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'नई शिक्षा नीति' को लेकर उदयपुर के शिक्षाविदों का सुझाव, कहा- बिना English नहीं चलेगा काम - etv bharat news

केंद्र की मोदी सरकार ने 34 साल बाद देश की शिक्षा नीति को बदलाव किए हैं. अब देश में नई शिक्षा नीति के आधार पर छात्रों को तालीम दी जाएगी. जहां कुछ लोग सरकार की इस नई नीति की जमकर तारीफ कर रहे हैं तो कुछ लोग अभी इसमें पुनर्विचार की बात कह रहे हैं. पेश है इस पर एक रिपोर्ट...

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बिना English नहीं चलेगा काम
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Published : Aug 7, 2020, 9:13 PM IST

उदयपुर. 34 साल के लंबे अंतराल के बाद देश की शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर अब 'शिक्षा मंत्रालय' कर दिया गया है. वहीं, नई शिक्षा नीति में 10+2 के फॉर्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. इतना ही नहीं, कक्षा 5 तक अंग्रेजी के बिना अध्ययन की भी नई शिक्षा नीति में बात कही गई है. साथ ही शिक्षा के बजट को 4 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी करने का प्रावधान भी रखा गया है.

बिना English नहीं चलेगा काम

इस तरह के कई बदलावों के साथ देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया है. इस नीति में बहुभाषावाद और भाषा की शक्ति पर खास जोर दिया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस परिवर्तन के बाद बच्चों के लिए पढ़ाई की राह थोड़ी आसान होगी. हालांकि, नई शिक्षा नीति को लेकर बहुत से लोग नाखुश भी नजर आ रहे हैं.

पढ़ें- Special: सीकर में जारी है कोरोना से जंग, रिकवरी रेट 84 प्रतिशत, Positive मामले भी कम

उनका कहना है कि एक लंबे समय बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन तो किया गया है, लेकिन अब भी शिक्षा की मूल भावना को नहीं समझा गया. हमारे देश में शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसमें जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, वह अब भी कम है. हमें हर वर्ग तक शिक्षा पहुंचानी है. सभी तक सरल एवं समान शिक्षा पहुंचाने के लिए हमें इसके बजट में भी इजाफा लाना होगा.

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शिक्षाविदों ने सरकार को दिया सुझाव

हमारे देश की पहली शिक्षा नीति बनाने वाले प्रोफेसर दौलत सिंह कोठारी के शहर उदयपुर के शिक्षाविद डॉक्टर गिरिराज सिंह चौहान का कहना है कि सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति में कुछ बदलाव तो सराहनीय है. लेकिन अंग्रेजी भाषा को प्रारंभिक शिक्षा से दूर करने की जो सरकार की मंशा है, वह छात्रों के लिए सही नहीं रहेगी.

वहीं, प्रोफेसर संजय लोढा का मानना है कि सरकार अपने अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में कई परिवर्तन करती है, लेकिन उसे सर्वप्रथम अपने सिस्टम में भी परिवर्तन की जरूरत है. हमारे देश में मातृभाषा में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब तक कई कोर्स शुरू नहीं हो पाई, जिनमें डॉक्टरी, इंजीनियरिंग जैसे कोर्स भी शामिल है. ऐसे में सर्वप्रथम सरकार को मूल बदलाव करना चाहिए था, उसके बाद इस नीति को लागू करना चाहिए था.

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लंबे समय बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन

पढ़ें- Special: मानसून आया पर अच्छी बारिश की बाट जोह रहे किसान, अब तक नहीं हुई बुवाई

कुल मिलाकर कहा जाए तो सरकार द्वारा जो नई शिक्षा नीति लागू की गई है, उसको लेकर उदयपुर के शिक्षाविद मानते हैं कि इस नीति को धरातल पर लागू होने में अभी वक्त लगेगा. साथ ही इसमें अभी भी कुछ महत्वपूर्ण बदलाव होने चाहिए, ताकि इसका दूरगामी परिणाम शिक्षा के क्षेत्र में सही साबित हो.

उदयपुर. 34 साल के लंबे अंतराल के बाद देश की शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर अब 'शिक्षा मंत्रालय' कर दिया गया है. वहीं, नई शिक्षा नीति में 10+2 के फॉर्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. इतना ही नहीं, कक्षा 5 तक अंग्रेजी के बिना अध्ययन की भी नई शिक्षा नीति में बात कही गई है. साथ ही शिक्षा के बजट को 4 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी करने का प्रावधान भी रखा गया है.

बिना English नहीं चलेगा काम

इस तरह के कई बदलावों के साथ देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया है. इस नीति में बहुभाषावाद और भाषा की शक्ति पर खास जोर दिया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस परिवर्तन के बाद बच्चों के लिए पढ़ाई की राह थोड़ी आसान होगी. हालांकि, नई शिक्षा नीति को लेकर बहुत से लोग नाखुश भी नजर आ रहे हैं.

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उनका कहना है कि एक लंबे समय बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन तो किया गया है, लेकिन अब भी शिक्षा की मूल भावना को नहीं समझा गया. हमारे देश में शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसमें जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, वह अब भी कम है. हमें हर वर्ग तक शिक्षा पहुंचानी है. सभी तक सरल एवं समान शिक्षा पहुंचाने के लिए हमें इसके बजट में भी इजाफा लाना होगा.

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शिक्षाविदों ने सरकार को दिया सुझाव

हमारे देश की पहली शिक्षा नीति बनाने वाले प्रोफेसर दौलत सिंह कोठारी के शहर उदयपुर के शिक्षाविद डॉक्टर गिरिराज सिंह चौहान का कहना है कि सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति में कुछ बदलाव तो सराहनीय है. लेकिन अंग्रेजी भाषा को प्रारंभिक शिक्षा से दूर करने की जो सरकार की मंशा है, वह छात्रों के लिए सही नहीं रहेगी.

वहीं, प्रोफेसर संजय लोढा का मानना है कि सरकार अपने अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में कई परिवर्तन करती है, लेकिन उसे सर्वप्रथम अपने सिस्टम में भी परिवर्तन की जरूरत है. हमारे देश में मातृभाषा में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब तक कई कोर्स शुरू नहीं हो पाई, जिनमें डॉक्टरी, इंजीनियरिंग जैसे कोर्स भी शामिल है. ऐसे में सर्वप्रथम सरकार को मूल बदलाव करना चाहिए था, उसके बाद इस नीति को लागू करना चाहिए था.

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लंबे समय बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन

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कुल मिलाकर कहा जाए तो सरकार द्वारा जो नई शिक्षा नीति लागू की गई है, उसको लेकर उदयपुर के शिक्षाविद मानते हैं कि इस नीति को धरातल पर लागू होने में अभी वक्त लगेगा. साथ ही इसमें अभी भी कुछ महत्वपूर्ण बदलाव होने चाहिए, ताकि इसका दूरगामी परिणाम शिक्षा के क्षेत्र में सही साबित हो.

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