भी कहते हैं. इसी प्रकार भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के भी अलग-अलग कुंड हैं. बताया जाता है कि नाग कुंड को छोड़कर शेष सभी कुंड पांडवों ने खुद बनाए थे. मान्यताओं के अनुसार पांडव यहां दो बार आए थे.
एक बार जब उन्हें अज्ञातवास मिला था. दूसरा महाभारत के बाद युद्ध में मारे गए सभी लोगों के लिए पिंडदान करने के उद्देश्य से वह यहां आकर रुके थे. यहां लंबे समय तक पांडव रुके थे. इसलिए उन्होंने कुंड का निर्माण किया. पांडवों ने यहां भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना की. नाग पहाड़ी में पांडेश्वर महादेव स्वंय पांडवों ने स्थापित किया था. वहीं भीम ने आदिशक्ति की आराधना की थी.
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बताया जाता है कि दूसरी बार जब पांडव पिंडदान के लिए आए, तो उनका प्रयोजन सिद्ध नहीं हो पाया. पिंडदान के लिए पांडव सोमती अमावस्या के दिन के मुहूर्त का इंतजार करते रहे. हरियाली अमावस्या जब नहीं आई, तब पांडवों ने हरियाली अमावस्या को श्राप दिया था कि वह वर्ष में कई बार आएगी. कलयुग के आगमन की चिंता में वह बिना पिंडदान किये पुष्कर से हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए.
ब्रह्मा के सृष्ठि यज्ञ के समय से है नाग कुंड: पंचकुंड स्थान का महत्व पांडवों के आने से बढ़ गया. जबकि पुराणों के अनुसार इस स्थान का महत्त्व ब्रह्मा के सृष्ठि यज्ञ के समय से है. पुष्कर के पवित्र सरोवर के वराह घाट के प्रधान पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि सृष्टि यज्ञ के तीसरे दिवस के अवसर पर जगत पिता ब्रह्मा के पौत्र ने मजाक करते हुए सरोवर में से पानी का सर्प उठाकर यज्ञ के स्थान पर फेंक दिया. इस कारण यज्ञ में सर्प के भय से भगदड़ मच गई. वहीं भृगु ऋषि जो यज्ञ में शामिल थे, वह हवन कुंड स्वाहा कर रहे थे.
भृगु ऋषि यदि यज्ञ से खड़े होते हैंए तो उन्हें प्रायश्चित करना पड़ता. वह सर्प ऋषि भृगु के गले में जाकर घूमता है. तब भृगु के पुत्र अपनी दिव्य दृष्टि से जान जाते हैं कि यह हंसी मजाक ब्रह्मा के पौत्र प्रथों ने किया है. तब ऋषि भृगु के पुत्र ने प्रथो को श्राप दिया कि वह सर्प बन जाए. यह वही स्थान है जहां पहले से कुंड बना था. जगतपिता ने प्रथो को आदेश दिया कि उस कुंड में जाकर वह निवास करे. तब से यह कुंड नाग कुंड कहलाया. उन्होंने बताया कि सृष्टि यज्ञ में शामिल होने अलग-अलग प्रजाति और स्थान से आए नागों को भी इस स्थान पर ही अपना पड़ाव डालने के लिए भगवान ब्रह्मा ने आदेश दिया था. पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि नागपंचमी के दिन यदि कोई निसंतान स्त्री फल के साथ यहां आकर नाग कुंड में स्नान करती है, तो उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.