श्रीगंगानगर. नगर परिषद सभापति पद की ताजपोशी के लिए एक ही दिन की दूरी है. नया सभापति बनाने के लिए भाजपा-कांग्रेस की ओर से जोर अजमाइश की जा रही है. दोनों ही पार्टियों की ओर से पार्षदों की लग्जरी बाड़ेबंदी हरियाणा,पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हुई है. इस बार राज्य सरकार की ओर से मतगणना के बाद सभापति के चुनाव के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया. जिसके बाद बाड़ेबंदी से पार्षदों को एकजुट रखने में भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है.
नगर परिषद चुनाव के इतिहास में 31 सालों के बाद पार्षदों की लंबे समय तक और लग्जरी बाड़ेबंदी हुई है. 26 नवंबर को सभापति चुनाव की मतदान से पहले दोनों ही पार्टियां अपने पार्षदों को सोमवार की रात तक गंगानगर ले आएंगी. सभापति बनाने को लेकर भाजपा-कांग्रेस दावा कर रही है कि उनके पास नगर परिषद में सभापति बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा यानी 33 से ज्यादा पार्षद है. लेकिन एक तरफ दोनों ही पार्टियां भितरघात के नुकसान होने की आशंका से त्रस्त भी है.
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भाजपा नेताओं का दावा है कि उनके पास पार्टी के 24 पार्षदों के अलावा 11 निर्दलीयों का भी समर्थन है. वहीं, कांग्रेस नेताओं के बयानों से साफ है कि उन्होंने बाजी पलटने का मन बना लिया है. कांग्रेस का दावा है कि पिछले बोर्ड की तरफ इस बार भी एक तरफा वोटिंग होगी. इसका मतलब साफ है की सभापति बनने के लिए फिर से धन-बल का इस्तेमाल होगा. ऐसे में अब दोनों पार्टियों की नजर मंगलवार के दिन सभापति पद के लिए होने वाले मतदान पर है. मतदान के बाद जब परिणाम आएंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी.
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बता दें कि 1998 में लंबे अरसे बाद कोर्ट मे याचिका दायर करने के बाद श्रीगंगानगर नगर परिषद के चुनाव करवाये थे. तब महेश पेड़ीवाल सभापति बने थे. बता दें कि उस समय मतगणना के बाद प्रदेश सरकार ही सभापति के चुनाव की तारीख निर्धारित करती थी. उस समय भी मतगणना के कई दिनों बाद सभापति का चुनाव हुआ था. 2001 में नगर परिषद के सभापति जगदीश जांदू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब पार्षदों को 20 दिन के लिए दिल्ली और गुड़गांव ले जाया गया था. इसके बाद साल 2004 में स्थानीय स्तर पर बाड़ेबन्दी हुई और 2009 में सभापति का चुनाव सीधे जनता की ओर से करवाने से पार्षदों की बाड़ेबंदी की जरूरत नहीं पड़ी. पिछले चुनाव में भी बाड़ेबंदी स्थानीय स्तर पर हुई थी.