जयपुर. 3 साल में भारत में स्पोर्ट्स बढ़ा है, लेकिन अभी भारत को लंबा रास्ता तय करना है. अभी यूरोप में मिलने वाली सुविधाओं और कंपटीशन एक्सपोजर से तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन आशा है कि एशियन गेम्स में मिला मेडल नए द्वार खोलते हुए, नए रास्ते बनाएगा और अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा. ये कहना है एशियन गेम्स में घुड़सवारी में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं दिव्यकृति सिंह का. बुधवार को अपने होमटाउन पहुंचीं दिव्यकृति का शहर भर में भव्य स्वागत किया गया. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत के साथ अपनी जर्नी और एक्सपीरियंस शेयर किया.
14 वर्षीय डेनिश घोड़ा एड्रेनालाईन को अपना बेस्ट फ्रेंड मानने वाली दिव्यकृति का मानना है कि उनके घोड़े ने ही उन्हें एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने में मदद की. पिंक सिटी की गोल्डन गर्ल दिव्यकृति ने बताया कि जब उन्होंने घुड़सवारी शुरू की तभी से एशियन गेम्स में जाने का सपना था. एशियन गेम्स में सलेक्ट होना और देश को रिप्रेजेंट करना अपने आप में एक खुशी का अवसर था और गोल्ड जितना तो सोने पर सुहागा था.
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उन्होंने बताया कि उनकी टीम अंडर 25 आयुवर्ग की थी. इस जर्नी को लेकर वो सालों से मेहनत कर रहे थे. वो खुद 3 साल यूरोप में रहीं, जहां कई सारे इंटरनेशनल कंपटीशन में भारत को रिप्रेजेंट किया और दुनिया के बेस्ट एथलीट्स से प्रतियोगिता कर अनुभव लिया. चीन में जो रिजल्ट रहा, वहां तक आने के लिए एक लंबी जर्नी रही और ये सबसे खास अनुभव रहा कि विदेशी सरजमीं चीन में भारत का राष्ट्र गान सुना और भारत का तिरंगा ऊपर जाते हुए देखा. ये स्पेशल फीलिंग थी, जिसे वे कभी नहीं भूलेंगी.
दिव्यकृति ने बताया कि इस खेल में अपने घोड़े के साथ बॉन्ड बनाना बेहद जरूरी है. घोड़ों के पास अपना दिमाग और व्यक्तित्व होता है, इसलिए वो हर दिन सुबह की शुरुआत घोड़ों को खाना खिलाने और साफ-सफाई से करती थीं. रात में चाहे कितनी भी थकी हों, अपने घोड़े की निगरानी जरूरी करती थीं. इसी से उनका अपने घोड़े के साथ बॉन्डिंग बनी. वहीं, दिव्यकृति ने बताया कि इस खेल से जुड़ने और मार्गदर्शन देने में उनके परिवार और कोच इंजा हैनसेन की बड़ी भूमिका रही है.
दिव्यकृति ने बताया कि उन्होंने घुड़सवारी भारत में शुरू की. उनके स्कूल में गेम्स कंपलसरी था और घुड़सवारी एक ऑप्शन था. इसे भारत में ही शुरू किया और जिस तरह सभी राइडर शुरू करते हैं, वहीं से उन्होंने शुरुआत की. पहले जूनियर नेशनल फिर लोकल हॉर्स शो से लेवल अप करती गईं. सीनियर नेशनल भी भारत में ही खेला और उसके बाद बाहर जाने का फैसला लिया, क्योंकि जब 3 साल पहले यूरोप गईं, तब तक भारत में सुविधा नहीं थी और अभी भी भारत को लंबा रास्ता तय करना है.
उन्होंने कहा कि एशियाई गेम्स शुरुआत है. उनका लक्ष्य 2026 में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप, 2026 में ही होने वाले एशियाई गेम्स और उसके बाद 2028 में ओलंपिक रहेगा, जिसकी वो तैयारी कर रही हैं. आपको बता दें कि भारतीय ड्रेसाज टीम ने हाल ही में आयोजित 19वें एशियन गेम्स में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा. ये उपलब्धि इंडियन इक्वेस्ट्रियन खेलों के लिए खास इसलिए भी रही, क्योंकि आखिरी बार भारत ने एशियन गेम्स में ड्रेसाज में 1986 में कांस्य पदक जीता था. इस मेडल ने करीब 4 दशक का सूखा खत्म किया.