प्रियांक शर्मा-अजमेर. राजस्थान का अजयमेरू यानी अजमेर धार्मिक रूप से विश्व पटल पर अपनी विशेष पहचान अजमेर शरीफ दरगाह और पुष्कर के ब्रह्मा जी मंदिर के रूप में रखता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये जिला मार्बल के कारोबार के लिए खास तौर पर जाना जाता है. इस मार्बल मंडी में हर दिन करीब 15 करोड़ का कारोबार (Turnover of Kishangarh) होता है और एक लाख लोगों को रोजगार मिलता है.
अजमेर का किशनगढ़ मार्बल मंडी (Kishangarh marble mandi) के लिए प्रसिद्ध है. इसे एशिया की सबसे बड़ी मार्बल मंडी (Asia largest marble market) के नाम से भी जाना जाता है. चिप्स और क्रेजी की छोटी यूनिट से हजारों रुपए से शुरू हुआ ये कारोबार अपने शिखर पर है. आज किशनगढ़ मार्बल मंडी (Kishangarh marble mandi) अजमेर जिले की आर्थिक रूप से रीढ़ बनकर खड़ा हुआ है. इस मंडी से राज्य सरकार भी करोड़ों रुपए का राजस्व अर्जित कर रही है. समय के साथ तमाम चुनौतियों का सामना करने के बाद भी इस कारोबार के जरिए हर दिन 1 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है.
एनएच 8 बना वरदान, 50 साल पहले शुरू हुआ कारोबारः अजमेर जिले में मार्बल सिटी किशनगढ़ (Marble City Kishangarh) एनएच-8 पर स्थित है. यही इसके लिए सबसे बड़ा वरदान भी साबित हुआ है. देश और दुनिया में नागौर जिले के मकराना का मार्बल काफी प्रसिद्ध (World Famous marble of kishangarh) है. मकराना का मार्बल महंगा होने की वजह से हर कोई उसे खरीद नही पाता था. लिहाजा किशनगढ़ में 50 बरस पहले क्रेजी और चिप्स की छोटे स्तर की यूनिट लगाकर इस कारोबार की शुरुआत आर के मार्बल के संस्थापक अशोक पाटनी ने की थी. एनएच 8 मार्बल मंडी के लिए वरदान साबित हुआ. यहां से मकराना की कनेक्टिविटी होने से किशनगढ़ में व्यापार (Turnover of Kishangarh) को पंख लग गए.
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डिमांड के साथ बढ़ा कारोबारः क्रेजी और चिप्स की डिमांड (demand of kishangarh marble) बढ़ने लगी तब कई लोगों ने किसानों से जमीन खरीद कर छोटे स्तर पर यूनिट लगाना शुरू कर दिया. साथ ही लोगों ने मार्बल के गोदाम भी बनाने शुरू कर दिए. किशनगढ़ मार्बल मंडी का आज के समय में इतना विस्तार हो चुका है कि एक दिन में इससे देख पाना मुमकिन नहीं है. किशनगढ़ मार्बल मंडी से देश के कई राज्यों में मार्बल जाता है. इतना ही नहीं विदेशों में भी किशनगढ़ के मार्बल की अपनी धाक है. किशनगढ़ मार्बल मंडी एसोसिएशन में लंबे समय तक अध्यक्ष रहे सुरेश टांक मार्बल व्यवसायी हैं. वर्तमान में किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी है. टांक बताते है कि किशनगढ़ के लोग पुरुषार्थी हैं और उन्होंने अपनी मेहनत से किशनगढ़ को मार्बल सिटी के रूप में खड़ा किया है.
मार्बल सिटी बनाने में आरके मार्बल का बड़ा योगदान : एमएलए सुरेश टांक बताते हैं कि आर के मार्बल के निदेशक अशोक पाटनी और उनके भाइयों का किशनगढ़ को मार्बल सिटी के रूप में एशिया की सबसे बड़ी मंडी बनाने में विशेष योगदान है. आर के मार्बल ने ही किशनगढ़ में क्रेजी और चिप्स से कारोबार की शुरुआत की. बाद में उनकी मोरवड में स्थित माइंस में उच्च क्वालिटी का मार्बल निकलने के बाद से उन्होंने किशनगढ़ में मार्बल व्यवसाय की भी शुरुआत की. उन्होंने खनन में निकले मार्बल को खरीदने और व्यापार खड़ा करने के लिए लोगों को प्रेरित भी किया.
किशनगढ़ को ऐसे मिली पहचानः टांक ने बताया कि मार्बल मंडी (Kishangarh marble mandi) एनएच 8 पर स्थित होने के कारण मकराना से किशनगढ़ की कनेक्टिविटी थी. देश के कोने कोने से व्यापारी मकराना मार्बल खरीदने के लिए आया करते थे. इनमें से ज्यादातर व्यापारी किशनगढ़ में रुका करते थे. धीरे-धीरे किशनगढ़ में मार्बल के गोदाम, गैंगसा यूनिट खुलते गए और व्यापार तेजी से बढ़ने लगा. टांक बताते हैं कि किशनगढ़ में मार्बल मंडी एसोसिएशन की समस्याओं एवं मूलभूत सुविधाओं को बढाने को लेकर भी आर के मार्बल सदैव तत्पर रहे.
