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ख्वाजा गरीब नवाज का 809वां उर्स: साल 1928 से भीलवाड़ा का ये परिवार कर रहा है झंडे की रस्म अदा

राजस्थान के भीलवाड़ा शहर से लाल मोहम्मद गौरी का परिवार बीते कई दशकों से ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म को अदा करता आ रहा है. गरीब नवाज के उर्स की विधिवत शुरआत झंडे की रस्म से ही होती है.

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ख्वाजा गरीब नवाज का 809 वां उर्स : 1928 से भीलवाड़ा का ये परिवार कर रहा है झंडे की रस्म को अदा
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Published : Feb 9, 2021, 1:45 PM IST

अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज के 809वां उर्स की शुरुआत आज झंडे की रस्म के साथ शुरू हो चुकी है. भीलवाड़ा के परिवार ने पेश किया झंडा ख्वाजा मोईनुद्दीन हशन चिश्ती का सलाना 809वें उर्स की शुरुआत झंडे की रस्म के साथ शुरू हो चुकी है.

ख्वाजा गरीब नवाज का 809 वां उर्स : 1928 से भीलवाड़ा का ये परिवार कर रहा है झंडे की रस्म को अदा

झंडे का जुलुस असर की नमाज के बाद गरीब नवाज गेस्ट हाउस गाजे-बाजे के साथ रवाना हुआ. जिसमे दरगाह के शाही चोकी के कव्वाल असरार हुसैन कव्वालियों गाते हुए जुलुस के साथ लंगरखाना गली, निजाम गेट, होते हुए जुलुस दरगाह के मुख्य द्वार निजाम गेट पहुँचा. निजाम गेट से जैसे ही झंडे ने अंदर प्रवेश किया उस दौरान अकीदतमंदों में एक अजीब सी होड़ मच गयी हर किसी की मन्नत होती है उस झंडे को एक बार चूमे.

यह भी पढ़ें: आर्म्स एक्ट मामला : वकील की दलील- सलमान ने जानबूझकर नहीं बोला झूठ, अब फैसला 11 को

कब से निभाई जा रही है परम्परा

भीलवाड़ा से आये गौरी परिवार के अनुसार यह परम्परा काफी अरसे से चली आ रही है 1928 से फखरुद्दीन गौरी के पीरो मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह झंडे की रस्म अदा करते थे. इसके बाद 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौपी गयी उनके इंतकाल के बाद 1991 से पुत्र मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और वर्ष 2007 से फखरुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे हैं.

बताया जाता है की वर्षो पहले झंडे की रस्मशुरू हुई तब बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया गया झंडा आस-पास के गांवो तक नजर आता था. उस वक्त मकान छोटे - छोटे और बुलंद दरवाजा काफी दूर से नजर आता था. इस दरवाजे पर झंडा देखकर ही लोग समझ जाते थे की पांच दिन बाद गरीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है यह सन्देश एक से दूसरे तक दूर- दूर तक पहुँच जाता था.

अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज के 809वां उर्स की शुरुआत आज झंडे की रस्म के साथ शुरू हो चुकी है. भीलवाड़ा के परिवार ने पेश किया झंडा ख्वाजा मोईनुद्दीन हशन चिश्ती का सलाना 809वें उर्स की शुरुआत झंडे की रस्म के साथ शुरू हो चुकी है.

ख्वाजा गरीब नवाज का 809 वां उर्स : 1928 से भीलवाड़ा का ये परिवार कर रहा है झंडे की रस्म को अदा

झंडे का जुलुस असर की नमाज के बाद गरीब नवाज गेस्ट हाउस गाजे-बाजे के साथ रवाना हुआ. जिसमे दरगाह के शाही चोकी के कव्वाल असरार हुसैन कव्वालियों गाते हुए जुलुस के साथ लंगरखाना गली, निजाम गेट, होते हुए जुलुस दरगाह के मुख्य द्वार निजाम गेट पहुँचा. निजाम गेट से जैसे ही झंडे ने अंदर प्रवेश किया उस दौरान अकीदतमंदों में एक अजीब सी होड़ मच गयी हर किसी की मन्नत होती है उस झंडे को एक बार चूमे.

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कब से निभाई जा रही है परम्परा

भीलवाड़ा से आये गौरी परिवार के अनुसार यह परम्परा काफी अरसे से चली आ रही है 1928 से फखरुद्दीन गौरी के पीरो मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह झंडे की रस्म अदा करते थे. इसके बाद 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौपी गयी उनके इंतकाल के बाद 1991 से पुत्र मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और वर्ष 2007 से फखरुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे हैं.

बताया जाता है की वर्षो पहले झंडे की रस्मशुरू हुई तब बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया गया झंडा आस-पास के गांवो तक नजर आता था. उस वक्त मकान छोटे - छोटे और बुलंद दरवाजा काफी दूर से नजर आता था. इस दरवाजे पर झंडा देखकर ही लोग समझ जाते थे की पांच दिन बाद गरीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है यह सन्देश एक से दूसरे तक दूर- दूर तक पहुँच जाता था.

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