अजमेर. प्रदेश में भगवान शिव के कई चमत्कारी मंदिर हैं. इनमें से एक है नाग पहाड़ियों पर स्थित भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर, जो सदियों से बिना नींव के खड़ा है. उत्तराखंड में भगवान नीलकंठ महादेव के मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है. इसी प्रकार से पुष्कर में इस अति प्राचीन मंदिर में भी सावन माह में पूजा-अर्चना करने के लिए आसपास के भक्त पहुंचते हैं. मान्यता है कि मंदिर यहीं पर छोड़ने के लिए महर्षि गौतम ने रावण को अपनी योग शक्ति से मजबूर किया था.
जगत पिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर तीर्थराज गुरु के नाम से विख्यात है. पुष्कर की नाग पहाड़ी पर कई महर्षि और ऋषियों की तपोस्थली है. ऐसी ही एक तपोस्थली नाग पहाड़ी पर महर्षि गौतम की है, जहां भगवान नीलकंठ महादेव का अति प्राचीन अनूठा मंदिर है. इस मंदिर के नीचे शुरुआत नहीं मचकुंड है. उल्टे हाथ की ओर जंगल की ओर पथरीला मार्ग जाता है. कुछ दूर तक दुपहिया वाहन चले जाते हैं, लेकिन आगे का सफर पैदल ही तय करना होता है. थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ी की चढ़ाई चढ़नी होती है. 10 मिनट पैदल चलने के बाद भगवा रंग की दीवार नजर आती है. इस दीवार की बगल से सीढ़ियां ऊपर की ओर जाती हैं.
परिवार के साथ विराजमान नीलकंठ : 10 से 15 सीढ़ियां चढ़ने पर सीधे हाथ की तरफ पानी से भरा हुआ एक छोटा कुंड नजर आता है. इस कुंड के दूसरे छोर पर पहाड़ी है. गौर से देखेंगे तो कुंड में जल गोमुख से आता है. गोमुख के ठीक सामने ऊपर की ओर अन्नपूर्णा माता का मंदिर है. श्रद्धालु यहां दर्शन करके आगे बढ़ जाते हैं. यहां से आगे बढ़ने पर नीलकंठ महादेव का मंदिर सामने ही नजर आता है. पहाड़ी की तलहटी और घना जंगल स्थान को शांत और मनोहरम बनाता है. मंदिर के भीतर पहुचने पर गर्भगृह में नीलकंठ महादेव का शिवलिंग स्थित है. यहां भगवान नीलकंठ अपने परिवार के साथ विराजमान हैं.
भगवान नीलकंठ महादेव का अनूठा मंदिर : ऋषि मुनियों की तपोस्थली में भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर आज भी अपने प्राकृतिक रूप में है. मंदिर के महंत ठाकुरदास बताते हैं कि पदम पुराण में भगवान नीलकंठ महादेव मंदिर और गोमुख के अलावा भीमा माता मंदिर का भी उल्लेख है. उन्होंने बताया कि भीमा माता का नाम दुर्गा चालीसा में भी आता है. महंत ठाकुर दास बताते हैं कि सतयुग के महर्षि गौतम इस स्थान पर तप किया करते थे. एक दिन रावण भगवान नीलकंठ महादेव के मंदिर को हवा में ले जाता हुआ उन्हें नजर आया. महर्षि गौतम ने अपने योग सिद्धि से मंदिर को नीचे उतारने की कोशिश की, लेकिन रावण भी कम नहीं था. रावण मंदिर लेकर आगे तो नहीं बढ़ पा रहा था, लेकिन नीचे भी नहीं आ रहा था.
मंदिर की सुरक्षा की चिंता हुई : इसपर महर्षि गौतम ने रावण की परछाई को अपने योग सिद्धि से खींचा तब रावण भी साथ धरती पर आ गया. रावण ने महर्षि गौतम से कहा कि वह मंदिर को यथा स्थान वापस छोड़ आएगा. महर्षि गौतम ने कहा कि मंदिर को यहीं पर रहने दिया जाए. उनका तप पूर्ण होने जा रहा है. ऐसे में महादेव को जल चढ़ाना उनके लिए सुविधाजनक रहेगा. इसपर रावण ने मंदिर को धरती पर रख दिया. मंदिर रखने के बाद रावण को मंदिर की सुरक्षा को लेकर चिंता हुई और उसने कहा कि मंदिर की नींव नहीं होने के कारण यह जल्द ही ध्वस्त हो सकता है. तब महर्षि गौतम ने कहा कि यह मंदिर तुम्हारे और मेरी शक्ति से चिरकाल तक ऐसे ही रहेगा. इसके बाद से यह नीलकंठ महादेव का मंदिर बिना नींव का ही है.
द्वापर युग में पांडव आए थे यहां : महंत ठाकुर दास बताते हैं कि महाभारत के बाद युद्ध में मारे गए सभी लोगों के पिंड दान करने के उद्देश्य से पांडव कई महीनों तक नाग पहाड़ी पर रहे थे. पांडवों ने पहले पंचकुंड बनाएं. यहां रहकर पांडवों ने सोमवती अमावस्या का इंतजार किया था. इस बीच पांडव नीलकंठ महादेव के मंदिर भी आए थे. सर्वप्रथम अर्जुन और भीम यहां पहुंचे थे. भगवान नीलकंठ महादेव के मंदिर के आसपास में जल नहीं था, इस कारण अर्जुन ने बाण मारकर इस स्थान पर गंगा को प्रकट किया. यह स्थान गोमुख के नाम से विख्यात है. बताया जाता है कि घोर अकाल के वक्त भी गोमुख से जल आना कभी बंद नहीं हुआ. उन्होंने बताया कि भीम ने यहां पर माता शक्ति को प्रसन्न करने के लिए तप किया था. इससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें यहां दर्शन दिए थे, इसलिए यह स्थान भीमा माता के नाम से भी विख्यात है.
परिवार में सुख समृद्धि का वास : महादेव का यह अनूठा और पवित्र स्थान के बारे में पुष्कर वासी ही जानते हैं. बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान नीलकंठ महादेव के इस मंदिर के बारे में जानकारी नहीं होती है. स्थानीय निवासी राजेंद्र महावर बताते हैं कि वह 20 वर्ष से नित्य पूजा अर्चना के लिए यहां आते हैं. उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब ग्रह अनुकूल नहीं थे तब किसी पंडित के कहने पर पहली बार वो नीलकंठ महादेव के मंदिर गए थे. इसके बाद से जीवन में हर बाधा और कष्ट दूर हो गए. यहां शिवलिंग पर जल अर्पित करने से परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है. उनका दावा है कि मंदिर पर लगे पत्थर, इस पूरे पहाड़ के पत्थरों से भिन्न हैं.
तनाव और कष्ठ होते हैं दूर : मंदिर आए श्रद्धालु सूरज बताते हैं कि भगवान नीलकंठ महादेव के अति प्राचीन मंदिर आने से मन को शांति मिलती है. वह बचपन में अपने माता पिता के साथ भगवान नीलकंठ महादेव के मंदिर आया करते थे. मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से मनोकामना सिद्ध होती है. सच्ची आस्था है तो गोमुख के जल को पीने से बड़ी से बड़ी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं. श्रद्धालु अनीता बताती हैं कि वह 3 वर्ष पहले मंदिर आई थी, तब से नीलकंठ महादेव मंदिर से उनका रिश्ता जुड़ गया है.