उदयपुर. 83 साल की सविता द्विवेदी (Savita jiji of Udaipur) ने उम्र को अपनी शख्सियत पर हावी नहीं होने दिया. हाथों में पेन पकड़ा तो भावनाओं को उड़ेल डाला. ऐसी तस्वीरें बनाई जिसे देखते ही मुंह से दाद निकलती है. भगवान शिव, विष्णु कथा कभी कोरे कागज पर सजीव हो उठती है तो कभी सब्जीवाला, पनिहारिन, कभी टेम्पो चलाता चालक और उसके ठीक पीछे से गुजरती महिला बोलती सी प्रतीत होती है. सविता जीजी के नाम से मशहूर ये बड़ी सी कलाकार उन सबको प्रेरणा देती हैं जो उनके हमउम्र हैं.
खास बात ये है कि कोरे कागज पर आड़ी तिरछी लाइन को सटीक आकार देने वाली, रंगों का चयन करने वाली और फिर उनमें बड़ी सफाई से रंग भरने वाली जीजी (83 year old Artist In Udaipur) ने इससे पहले कभी पेन पेंसिल को हाथ तक नहीं लगाया यानी जीजी पढ़ी लिखी नहीं हैं. आखिर कैसे जीजी ने सोचा कि लोकरंग को कागज पर सहेजा जाए? इस सवाल के जवाब में कहती हैं- बस खुद को Busy रखने के लिए सब कुछ किया. उस दौर में जब सब घरों में कैद थे. एक दूसरे की सुध लेने में हिचक रहे थे मिलना मिलाना कम हो गया था तब कागज और पेन का सहारा लिया. जीजी यहां कोरोना काल में लगे लॉकडाउन की बात करती हैं.
बेटे से मांगी डायरी और पेन: जीजी ने सफर का आगाज बेटे से अपनी ख्वाहिश जाहिर कर किया. हुकुम सुनाया कि मां को डायरी और पेन दिया जाए. प्रोफेसर बेटे ने मां की ख्वाहिश का सम्मान किया और फिर तो जीजी ने जो किया उसे दुनिया सलाम करती है. जज्बातों को पेपर पर उड़ेल दिया. तभी तो आज वो चर्चा की विषय बनी हैं. विपरीत परिस्थितियों में भी सविता जीजी ने अपनी कल्पना को चित्रकला के माध्यम से कागजों पर आकार दिया. प्रधानमंत्री मोदी के लोकल फॉर वोकल से प्रभावित होकर उन्होंने कोरोना लॉकडाउन पीरियड में 200 के करीब चित्र बनाएं. जिन्हें बच्चों ने बड़ों ने और बुजुर्गों ने पसंद किया. हौसला बढ़ा तो तस्वीरों का नया संसार बस गया. ख्याति बढ़ी और फिर जो कभी नहीं सोचा था वो हुआ. जीजी के चित्रों की प्रदर्शनी लगी. इस छोटे से अर्से में ही कई सम्मान हासिल कर लिए. उनके 67 चित्र उदयपुर के टखमण में प्रदर्शित किए गए हैं.
गुणों की खान हैं सविता जीजी: जीजी चित्रों में जीवन का रंग भरती हैं. ये रंग जो 8 दशक में अपने इर्द गिर्द देखे. बताती हैं कि प्रेरणा तो वो उमड़ते घुमड़ते बादल थे जिन्हें बचपन से देखती आईं. हैरानी होकर जान कर कि जीजी का Inspiration वो सीलन वाली छत भी रही जिसे ढांपने के लिए उन्होंने चित्र बनाया फिर रंगों से उन्हें भर भी दिया. किसी आम सुघड़ गृहस्थिन की तरह गुणी जीजी ने चादरों, तकियों पर खूब चित्रकारी की. घर को सुंदर बनाया तब भी जिसने देखा तारीफ की और अब भी लोग 83 साल की जीजी की तारीफ करने से गुरेज नहीं करते. जीजी की पोती भी कहती हैं कि मन से जो जीजी करती हैं वो काबिल ए गौर है. अच्छी बात ये है कि सविता जी अपने काम को Enjoy करती हैं.
अपना काम, मन अनुसार: जीजी नजीर हैं उन बुजुर्गों के लिए जो जीवन के अहम पड़ाव पर हार मानकर बैठ जाते हैं. उन्हें और उनके छोटों को लगता है कि बस आराम करना ही अहम है. कोने में तख्त बिछा कर टीवी देखना ही जीवन में सब कुछ है. ऐसे लोगों को जीजी के ये शब्द बल देते हैं. कहती हैं- कितनी देर टीवी देखना, क्यों खाली बैठे रहना...इस दौर में कहां जाओगे.अच्छा है ऐसा ही कुछ काम कर लिया जाए. सही भी है अपनी सहूलियत मुताबिक समय का सदुपयोग करने से अच्छा आखिर क्या होगा. जीजी की मानें तो कुछ चित्र तो एकाध घंटों में बन जाते हैं तो कुछ में 2 से 3 दिन का समय भी लग जाता है.
उदयपुर दिखता है चित्रों में: जीजी की बोलती तस्वीरें उदयपुर की कहानी कहती हैं. इनमें शहर की प्रसिद्ध मिठाई दुकान, वस्त्र भंडार, यहां के व्रत और त्योहार से जुड़ी कथाएं, उनके आयोजनों से जुड़ी हुई बातें, मेले उत्सव सब दिखते हैं. यादों पर काबिज शहर कागज पर जब चटख रंगों के साथ बिखरता है तो देखने वालों की आंखें चौंधिया जाती हैं. जीजी महिलाओं को संदेश भी देती हैं कहती हैं मेहनत करो संकल्प के साथ, इच्छाओं को दबाओ न देखना मेहनत जरूर रंग लाएगी.