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अजमेर की फिल्म लाइब्रेरी, बापू की आवाज और हिन्दी सिनेमा का इतिहास इसकी एक पहचान

अजमेर गंगा जमुनी संस्कृति की ही मिसाल नहीं है बल्कि यहां ऐसी बहुत सी नायाब चीजें हैं जो शहर को खास बनाती हैं (Film Library of Ajmer). राजकीय फिल्म अभिलेखागार यानी State Film Archives उनमें से ही एक है. जो गुजरे पलों को सहेजे हुए है. कई ऐसी आवाजें, ऐसी फिल्में, ऐसे पल हैं जो ऐतिहासिक है. लाइब्रेरी में 4 हजार से भी अधिक फ़िल्म रील और स्ट्रिप्स संजोकर रखी गई है.

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Published : Dec 27, 2022, 2:23 PM IST

Film Library of Ajmer
Film Library of Ajmer
अजमेर की फिल्म लाइब्रेरी

अजमेर. State Film Archives, अजमेर किसी इमारत या अभिलेखागार का नाम नहीं है (State Film Archives Ajmer) बल्कि ये एक ऐसी जगह है जिसमें गुजरा हुआ वक्त कैद कर रखा गया है. जंग ए आजादी के प्रेरक पल, बापू का वो आंदोलन उनकी सभा, आजादी के बाद देश के हालात, रुपहले परदे पर सजती फिल्में और न बहुत कुछ है जो बीत तो चुका है लेकिन बेहद inspiring और दिलों पर राज करने वाला है. यहां 1949 से लेकर 1990 तक फिल्माए गई कई विषयों की डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी हैं जो हर दौर में प्रासंगिक हैं.

हर फिल्म का अपना समय और इतिहास है. यूं कहें कि उस दौर को समझने में मदद करती है ये लाइब्रेरी तो गलत नहीं होगा. कई ऐसे फिल्म रील्स मौजूद हैं जो आज़ादी से पहले फिल्माए गए हैं. महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, भीमराव अंबेडकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सहित कई नेताओं के चलचित्र उस समय की वस्तुस्थिति को समझाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

70-80 साल पुराने रील्स को सहेजने का काम भी कम मेहनत वाला नहीं. फिल्म लाइब्रेरी के इंचार्ज वीरेंद्र सोलंकी बताते हैं कि पुरानी फिल्म की रीलों को बड़ी ही हिफाजत से रखा जाता है. हर फिल्म को दिखाने से पहले केमिकल ट्रीटमेंट देकर सफाई की जाती है फिर मशीन पर चढ़ाया जाता है (Film Library of Ajmer). फिल्म लाइब्रेरी में 5 मिनट से लेकर 20 मिनट तक की फिल्में हैं. वर्तमान में ढाई हजार के लगभग फिल्म रील देखने योग्य बची हैं. राजकीय संग्रहालय की अधीक्षक रूमा आज़म बताती हैं कि पूर्व में फिल्म लाइब्रेरी का संचालन शिक्षा विभाग की ईटी शाखा करती थी. बारिश के कारण कई फिल्में खराब हो चुकी है जो बची हैं उनका डिजिटलाइजेशन कर संरक्षण का काम हो रहा है. कोशिश यही है कि नई पीढ़ी को शिक्षाप्रद फिल्में देखने का मौका मिल सके.

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यादगार हिन्दी फिल्में- आजम ने बताया कि फिल्म लाइब्रेरी में महात्मा गांधी की बायोग्राफी है. जिसमें बापू को कई आंदोलन और सभाओं में भाग लेते देखा जा सकता है. इसमें 1949 से लेकर 1990 तक कई तरह के विषयों पर बनी डॉक्यूमेंट्री भी है. कृषि, संस्कृति, पर्यटन, मशीनरी, रेल जैसे कई मुद्दों को लेकर डॉक्यूमेंट्री यहां देखी जा सकती है. इनके अलावा भारतीय सिनेमा जगत के शुरुआती दौर की कई फिल्में भी यहां मौजूद है. उपकार, छोटा बाप, मजदूर, शहीद-ए-आजम भगत सिंह, मिलन की रात सरीखी कई फिल्मों की रील्स यहां संरक्षित हैं.

