कोलंबो : श्रीलंका में चुनाव कर्मचारी चुनाव कार्य में व्यस्त हैं. यहां होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिकॉर्ड 35 उम्मीदवार खड़े हैं. पूर्व रक्षा सचिव गोटाबाया राजपक्षे चुनाव जीतने की उम्मीद कर रहे हैं. पांच साल पहले उनके भाई महिंदा राजपक्षे चुनाव हार गए थे. राष्ट्रपति के चुनाव में करीब 1.6 करोड़ लोग वोटर हैं.
राजपक्षे ने कहा है कि श्रीलंका में अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और संप्रुभता को लेकर कई समस्याएं हैं. हमारे पास इसका निदान करने की विशेष नीति है. उम्मीद है कि हम इसे जरूर लागू करेंगे.
गौरतलब है कि 2009 में राजपक्षे ने एलटीटीई को समाप्त करने के मुद्दे पर खूब लोकप्रिता पाई थी. हालांकि कुछ लोग उन पर मानवाधिकार हनन के भी आरोप लगाते रहे हैं. उनका आरोप है कि उन्होंने प्रचार के दौरान विरोधियों का दमन किया था. उनकी दोहरी नागरिकता पर भी सवाल उठे थे.
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राजपक्षे को चुनौती देने वाले साजिथ प्रेमदासा यूएनपी के उपनेता हैं. प्रधानमंत्री रानिल विक्रम सिंघे द्वारा लगातार उपेक्षित होने के बाद उन्हें फिर से नामित किया गया है. प्रेमदासा ने ग्रामीण समुदायों के लिए लंबे समय तक काम किया है. हालांकि, यह देखना होगा कि वे वोटर को अपनी ओर आकर्षित कर पाते हैं या नहीं.
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राजपक्षे के मुकाबले में खड़े राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सजिथ प्रेमदासा ने कहा है, 'मैं यहां पर तेजी से विकास का कार्य करना चाहता हूं. इसके लिए मैं जल्दीबाजी में हूं. मैं चाहता हूं कि विकास का फल सबको मिले, ना कि किसी खास परिवार को.'
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निवर्तमान राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना दोबारा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. ईस्टर संडे की घटना से उन्हें बहुत अधिक धक्का लगा. इस हमले में 250 से अधिक लोग मारे गए थे. उन्होंने खुद घोषणा कर दी थी कि वे राष्ट्रपति पद की रेस से बाहर हो रहे हैं.
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बता दें कि ईस्टर हमले की जवाबदेही इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली थी. इसके बाद राजपक्षे के प्रति समर्थन बढ़ने लगा. माना जाता है कि राजपक्षे सिंहला समर्थक राष्ट्रवादी सोच रखते हैं.
गौर करने की बात ये है कि समय बदलने के साथ-साथ श्रीलंका के बहुत सारे नागरिकों के लिए प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं. पिछला राष्ट्रपति चुनाव परिवर्तन लाने के लिए लड़ा गया था. मानवाधिकार का मुद्दा काफी अहम था. विशेषज्ञ कहते हैं कि इस बार ऐसा नहीं है.
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श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में पिछले सभी चुनावों के मुकाबले सबसे अधिक उम्मीदवार मैदान में हैं. हालांकि, सबसे अधिक फोकस राजपक्षे और प्रेमदासा पर है. दोनों का कहना है कि वादों के टूटने पर जनता के बीच असंतोष है. ऐसे में सत्ता में बैठे लोगों को कीमत चुकानी पड़ सकती है. इन सबके बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदान में इसकी झलक मिलती है या नहीं.