उदयपुर. मल्लातलाई की रहने वाली फरजाना के 2002 में दाम्पत्य सूत्र में बंधने के साथ ही उसकी जिंदगी बदल-सी गई. एक गृहणी के रूप में अपने परिजनों का खयाल रखना, तमाम रिश्ते-नाते निभाना, वहीं दूसरी ओर घर से बाहर निकलकर एक कामकाजी महिला के रूप में अपने करियर को भी एक नई दिशा देना, ये वाकई काबिले तारीफ है.
शादी के चार साल बाद ही फरजाना छिपा ने नाथद्वारा में एक शिक्षिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की ओर लगातार तरक्की करती रहीं. 2012 में एक स्कूल की साझेदार बन गईं, लेकिन एक हादसे ने उनसे सारी खुशियां, कामयाबी छीन लिया. खाना बनाते हुए वे 80 फीसदी तक झुलस गईं और डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया, लेकिन परिवार और पति ने साथ नहीं छोड़ा. इस हादसे से उभरने में उन्हें पूरे तीन साल लगे. इस बीच साझेदारी खत्म हो गई और उन्हें फिर से शुरुआत करनी पड़ी.
गिरकर उठना उठकर चलना, यह क्रम है संसार का...
'कर्मवीर को फर्क नहीं पड़ता किसी जीत या हार का', इस मंत्र को मानने वाली फरजाना ने 2015 में फिर से शिक्षिका के रूप में करियर शुरू किया. इस दौरान एक एकेडमी परिवार ने उनका साथ निभाया. पिछले साल जब कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को रोक दिया तो बहुप्रतिभाशाली फरजाना ने घर से लोगों को जागरूक करने के लिए पोस्टर बनाए, मेहंदी प्रतियोगिता आयोजित की और लोगों को महामारी के प्रति जागरूक किया. उनके कार्य को आम लोगों के साथ ही प्रशासन ने भी सराहा और उन्हें पंचायतों में DRG बनाकर जागरूकता अभियान की कमान सौंपी.
पढ़ें : जमीनी स्तर पर संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन और अधिक सख्ती करें: अशोक गहलोत
इसी बीच वे भारतीय महिला अत्याचार विरोधी मोर्चा की प्रदेश प्रमुख भी बनीं. उनकी ख्याति बढ़ती गई और उनके कार्यों से प्रभावित यूरोपियन रोमन अध्ययन और अनुसंधान बेलग्रेड ने डॉक्टर की मानद उपाधि प्रदान की. आने वाले समय में वे स्किल इंडिया के तहत प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने वाली हैं.
बाहर एक नौकरीपेशा औरत के रूप में तथा घर में गृहिणी की भूमिका में आज कामयाब डॉ. फरजाना अपनी उत्कृष्टता व उत्तरदायित्व दोनों को बखूबी निभा रही हैं. वे नाथद्वारा नगर ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विश्व में नारी शक्ति का एक उदाहरण बनकर उभरी हैं.