फिल्म लाइब्रेरी में दो थिएटर- राजकीय संग्रहालय की इमारत में कभी सीआईडी का दफ्तर हुआ करता था. पूरी इमारत की हालत जर्जर थी. फिर कार्यालय नए भवन में शिफ्ट किया गया. और इस इमारत का जीर्णोद्धार कराया गया. ये जगह फ़िल्म लाइब्रेरी के लिए उपलब्ध करा दी गई. फिल्मी इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यहां बहुत कुछ है. इस दो मंजिला फ़िल्म लाइब्रेरी में दो छोटे फ़िल्म थियेटर हैं. एक में डिजिटलाईज की गई फिल्मों को दिखाया जाता है तो ऊपरी तल पर बने फिल्म थिएटर में पुराने तरीके से फिल्मों को दिखाने की व्यवस्था है. दोनों फिल्म थिएटर में 16-16 लोग एक बार में बैठ सकते हैं. इसे सुविधा युक्त और खास लुक दिया गया है.

भूली बिसरी यादों का कोलाज- फ़िल्म लाइब्रेरी को भी आकर्षक लुक दिया गया है. यहां बैठकर वो देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं को निहार सकते हैं. फोटो गैलरी है. जिसमें देश के प्रमुख शहरों की 70 से 80 बरस पुरानी फोटोज चस्पा है. यह फोटोज उस दौर के भारत में लोगों के रहन सहन, धर्म संस्कृति को प्रदर्शित करता है. इसके अलावा भारतीय फिल्म जगत के शुरुआती दौर से जुड़े फिल्म अभिनेताओं की तस्वीरें भी लोगों को आकर्षित करती है. ग्राउंड फ्लोर पर फिल्म थिएटर के साथ ही शानदार रिसेप्शन है. यहां कई पुरानी फिल्मों के पोस्टर लगे है.

मामूली खर्चे पर बीते दौर की सैर!- 50 रुपए फिल्म लाइब्रेरी देखने की फीस है. रिसेप्शन पर ही टिकट की सुविधा उपलब्ध है. यहां टिकट के साथ ही एक बुकलेट भी थमाई जाती है. इसमें विभिन्न प्रकार की फिल्म और विषय और वर्ष की जानकारी दी गई है. यानी थिएटर में कौन सी फिल्म देखनी है यह देखने वाले पर निर्भर है. मामूली से खर्चे पर 1949 से लेकर 1990 तक के दौर को देखना एक बड़ी उपलब्धि है.

अजमेर की फिल्म लाइब्रेरी

अजमेर. State Film Archives, अजमेर किसी इमारत या अभिलेखागार का नाम नहीं है (State Film Archives Ajmer) बल्कि ये एक ऐसी जगह है जिसमें गुजरा हुआ वक्त कैद कर रखा गया है. जंग ए आजादी के प्रेरक पल, बापू का वो आंदोलन उनकी सभा, आजादी के बाद देश के हालात, रुपहले परदे पर सजती फिल्में और न बहुत कुछ है जो बीत तो चुका है लेकिन बेहद inspiring और दिलों पर राज करने वाला है. यहां 1949 से लेकर 1990 तक फिल्माए गई कई विषयों की डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी हैं जो हर दौर में प्रासंगिक हैं.

हर फिल्म का अपना समय और इतिहास है. यूं कहें कि उस दौर को समझने में मदद करती है ये लाइब्रेरी तो गलत नहीं होगा. कई ऐसे फिल्म रील्स मौजूद हैं जो आज़ादी से पहले फिल्माए गए हैं. महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, भीमराव अंबेडकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सहित कई नेताओं के चलचित्र उस समय की वस्तुस्थिति को समझाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

