अजमेर. अजमेर जिले के ब्यावर कस्बे में 1871 से बादशाह की सवारी निकालने की परंपरा आज भी शानो शौकत के साथ निभाई जाती है. होली के दूसरे दिन यानी 8 मार्च को बादशाह टोडरमल की सवारी धूमधाम से निकाली जाएगी. बादशाह की सवारी के लिए इंतजाम भी जोर शोर से किए जा रहे हैं. यूं तो अजमेर नगर निगम की ओर से भी बादशाह की सवारी निकाली जाती है. लेकिन ब्यावर में निकलने वाली बादशाह की सवारी की बात ही कुछ और है. लाखों की संख्या में लोग बादशाह की सवारी देखने और उनसे खर्ची पाने के लिए उमड़ते हैं. बादशाह से मिलने वाली खर्ची (लाल गुलाल की पुड़िया) को आमजन और व्यापारी अपने गल्ले और तिजोरी में रखते हैं. मान्यता है कि बादशाह से मिली खर्ची को पूजने पर धंधे में बरकत होती है.
देशभर में बादशाह की सवारी केवल ब्यावर में ही निकाली जाती है. सन 1871 में पहली बार बादशाह की सवारी निकालने की परंपरा ब्यावर में शुरू हुई थी. बादशाह की सवारी के दिन ब्यावर में विशाल मेला आयोजित होता है. पर्यटन विभाग में बादशाह की सवारी का मेला बकायदा रजिस्टर्ड है. ब्यावर या अजमेर जिले से ही नहीं बल्कि 100 किलोमीटर के दायरे से लोग बादशाह की सवारी देखने के लिए ब्यावर आते हैं. ब्यावर के बादशाह मेले की ख्याति विदेशों तक पहुंच चुकी है. विदेशी पर्यटक भी बादशाह की सवारी देखने के लिए ब्यावर आते हैं. धुलंडी के दूसरे दिन ब्यावर में शानो शौकत के साथ बादशाह की शाही सवारी निकाली जाती है. बादशाह की सवारी के आगे बीरबल भी नाचते गाते दिखाई देते हैं. ब्यावर के सुप्रसिद्ध बादशाह की सवारी के पीछे दिलचस्प कहानी भी है.
जानिए कौन है बादशाह - अकबर के नवरत्नों में से एक रत्न टोडरमल अग्रवाल थे. एक बार बादशाह अकबर जंगल में शिकार खेलने के लिए गए जहां पर डाकुओं ने उन्हें घेर लिया. इस दौरान टोडरमल अग्रवाल ने अपनी वाक चातुर्यता से बादशाह अकबर की जान बचाई थी. इससे बादशाह अकबर टोडरमल से बहुत खुश हुआ. उसने टोडरमल अग्रवाल को ढाई दिन की बादशाहत सौंप दी. बताया जाता है कि ढाई दिन की बादशाहत के दौरान टोडरमल अग्रवाल नगर में अपनी सवारी निकालते और गरीबों में खूब अशरफियां लुटाते. उनकी सवारी के आगे बीरबल भी चला करते थे. टोडरमल ने बादशाह अकबर का खजाना जमकर गरीबों में लुटाया. उसी को याद करते हुए ब्यावर में बादशाह की सवारी निकालने की परंपरा शुरू हुई.
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अग्रवाल समाज बादशाह की सवारी निकालने की जिम्मेदारी उठाता है. टोडरमल अग्रवाल समाज का ही व्यक्ति बनता है. वहीं ब्राह्मण समाज के व्यक्ति को बीरबल बनाया जाता है. माहेश्वरी समाज के लोग बादशाह और उनके वजीर को सजाने का जिम्मा उठाते हैं. जैन समाज बादशाह की सवारी में शामिल लोगों के लिए ठंडाई का इंतजाम करता है. वहीं मुस्लिम और अन्य समाज के लोग बादशाह की सवारी पर गुलाल उड़ाते हैं. बादशाह की सवारी में शामिल होने और मेले का आनंद लेने के लिए काफी भीड़ एकत्रित रहती है.
सद्भाव का प्रतीक बन चुकी है बादशाह की सवारी - 8 मार्च को ब्यावर में इस बार 172 वीं बादशाह की सवारी निकाली जाएगी. इतने ही वर्षों से बादशाह की सवारी में विभिन्न जातियों खासतौर पर मुस्लिम समाज का भी सहयोग रहता है. बादशाह की सवारी सद्भाव और कौमी एकता का प्रतीक बन चुकी है. वर्षों से अलग-अलग समाज और धर्म के लोग बादशाह की सवारी पर अपना सहयोग और योगदान देते आए हैं. यही वजह है कि बादशाह की सवारी के लिए घर-घर में तैयारी की जा रही है.
3 टन उड़ाई जाती है गुलाल - बादशाह की सवारी में 3 टन गुलाल उड़ाई जाती है. गुलाल का रंग केवल लाल होता है, अन्य रंग की गुलाल पर रोक रहती है. बताया जाता है कि लाल रंग की गुलाल की पुड़िया को बादशाह टोडरमल लुटाता है. सवारी के पूरे मार्ग में बादशाह करीब 1 लाख से भी अधिक लाल गुलाल की पुड़िया आमजन पर डालते है. जिस किसी भी शख्स को बादशाह से लाल गुलाल की पुड़िया मिलती है, वह अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है. लोग बादशाह से मिली गुलाल को अशर्फी समझकर अपने गल्ले या तिजोरी में संभाल कर रखते हैं. इसको लक्ष्मी मानकर पूजा जाता है. बादशाह की सवारी के दौरान इतनी गुलाल ब्यावर में उड़ाई जाती है कि हर तरफ केवल लाल रंग ही नजर आता है. लोग भी लाल रंग की गुलाल से सराबोर नजर आते हैं.
बादशाह एसडीएम को देते हैं फरमान - अंग्रेजों के जमाने में भी बादशाह की सवारी उतनी ही शानो शौकत के साथ ब्यावर में निकाली जाती थी. ब्यावर के संस्थापक ब्रिटिश कर्नल डिक्सन ने आदेश जारी कर राजकोष से बादशाह की सवारी के आयोजन के लिए नजराना पेश करने का आदेश दिया था. नगर में बादशाह की सवारी जब एसडीएम कार्यालय के बाहर पहुंचती है तो गुलाल फेंक कर पहले युद्ध होता है. उसके बाद बादशाह एसडीएम फरमान देते हैं, इस फरमान को एसडीएम पढ़कर सुनाते हैं. फरमान में नगर की समस्याएं होती हैं, उसके निराकरण के लिए एसडीएम आश्वासन देते हैं. उसके बाद बादशाह की सवारी आगे बढ़ती है.
12 हजार लीटर से भी अधिक बंटती है ठंडाई - बादशाह की सवारी के शुरू होने से पहले लोगों में जमकर ठंडाई वितरित की जाती है. इस ठंडाई में भांग होती है, आबकारी विभाग की ओर से ठंडाई के लिए भांग की व्यवस्था करवाई जाती है. ठंडाई पीने के लिए भी लोगों में काफी उत्साह रहता है.