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श्रीगंगानगर: सभापति पद की ताजपोशी को बस एक दिन शेष, जोर अजमाइश में जुटी भाजपा-कांग्रेस

श्रीगंगानगर में नगर परिषद सभापति का ताज अपने सर करने के लिए भाजपा और कांग्रेस की ओर से जोर अजमाइश की जा रही है. अब देखना यह होगा कि चुनाव के नतीजे आने के बाद श्रीगंगानगर कि जनता किसे सभापति का ताज पहनाती है.

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Published : Nov 25, 2019, 5:00 PM IST

श्रीगंगानगर. नगर परिषद सभापति पद की ताजपोशी के लिए एक ही दिन की दूरी है. नया सभापति बनाने के लिए भाजपा-कांग्रेस की ओर से जोर अजमाइश की जा रही है. दोनों ही पार्टियों की ओर से पार्षदों की लग्जरी बाड़ेबंदी हरियाणा,पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हुई है. इस बार राज्य सरकार की ओर से मतगणना के बाद सभापति के चुनाव के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया. जिसके बाद बाड़ेबंदी से पार्षदों को एकजुट रखने में भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है.

नगर परिषद सभापति के चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने लगाया एड़ी चोटी का जोर

नगर परिषद चुनाव के इतिहास में 31 सालों के बाद पार्षदों की लंबे समय तक और लग्जरी बाड़ेबंदी हुई है. 26 नवंबर को सभापति चुनाव की मतदान से पहले दोनों ही पार्टियां अपने पार्षदों को सोमवार की रात तक गंगानगर ले आएंगी. सभापति बनाने को लेकर भाजपा-कांग्रेस दावा कर रही है कि उनके पास नगर परिषद में सभापति बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा यानी 33 से ज्यादा पार्षद है. लेकिन एक तरफ दोनों ही पार्टियां भितरघात के नुकसान होने की आशंका से त्रस्त भी है.

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भाजपा नेताओं का दावा है कि उनके पास पार्टी के 24 पार्षदों के अलावा 11 निर्दलीयों का भी समर्थन है. वहीं, कांग्रेस नेताओं के बयानों से साफ है कि उन्होंने बाजी पलटने का मन बना लिया है. कांग्रेस का दावा है कि पिछले बोर्ड की तरफ इस बार भी एक तरफा वोटिंग होगी. इसका मतलब साफ है की सभापति बनने के लिए फिर से धन-बल का इस्तेमाल होगा. ऐसे में अब दोनों पार्टियों की नजर मंगलवार के दिन सभापति पद के लिए होने वाले मतदान पर है. मतदान के बाद जब परिणाम आएंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी.

पढ़ेंः श्रीगंगानगर : छात्रसंघ कार्यालय के उद्घाटन समारोह में पहुंचे बेनीवाल ने कही ये बड़ी बातें

बता दें कि 1998 में लंबे अरसे बाद कोर्ट मे याचिका दायर करने के बाद श्रीगंगानगर नगर परिषद के चुनाव करवाये थे. तब महेश पेड़ीवाल सभापति बने थे. बता दें कि उस समय मतगणना के बाद प्रदेश सरकार ही सभापति के चुनाव की तारीख निर्धारित करती थी. उस समय भी मतगणना के कई दिनों बाद सभापति का चुनाव हुआ था. 2001 में नगर परिषद के सभापति जगदीश जांदू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब पार्षदों को 20 दिन के लिए दिल्ली और गुड़गांव ले जाया गया था. इसके बाद साल 2004 में स्थानीय स्तर पर बाड़ेबन्दी हुई और 2009 में सभापति का चुनाव सीधे जनता की ओर से करवाने से पार्षदों की बाड़ेबंदी की जरूरत नहीं पड़ी. पिछले चुनाव में भी बाड़ेबंदी स्थानीय स्तर पर हुई थी.



श्रीगंगानगर. नगर परिषद सभापति पद की ताजपोशी के लिए एक ही दिन की दूरी है. नया सभापति बनाने के लिए भाजपा-कांग्रेस की ओर से जोर अजमाइश की जा रही है. दोनों ही पार्टियों की ओर से पार्षदों की लग्जरी बाड़ेबंदी हरियाणा,पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हुई है. इस बार राज्य सरकार की ओर से मतगणना के बाद सभापति के चुनाव के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया. जिसके बाद बाड़ेबंदी से पार्षदों को एकजुट रखने में भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है.

नगर परिषद सभापति के चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने लगाया एड़ी चोटी का जोर

नगर परिषद चुनाव के इतिहास में 31 सालों के बाद पार्षदों की लंबे समय तक और लग्जरी बाड़ेबंदी हुई है. 26 नवंबर को सभापति चुनाव की मतदान से पहले दोनों ही पार्टियां अपने पार्षदों को सोमवार की रात तक गंगानगर ले आएंगी. सभापति बनाने को लेकर भाजपा-कांग्रेस दावा कर रही है कि उनके पास नगर परिषद में सभापति बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा यानी 33 से ज्यादा पार्षद है. लेकिन एक तरफ दोनों ही पार्टियां भितरघात के नुकसान होने की आशंका से त्रस्त भी है.

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भाजपा नेताओं का दावा है कि उनके पास पार्टी के 24 पार्षदों के अलावा 11 निर्दलीयों का भी समर्थन है. वहीं, कांग्रेस नेताओं के बयानों से साफ है कि उन्होंने बाजी पलटने का मन बना लिया है. कांग्रेस का दावा है कि पिछले बोर्ड की तरफ इस बार भी एक तरफा वोटिंग होगी. इसका मतलब साफ है की सभापति बनने के लिए फिर से धन-बल का इस्तेमाल होगा. ऐसे में अब दोनों पार्टियों की नजर मंगलवार के दिन सभापति पद के लिए होने वाले मतदान पर है. मतदान के बाद जब परिणाम आएंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी.

