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गरीबों का राशन डकार गए साहब...अब 1,700 से अधिक सरकारी कर्मचारियों से हो रही वसूली

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Published : Dec 1, 2020, 12:01 PM IST

श्रीगंगानगर में भ्रष्टाचार से जुड़ा एक बड़ा मामला सामने आया है. यहां मोटी तनख्वाह लेने वाले सरकारी कर्मचारी ही गरीबों को मिलने वाला राशन खा गए. दरअसल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत अनेक सरकारी और पेंशनधारियों ने फर्जी तरीके से अपने नाम सूची में लिखवा दिए थे. जांच के बाद इन सभी को चिन्हित कर लिया गया है. अब इन लोगों से प्राप्त किए गए गेहूं की राशि को जुर्माना सहित वसूला जा रहा है.

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सरकारी कर्मचारी ने डाला गरीबों के राशन पर डाका

श्रीगंगानगर. भ्रष्टाचार से जुड़े सनसनीखेज मामले के तहत सरकार से मोटी रकम लेने वालों ने गरीबों के पेट पर लात मारा है. ये कोई और नहीं, ये हैं सरकारी नौकर. इन लोगों ने खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गरीबों को मिलने वाले सस्ते अनाज और राशन पर डंक मार गए. मामले में राष्ट्रीय खाद सुरक्षा योजना सूची में अनेक सरकारी और पेंशनधारियों ने फर्जी तरीके से अपने नाम लिखवा दिए, जिनको चिन्हित कर लिया गया है. साथ ही जिला प्रशासन और रसद विभाग अब इनसे वसूली कर रहा है.

सरकारी कर्मचारी ने डाला गरीबों के राशन पर डाका

रसद विभाग अब इन सरकारी कर्मचारियों से गेहूं की राशि को जुर्माने सहित वसूल कर रहा है. रसद विभाग 27 रुपए प्रति किलो के हिसाब से राशि वसूल रहा है. विभाग ने करीब एक करोड़ से अधिक रुपयों की वसूली की है. अब तक 1,800 के करीब कर्मचारियों से जुर्माने की राशि वसूली जा चुकी है.

कुछ यूं समझिए सरकारी नौकरों का खेल

राज्य सरकार के खाद्य विभाग को सरकारी कर्मचारियों के खाद्य योजना सूची में नाम जुड़वाने के मामले की शिकायत मिली थी. उसके बाद विभाग ने जांच शुरू करवाई तो इस मामले का खुलासा हुआ. सूची में अपना नाम दर्ज करवाने वाले सरकारी कर्मचारी गरीबों को दिए जाने वाले सस्ते राशन को कई साल से हड़प रहे थे. उधर, लॉकडाउन में बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों सहित 37 श्रेणी के लोगों को सरकार की तरफ से राशन देकर आत्मनिर्भर बनाना था. लेकिन श्रीगंगानगर में अमीरों को ही आत्मनिर्भर बना दिया गया.

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राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में भ्रष्टाचार

यह भी पढ़ें: महंगाई की मारः आम आदमी की पहुंच से दूर हो रहा आलू-प्याज

श्रीगंगानगर में एक लाख पांच हजार लोगों का चयन आत्मनिर्भर योजना के तहत किया गया है, जिनमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर, व्यापारी और अध्यापकों के नाम जोड़ दिए गए हैं. यही नहीं इन लोगों को दो महीने का 10 किलो गेहूं प्रति सदस्य और दो किलो चने की दाल दी गई है. बड़ी गड़बड़ी यह है कि इन फर्जी लोगों ने गेहूं वेतन आधार राशन डिपो से उठाया भी है. केंद्र सरकार द्वारा 'आत्मनिर्भर भारत योजना' के तहत भले ही 37 श्रेणी के गरीब परिवारों के लोगों को सस्ता राशन और दाल वितरित करके लॉकडाउन के दौरान राहत प्रदान की गई थी. लेकिन जिस प्रकार से यह राशन गरीबों में वितरण न करके पैसे वाले लोगों को और सुविधाभोगी लोगों को वितरण हुआ है, उससे योजना पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.

