अजमेर. खून की कमी होना एक आम बीमारी बन चुकी है. लेकिन इस बीमारी को हल्के में लेना घातक हो सकता है. बच्चों और महिलाओं में खून की कमी व्यस्क पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होती है. वहीं, वृद्धजन में भी खून की कमी हो सकती है, लेकिन इसका कारण अन्य बीमारी भी हो सकती है. आज भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग संतुलित आहार नहीं ले पाते हैं. अनियमित दिनचर्या और बिगड़ती जीवनशैली खून की कमी का कारण बनती है. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग अजमेर जोन के उपनिदेशक डॉ. इंदरजीत सिंह बताते हैं कि परिवार में खानपान को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. केवल पेट भरना यह काफी नहीं है. संतुलित आहार नहीं मिल पाना एनीमिया का सबसे बड़ा कारण है.
संतुलित आहार के अभाव में शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की कमी के साथ-साथ लौह तत्व की कमी भी हो जाती है. लौह तत्व की शरीर में कमी को ही एनीमिया कहा जाता है. शुरुआत में शरीर में कम होती रक्त की मात्रा का पता नहीं चलता है. वहीं, लोग भी इस ओर अधिक ध्यान नहीं देते हैं. जिसकी वजह से गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर अधिक होने का बड़ा कारण खून की कमी होना ही है. वहीं, 15 से 49 वर्ष तक पुरुषों में 25 प्रतिशत खून की कमी पाई जाती है. बात करें 15 से 49 आयु वर्ग की 57 प्रतिशत लड़कियों और महिलाओं में खून की कमी होती है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019 से 21 के आंकड़े बताते हैं कि 64 प्रतिशत शहरी और 68 प्रतिशत ग्रामीण बच्चे एनेमिक पाए जाते हैं.
टीनएजर बच्चियों का ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत - डॉ. सिंह बताते हैं कि टीनएजर बच्चियों में एनीमिया की शिकायत ज्यादा पाई जाती है. उनमें खून की कमी बरकरार रहना आगे चलकर घातक साबित हो सकती है. बच्चियों के व्यस्क होने के बाद उनका विवाह होता है. विवाह के उपरांत गर्भावस्था होती है. ऐसे में माता में खून की कमी की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन कम हो सकता है. प्रसव के दौरान खून की कमी मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों को बढ़ा देती है. ऐसे में बच्चियों के स्वास्थ्य को लेकर माता-पिता को पूरा ध्यान रखना चाहिए. बच्चियों को संतुलित आहार मिलना चाहिए ताकि उन में खून की कमी ना हो और आगे चलकर वह स्वस्थ जीवन जी सकें.
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खून की कमी के ये हैं लक्षण - डॉ. इंद्रजीत सिंह बताते हैं कि एनीमिया का इलाज संभव है. बशर्ते की इलाज समय पर कराया जा सके. खैर, आज एनीमिया आम बीमारी बन चुकी है. उन्होंने बताया कि एनीमिक रोगी को जल्द थकान महसूस होती है. थोड़ा सा चलने पर सांस फूलने लगती है. आंख, होंठ और हाथ के नाखून सफेद पड़ने लगते हैं. रोगी को आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है और चक्कर आने की भी शिकायत रहती है. इसके अलावा बच्चों में पेट के कीड़े होना भी खून की कमी का कारण हो सकता है. डॉ. सिंह बताते हैं कि यह लक्षण प्रतीत होने पर रोगी को अपने नजदीक स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर हिमोग्लोबिन की जांच करवानी चाहिए.
उन्होंने बताया कि एक स्वस्थ व्यक्ति में 11 से 14 मिलीग्राम हिमोग्लोबिन होना चाहिए. इससे कम होने पर चिकित्सक के परामर्श से हिमोग्लोबिन की कमी को दूर करने की दवाइयां रोगी ले सकते हैं. इन दवाइयों के नियमित सेवन के साथ साथ संतुलित आहार लेने से रोगी में खून की कमी दूर हो जाती है. उन्होंने बताया कि यदि रोगी की हिमोग्लोबिन जांच में 7 मिलीग्राम से कम पाया गया तो रोगी को खून चढ़ाया जाता है. डॉ. सिंह ने बताया कि खून की कमी को पूरा करने के लिए फल और सब्जियों का नियमित सेवन करना जरूरी है.
एनीमिया मुक्त कार्यक्रम - केंद्र और राज्य सरकार की ओर से एनीमिया मुक्त कार्यक्रम चलाए जाते हैं. राजस्थान सरकार ने एनीमिया मुक्त राजस्थान कार्यक्रम चला रखा है. बच्चों के पेट में कीड़े की समस्या के लिए वर्ष में दो बार कार्यक्रम चलाए जाते हैं इसके तहत आंगनबाड़ी और सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को एल्बेंडाजोल दवा का सेवन करवाया जाता है. कार्यक्रम के तहत एएनएम घर घर जाकर भी बच्चों को दवाई खिलाकर आती है. बच्चों को एनीमिया से बचाने के लिए आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूलों में सप्ताह में दो बार टेबलेट वितरित की जाती है. गुलाबी टेबलेट छोटे बच्चों के लिए होती है जबकि 15 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों और व्यस्त लोगों के लिए ब्लू टेबलेट सेवन के लिए दी जाती है. 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए आंगनबाड़ियों में आयरन सिरप वितरित की जाती है.
एनीमिया के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी - एनीमिया के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण है. खासकर गरीब तबके के लोगों को एनीमिया के बारे में कम ही जानकारी है. यही वजह है कि एनीमिया रोगियों की संख्या देश की आबादी का कुल 59 प्रतिशत से भी अधिक है. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से एनीमिया मुक्त कार्यक्रम चलाए जाते हैं लेकिन इनका व्यापक प्रचार-प्रसार और मॉनिटरिंग नहीं होने की वजह से यह कार्यक्रम उतने कारगर नहीं हो पाते हैं. सरकारी स्कूलों में आयरन की दवाइयां पड़ी रह जाती है.
खास बात यह है कि कार्यक्रम के तहत सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी के बच्चों को ही टेबलेट और सिरप वितरित की जाती है. जबकि प्राइवेट स्कूल के संचालक भी यदि विद्यार्थियों के लिए अपने जिले के सीएमएचओ या ब्लॉक सीएमएचओ से आयरन की दवा की डिमांड कर सकते हैं. इसके लिए सीएमएचओ कार्यालय की एक टीम स्कूल जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग करेगी और बच्चों के एनीमिक होने पर उन्हें दवा दी जाएगी.