70-80 साल पुराने रील्स को सहेजने का काम भी कम मेहनत वाला नहीं. फिल्म लाइब्रेरी के इंचार्ज वीरेंद्र सोलंकी बताते हैं कि पुरानी फिल्म की रीलों को बड़ी ही हिफाजत से रखा जाता है. हर फिल्म को दिखाने से पहले केमिकल ट्रीटमेंट देकर सफाई की जाती है फिर मशीन पर चढ़ाया जाता है (Film Library of Ajmer). फिल्म लाइब्रेरी में 5 मिनट से लेकर 20 मिनट तक की फिल्में हैं. वर्तमान में ढाई हजार के लगभग फिल्म रील देखने योग्य बची हैं. राजकीय संग्रहालय की अधीक्षक रूमा आज़म बताती हैं कि पूर्व में फिल्म लाइब्रेरी का संचालन शिक्षा विभाग की ईटी शाखा करती थी. बारिश के कारण कई फिल्में खराब हो चुकी है जो बची हैं उनका डिजिटलाइजेशन कर संरक्षण का काम हो रहा है. कोशिश यही है कि नई पीढ़ी को शिक्षाप्रद फिल्में देखने का मौका मिल सके.

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यादगार हिन्दी फिल्में- आजम ने बताया कि फिल्म लाइब्रेरी में महात्मा गांधी की बायोग्राफी है. जिसमें बापू को कई आंदोलन और सभाओं में भाग लेते देखा जा सकता है. इसमें 1949 से लेकर 1990 तक कई तरह के विषयों पर बनी डॉक्यूमेंट्री भी है. कृषि, संस्कृति, पर्यटन, मशीनरी, रेल जैसे कई मुद्दों को लेकर डॉक्यूमेंट्री यहां देखी जा सकती है. इनके अलावा भारतीय सिनेमा जगत के शुरुआती दौर की कई फिल्में भी यहां मौजूद है. उपकार, छोटा बाप, मजदूर, शहीद-ए-आजम भगत सिंह, मिलन की रात सरीखी कई फिल्मों की रील्स यहां संरक्षित हैं.

फिल्म लाइब्रेरी में दो थिएटर- राजकीय संग्रहालय की इमारत में कभी सीआईडी का दफ्तर हुआ करता था. पूरी इमारत की हालत जर्जर थी. फिर कार्यालय नए भवन में शिफ्ट किया गया. और इस इमारत का जीर्णोद्धार कराया गया. ये जगह फ़िल्म लाइब्रेरी के लिए उपलब्ध करा दी गई. फिल्मी इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यहां बहुत कुछ है. इस दो मंजिला फ़िल्म लाइब्रेरी में दो छोटे फ़िल्म थियेटर हैं. एक में डिजिटलाईज की गई फिल्मों को दिखाया जाता है तो ऊपरी तल पर बने फिल्म थिएटर में पुराने तरीके से फिल्मों को दिखाने की व्यवस्था है. दोनों फिल्म थिएटर में 16-16 लोग एक बार में बैठ सकते हैं. इसे सुविधा युक्त और खास लुक दिया गया है.

भूली बिसरी यादों का कोलाज- फ़िल्म लाइब्रेरी को भी आकर्षक लुक दिया गया है. यहां बैठकर वो देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं को निहार सकते हैं. फोटो गैलरी है. जिसमें देश के प्रमुख शहरों की 70 से 80 बरस पुरानी फोटोज चस्पा है. यह फोटोज उस दौर के भारत में लोगों के रहन सहन, धर्म संस्कृति को प्रदर्शित करता है. इसके अलावा भारतीय फिल्म जगत के शुरुआती दौर से जुड़े फिल्म अभिनेताओं की तस्वीरें भी लोगों को आकर्षित करती है. ग्राउंड फ्लोर पर फिल्म थिएटर के साथ ही शानदार रिसेप्शन है. यहां कई पुरानी फिल्मों के पोस्टर लगे है.

मामूली खर्चे पर बीते दौर की सैर!- 50 रुपए फिल्म लाइब्रेरी देखने की फीस है. रिसेप्शन पर ही टिकट की सुविधा उपलब्ध है. यहां टिकट के साथ ही एक बुकलेट भी थमाई जाती है. इसमें विभिन्न प्रकार की फिल्म और विषय और वर्ष की जानकारी दी गई है. यानी थिएटर में कौन सी फिल्म देखनी है यह देखने वाले पर निर्भर है. मामूली से खर्चे पर 1949 से लेकर 1990 तक के दौर को देखना एक बड़ी उपलब्धि है.

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