श्रीगंगानगर. दीपों के त्योहार दीपावली को लेकर इन दिनों चारों ओर उत्साह नजर आ रहा है. हर कोई अपने तरीके से दीपोत्सव की तैयारियों में जुटा हुआ है. दीपोत्सव के पर्व का सबसे अधिक अगर किसी को इंतजार रहता है तो वह मिट्टी के दीए बनाने वाले कुंभकारों को. यही कारण है कि दीपावली से एक माह पूर्व ही ये कारीगर मिट्टी के दीपक बनाने में जुट जाते हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई और चाइनीज बाजार की मार अब इनके काम पर भी असर डाल रही है.
दीपावली पर भी अब चाइनीज बाजार ने पकड़ मजबूत कर ली है. जिससे मिट्टी को रौंद नया आकार देकर उससे बर्तन बनाने वाले कारीगर (कुंभकार) भी अब चिंतित है. कारण है बढ़ती महंगाई की मार. इन कारीगरों के व्यवसाय पर भी महंगाई व चाइनीज बाजार का असर साफ दिखाई देने लगा है.जिसके कारण दीपावली जैसे त्यौहार पर अब इन कारीगरों की बिक्री पहले की बजाय आधी रह गई है.
दुकानदारों ने बताया कि अब इस काम में वह मार्जिन नहीं रहा है जो पहले होता था. बिक्री अब नाममात्र की रह गई है. कुंभकारों की मानें तो दीपावली जैसे पर्व पर लोग मिट्टी के दीपक केवल शगुन पूरा करने के लिए खरीदते हैं. वहीं मिट्टी से बने दीप को खरीदने वाले ग्राहकों का कहना हैं कि महंगाई के चलते दीप भी पहले से महंगे हो गए हैं. यही वजह है कि लोग दीपावली पर कुंभकारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीपक शगुन के तौर पर ही जलाते हैं.
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने की मान्यता
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने के पीछे मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास से वापस लौटे थे, तब उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने अपने घरों में घी के दिए जलाए थे. तब से लेकर आज तक भारतीय प्रतिवर्ष अमावस्या की रात को यह प्रकाश पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. यही कारण है कि सदियां बीत जाने के बाद भी परंपराएं खत्म नहीं हुई है. हालांकि, इनमें समय के साथ कई बदलाव आए हैं, लेकिन आज भी दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने दीपों को जलाकर रोशनी की जाती है. भले ही फिर इन मिट्टी के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली हो.
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आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक लाइटों का चलन बढ़ा
आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक लाइटों का चलन बढ़ गया है. इस दौर में अधिकतर घरों में इलेक्ट्रॉनिक लाइटिंग का चलन जारी हो गया है, लेकिन ग्रामीण अंचलों सहित शहरों में आज भी दीपावली का पर्व तभी पूर्ण माना जाता है जब घर में सोंधी मिट्टी की खुशबू वाला दीप घर में जलता है.
मिट्टी के दीयों के बगैर दीपावली अधूरी
मिट्टी के दीयों के बगैर एक तरह से दीपावली अधूरी मानी जाती है. इसलिए हर घर में कम से कम 8 से 10 दीपक तो खरीदे ही जाते हैं, लेकिन इतनी कम खरीद से इन कारीगर दुखी हैं. हालांकि, आधुनिकता को देखते हुए मिट्टी के बर्तन बनाने वाले इन कारीगरों ने नए-नए डिजाइनों के दीपक तैयार किए हैं, लेकिन महंगाई के चलते लोग मिट्टी के दीपों को खरीदकर अपना बजट नहीं बिगाड़ना चाहते हैं. यही कारण है कि इन कारीगरों के बनाए दीपक उतने नहीं बिक पा रहे, जितनी बिक्री पहले के सालों में होती थी.