किशनगढ़ में एयरपोर्ट लाने को लेकर भी आर के मार्बल के निदेशक अशोक पाटनी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उन्होंने बताया कि जब लोग एयरपोर्ट आने के बावजूद हवाई यात्रा नहीं करते थे, तब आर के मार्बल के निदेशक अशोक पाटनी के आग्रह पर किशनगढ़ मार्बल मंडी एसोसिएशन ने हवाई जहाज में यात्रा करने वाले प्रत्येक यात्री के टिकट पर 1000 रुपए का अनुदान देना चालू किया. यही वजह है कि किशनगढ़ का एयरपोर्ट अब क्रियाशील है. टांक ने कहा कि किशनगढ़ में मार्बल मंडी स्थापित करने में आर के मार्बल परिवार का विशेष योगदान रहा है. उन्होंने बताया कि आर के मार्बल का मार्बल प्रोडक्शन में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है.
मंडी से एक लाख लोगों को मिलता है रोजगारः मार्बल मंडी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश टांक ने बताया कि किशनगढ़ मार्बल मंडी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 1 लाख से भी अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. यहां केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से आकर भी लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी को किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन भी कुछ हद तक उठा रहा है. उन्होंने बताया कि लेबर, ट्रांसपोर्ट, हैंडीक्राफ्ट सहित सैकड़ों तरह के छोटे बड़े व्यापार किशनगढ़ मार्बल सिटी की वजह से पनप रहे हैं.
हर दिन 500 गाड़ी मार्बल जाता हैः सुरेश टांक ने बताया कि किशनगढ़ मार्बल मंडी से प्रतिदिन 500 गाड़ियां मार्बल की लोड होकर देश के अन्य राज्यों में जाती है. साथ ही हर दिन करीब 15 करोड़ का कारोबार मंडी में होता है. उन्होंने बताया कि समय के साथ अब ग्रेनाइट की भी किशनगढ़ बड़ी मंडी बन चुकी है.
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मार्बल मंडी से हुआ किशनगढ़ का विस्तार और विकासः 50 बरस पहले किशनगढ छोटा सा कस्बा हुआ करता था. मगर मार्बल मंडी पनपने के साथ ही किशनगढ़ कस्बे का भी विस्तार तेजी से हुआ है. जिले की सारी सुविधाएं किशनगढ़ कस्बे में उपलब्ध है. मार्बल मंडी की वजह से हजारों की संख्या में लेबर अन्य राज्यों से किशनगढ़ में आकर रहती है. वर्षों से चले आ रहे मार्बल के व्यापार में काम करते हुए कई लोग यहीं बस गए हैं.
चुनौतियों से लड़ रहा है मार्बल व्यवसायः सुरेश टांक ने बताया कि किशनगढ़ मार्बल मंडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्टिफिशियल मटेरियल और विट्रीफाइड टाइल्स से मिल रही है. लेकिन मुझे नही लगता कि प्राकृतिक रूप से मिलने वाले मार्बल और ग्रेनाइट के व्यापार में कोई निराशा और हताशा है. टांक ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार को मार्बल और ग्रेनाइट के कारोबार पर विशेष छूट देनी चाहिए. उन्होंने बताया कि वर्तमान में 18 प्रतिशत जीएसटी मार्बल और ग्रेनाइट की खरीद पर है. केंद्र सरकार यदि मार्बल और ग्रेनाइट से 6 प्रतिशत जीएसटी भी कम करती है, तो इस व्यवसाय को बड़ा फायदा होगा. यह केंद्र और राज्य सरकार को करोड़ो रुपये की रॉयल्टी और जीएसटी देने वाला उद्योग है. उन्होंने कहा कि माइनिंग एरिया को विस्तार देने में सरकार को छूट प्रदान करनी चाहिए. साथ ही रॉयल्टी की दरें भी कम करके उद्योग को राहत देनी चाहिए.
मार्बल कारोबारी जयेंद्र तिवाड़ी बताते हैं कि कई क्षेत्रों से मार्बल का कच्चा माल किशनगढ़ लाया जाता है और यहां प्रोसेसिंग कर डिमांड अनुसार अन्य राज्यों में भेजा जाता है. इटली का मार्बल भी किशनगढ़ मार्बल मंडी में आता है, जिसे प्रोसेसिंग करके अन्य राज्यों और विदेशों में भी भेजा जाता है. उन्होंने बताया कि 2 वर्ष कोरोना काल मार्बल कारोबार के लिए अच्छा नहीं रहा. मार्बल व्यवसाई की कमर टूट चुकी है. मार्बल पर 18 प्रतिशत जीएसटी है. जीएसटी कम होने से कारोबारियों को राहत मिलेगी. साथ ही सरकार को मार्बल व्यवसाई को प्रोत्साहन देने के लिए बिजली की दरों में कमी करने सहित कुछ राहत भरे कदम उठाने चाहिए.
मार्बल कारोबारी शशिकांत पाटोदिया ने बताया कि पंजाब, हरियाणा उत्तराखंड, दिल्ली और दक्षिण की तरफ भी कई राज्यों में मार्बल किशनगढ़ मंडी से जाता है. उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक से ग्रेनाइट का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है. पाटोदिया बताते हैं कि व्यापार में जीएसटी की मार है. मार्बल कारोबार में 25 से 30 हजार श्रमिक जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि कस्टमर मार्बल और ग्रेनाइट पर लगी 18 प्रतिशत जीएसटी को वहन नहीं कर पाता है. इसलिए मार्बल और ग्रेनाइट कारोबार में मंदी है. मार्बल व्यवसाई 3 वर्षों से सरकार से मार्बल और ग्रेनाइट कारोबार से जीएसटी कम करने की मांग कर रहे हैं.