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सरकारी राशन पर अमीरों का डाका

यह भी पढ़ें: Special : क्रॉप इंप्रूवमेंट, प्रोडक्शन और प्रोटेक्शन की नई तकनीकें सीख रहे कृषि विद्यार्थी...किसानों की बढ़ेगी आय

रसद विभाग के अधिकारी भले ही अब नाम काटने के और जुर्माना वसूलने के लाख दावे करें. लेकिन कई साल से सरकारी कर्मचारी जो राशन उठा रहे थे, उन पर नजर जिम्मेवार विभाग की क्यों नहीं पड़ी. वहीं सालों तक गरीब का निवाला छीनने वाले इन सरकारी कर्मचारियों से राशि वसूल कर विभाग ने अपनी औपचारिकता पूरी कर ली. लेकिन गरीब का हक छीनने वाले इन कर्मचारियों के खिलाफ किसी प्रकार का अपराधिक मुकदमा क्यों नहीं किया गया, जिससे की ऐसे सरकारी कर्मचारियों को एक मैसेज दिया जा सके. ये सारे सवाल गरीबों के हक पर डाका डालने वालों के जहन में दौड़ रहा है.

श्रीगंगानगर. भ्रष्टाचार से जुड़े सनसनीखेज मामले के तहत सरकार से मोटी रकम लेने वालों ने गरीबों के पेट पर लात मारा है. ये कोई और नहीं, ये हैं सरकारी नौकर. इन लोगों ने खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गरीबों को मिलने वाले सस्ते अनाज और राशन पर डंक मार गए. मामले में राष्ट्रीय खाद सुरक्षा योजना सूची में अनेक सरकारी और पेंशनधारियों ने फर्जी तरीके से अपने नाम लिखवा दिए, जिनको चिन्हित कर लिया गया है. साथ ही जिला प्रशासन और रसद विभाग अब इनसे वसूली कर रहा है.

सरकारी कर्मचारी ने डाला गरीबों के राशन पर डाका

रसद विभाग अब इन सरकारी कर्मचारियों से गेहूं की राशि को जुर्माने सहित वसूल कर रहा है. रसद विभाग 27 रुपए प्रति किलो के हिसाब से राशि वसूल रहा है. विभाग ने करीब एक करोड़ से अधिक रुपयों की वसूली की है. अब तक 1,800 के करीब कर्मचारियों से जुर्माने की राशि वसूली जा चुकी है.

कुछ यूं समझिए सरकारी नौकरों का खेल

राज्य सरकार के खाद्य विभाग को सरकारी कर्मचारियों के खाद्य योजना सूची में नाम जुड़वाने के मामले की शिकायत मिली थी. उसके बाद विभाग ने जांच शुरू करवाई तो इस मामले का खुलासा हुआ. सूची में अपना नाम दर्ज करवाने वाले सरकारी कर्मचारी गरीबों को दिए जाने वाले सस्ते राशन को कई साल से हड़प रहे थे. उधर, लॉकडाउन में बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों सहित 37 श्रेणी के लोगों को सरकार की तरफ से राशन देकर आत्मनिर्भर बनाना था. लेकिन श्रीगंगानगर में अमीरों को ही आत्मनिर्भर बना दिया गया.

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राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में भ्रष्टाचार

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श्रीगंगानगर में एक लाख पांच हजार लोगों का चयन आत्मनिर्भर योजना के तहत किया गया है, जिनमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर, व्यापारी और अध्यापकों के नाम जोड़ दिए गए हैं. यही नहीं इन लोगों को दो महीने का 10 किलो गेहूं प्रति सदस्य और दो किलो चने की दाल दी गई है. बड़ी गड़बड़ी यह है कि इन फर्जी लोगों ने गेहूं वेतन आधार राशन डिपो से उठाया भी है. केंद्र सरकार द्वारा 'आत्मनिर्भर भारत योजना' के तहत भले ही 37 श्रेणी के गरीब परिवारों के लोगों को सस्ता राशन और दाल वितरित करके लॉकडाउन के दौरान राहत प्रदान की गई थी. लेकिन जिस प्रकार से यह राशन गरीबों में वितरण न करके पैसे वाले लोगों को और सुविधाभोगी लोगों को वितरण हुआ है, उससे योजना पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.

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सरकारी राशन पर अमीरों का डाका

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रसद विभाग के अधिकारी भले ही अब नाम काटने के और जुर्माना वसूलने के लाख दावे करें. लेकिन कई साल से सरकारी कर्मचारी जो राशन उठा रहे थे, उन पर नजर जिम्मेवार विभाग की क्यों नहीं पड़ी. वहीं सालों तक गरीब का निवाला छीनने वाले इन सरकारी कर्मचारियों से राशि वसूल कर विभाग ने अपनी औपचारिकता पूरी कर ली. लेकिन गरीब का हक छीनने वाले इन कर्मचारियों के खिलाफ किसी प्रकार का अपराधिक मुकदमा क्यों नहीं किया गया, जिससे की ऐसे सरकारी कर्मचारियों को एक मैसेज दिया जा सके. ये सारे सवाल गरीबों के हक पर डाका डालने वालों के जहन में दौड़ रहा है.

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