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बता दें कि 1998 में लंबे अरसे बाद कोर्ट मे याचिका दायर करने के बाद श्रीगंगानगर नगर परिषद के चुनाव करवाये थे. तब महेश पेड़ीवाल सभापति बने थे. बता दें कि उस समय मतगणना के बाद प्रदेश सरकार ही सभापति के चुनाव की तारीख निर्धारित करती थी. उस समय भी मतगणना के कई दिनों बाद सभापति का चुनाव हुआ था. 2001 में नगर परिषद के सभापति जगदीश जांदू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब पार्षदों को 20 दिन के लिए दिल्ली और गुड़गांव ले जाया गया था. इसके बाद साल 2004 में स्थानीय स्तर पर बाड़ेबन्दी हुई और 2009 में सभापति का चुनाव सीधे जनता की ओर से करवाने से पार्षदों की बाड़ेबंदी की जरूरत नहीं पड़ी. पिछले चुनाव में भी बाड़ेबंदी स्थानीय स्तर पर हुई थी.



Intro:श्रीगंगानगर : नगर परिषद सभापति पद की ताजपोशी के लिए एक ही दिन रहा है। नया सभापति बनाने के लिए भाजपा-कांग्रेस की ओर से जोर अजमाइश की जा रही है। दोनों ही पार्टियों की ओर से पार्षदों की लग्जरी बाड़ेबंदी हरियाणा,पंजाब ओर हिमाचल प्रदेश में की हुई है। इस बार राज्य सरकार की ओर से मतगणना के बाद सभापति के चुनाव के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाने से बाड़े बंदी से पार्षदों को एकजुट रखने में भाजपा- कांग्रेस दोनों को ही ज्यादा मशक्कत करणी पड़ रही है। नगर परिषद चुनाव की इतिहास में 31 वर्ष बाद पार्षदों की लंबे समय तक और लग्जरी बाड़ेबंदी हुई है। 26 नवंबर को सभापति चुनाव की मतदान से पहले दोनों ही पार्टिया अपने पार्षदो को सोमवार रात्रि तक गंगानगर ले आयेगें। सभापति बनाने को लेकर भाजपा-कांग्रेस दावा कर रही है कि उनके पास नगर परिषद में सभापति बनाने के लिए बहुमत का आकड़ा यानी 33 से ज्यादा पार्षद है, लेकिन दोनों ही पार्टियां भितरघात के नुकसान होने की आशंका से त्रस्त है। भाजपा नेताओं का दावा है कि उनकी पास पार्टी के 24 पार्षदों के अलावा 11 निर्दलीय का समर्थन है। इससे उनकी उम्मीदवार 35 वोट लेकर सभापति बनेगी।वहीं कांग्रेस नेताओं से बयानों से साफ है कि उन्होंने बाजी पलटने का मन बना लिया है। कांग्रेस का दावा है कि पिछले बोर्ड की तरफ इस बार भी एक तरफा वोटिंग होगी।मतलब साफ की सभापति बनने के लिए फिर से धनबल का इस्तेमाल होगा। ऐसे में इस बार दोनों ही पार्टियों को पूर्ण बहुमत नही मिलने से सत्ता पक्ष कांग्रेस व 24 पार्षदों के साथ बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने अपने पार्षद टूटने व बोर्ड बनाने के डर से दूर पार्षदों की बाड़ेबंदी की गई है। ऐसे में अब दोनों पार्टियों की नजर मंगलवार के दिन सभापति पद के लिए होने वाले मतदान पर है। मतदान के बाद जब परिणाम आएंगे तो तस्वीर साफ होगी कि किस पार्टी का कौन सा पार्षद किसकी गोद में बैठ गया।

बाइट : प्रहलाद गुंजल,भाजपा,समन्वयक।
बाइट : सन्तोष सहारण,कांग्रेस,जिला अध्यक्ष।





Body:1998 में लंबे अरसे बाद कोर्ट मे रिट दायर करने के बाद श्रीगंगानगर नगर परिषद के चुनाव करवाये थे,तब महेश पेड़ीवाल सभापति बने थे।उस समय मतगणना के बाद प्रदेश सरकार ही सभापति के चुनाव की तारीख निर्धारित करती थी। उस समय भी मतगणना के कई दिनों बाद सभापति का चुनाव हुआ था। तब पार्षदों को शिमला व मंसूरी ले जाया गया था। इसके बाद लग्जरी बाड़ेबंदी अब हुई है।इस बीच नगर परिषद सभापति के चुनाव की नई व्यवस्था की गई थी। जिसमे मतगणना की तुरंत बाद अगले दिन सभापति का चुनाव करवाने की व्यथा होने से बाड़ेबन्दी के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता था। ऐसी स्थिति में शहर के आस पास ही बाड़ेबंदी की जाती रही। 2001 में नगर परिषद के सभापति जगदीश जांदू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था। तब पार्षदों को 20 दिन के लिए दिल्ली व गुडगांव ले जाया गया था। इसके बाद वर्ष 2004 में स्थानीय स्तर पर बाड़ेबन्दी हुई और 2009 में सभापति का चुनाव सीधे जनता द्वारा करवाने से पार्षदों की बाड़ीबन्दी की जरूरत नहीं पड़ी। पिछले चुनाव में भी बाड़ेबंदी स्थानीय स्तर पर हुई।




Conclusion:पार्षद बाड़ेबंदी से बाहर निकलकर कल करेगें मतदान।
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