सीकर. कोरोना वायरस की महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी जकड़ में ले रखा है. आए दिन इस के नए मरीज सामने आ रहे हैं और देश में लॉकडाउन चल रहा है. बताया जा रहा है कि यह अब तक की सबसे खतरनाक महामारी है. इससे पहले भी देश में कई बड़ी महामारी फैल चुकी है. लेकिन इस बीमारी को सबसे खतरनाक बताया जा रहा है. किसी जमाने में चेचक और प्लेग से देश में लाखों लोग मरे थे. उसके बाद भी उस वक्त न तो इस तरह की व्यवस्था हो पाई थी और न लोगों को इतनी जानकारी थी.
कोरोना वायरस और इससे पहले भी देश में फैली महामारी को लेकर ईटीवी भारत ने जब बुजुर्ग लोगों से बात की तो सामने आया कि इस तरह की महामारी के बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं सुना. हालांकि बुजुर्ग लोग चेचक और प्लेग की बीमारी का जिक्र तो करते हैं. लेकिन उनका कहना है कि उस वक्त ज्यादा पता नहीं लग पाता था, क्योंकि कम्युनिकेशन के कोई साधन नहीं थे.
नहीं सुनी कभी ऐसी बीमारी...
सीकर के 82 वर्षीय शिक्षाविद झाबर सिंह बिजारणिया बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में इस तरह की महामारी दुनिया में और देश में कभी नहीं सुनी. उनका कहना है कि उनके दादा उन्हें प्लेग के बारे में बताते थे और कहते थे कि गांव के गांव उस वक्त खाली हो गए थे. सीकर के ही शंभू प्रसाद बताते हैं कि पहले अगर कोई महामारी फैलती भी थी, तो काफी दिनों तक तो लोगों को पता ही नहीं चलता था. ना ही कोई सरकारी सहायता मिलती थी और ना किसी तरह की जांच की कोई ज्यादा व्यवस्था थी.
उस वक्त भी लोगों ने किया था खुद को क्वॉरेंटाइन
बुजुर्ग बताते हैं कि जिस वक्त देश में प्लेग फैला था. उस वक्त भी लोगों ने खुद को क्वॉरेंटाइन करके ही जान बचाई थी. हालांकि उस समय इसका महत्व लोगों को पता नहीं था. लेकिन लोग गांव छोड़कर खेतों में चले गए थे. वहां पर झोपड़ा में छह-छह महीने तक रहे तब जाकर प्लेग से छुटकारा मिला था.
प्लेग ने मचाई थी भारी तबाही
19 सदी के करीब इस बीमारी ने पूरी दुनिया में अपने पैर पसार लिए थे. भारत में उस समय बिहार-यूपी के लोग बड़ी संख्या में अपने गांव लौटे थे. जिनकी वजह से प्लेग की बिमारी उनके गांव तक भी पहुंच गई थी. इसके बाद इसे रोकना मुश्किल हो चुका था. इस बीमारी ने भारत के काफी बड़ी जनसंख्या को अपनी चपेट में ले लिया था. बता दें कि प्लेग चूहों में पलने वाले बैक्टिरिया की वजह से होता है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मुंबई और पश्चिम बंगाल में हुआ था.
कब फैला था चेचक...
बुजुर्ग बताते हैं कि लोगों में जागरुकता की कमी और हाईजीन की समस्या ने इसे तेजी से फैलने दिया था. चेहरे और शरीर पर लाल धब्बों और दागों के साथ होने वाला यह संक्रमण भारत में 60 के दशक में काफी फैला था. चेचक से 18वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में हर साल चार लाख लोगों की जान जा रही थी. बता दें कि 20वीं सदी में चेचक की वजह दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोगों की मौत हुई थी.
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बुजुर्गों ने बताया कि चेचक के मरीज को भी घर में अलग कमरे में रखा जाता था और कोई भी उसके पास नहीं जाता था, यानी कि एक तरह से आइसोलेशन में रखा जाता था. इसी तरह से चेचक से फैलाव को रोका गया था. हालांकि बाद में सरकार ने इसके टीके लगाने शुरू कर दिए थे. चेचक की बीमारी को माता कहा जाता था.
पहले नहीं मिली कभी कोई सरकारी सहायता...
बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने जमाने में जब महामारी पहनती थी, तो किसी तरह की कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पाती थी, क्योंकि उस वक्त देश में इस तरह के संसाधन नहीं थे. काफी दिनों तक तो लोगों को पता ही नहीं चलता था कि बीमारी क्या फैल रही है. पास के गांव में क्या हो रहा है. इसकी भी जानकारी काफी दिन बाद मिल पाती थी.
हैजा जब बना लोगों के लिए काल...
भारत में एक ऐसा भी दौर आया जब लोग पानी पीने से भी बीमार पड़ने लगे. जिससे उनकी मौत भी होने लगी थी. 40 के दशक में भारत में भी हैजा की बीमारी घर कर चुकी थी. इसके बाद इसके काफी तबाही मचाई थी. कई लोगों की जानें गई. लेकिन इसका भी टीका बन गया. जिससे इस बीमारी पर काबू पा लिया गया.
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देखा जाए तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया भी कोरोना वायरस से पहले भी कई महामारियों ने तबाही मचाई है. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस इन सबमें सबसे अधिक खतरनाक बीमारी है. जिसका टीका अभी तक न बना पाया है और न ही इसका कोई इलाज है. कई महामारियों के समय मौजूद रहे चुके इन बुजुर्गों के तजुर्बे के मानें तो यह बीमारी पिछली बीमारियों से ज्यादा खतरनाक है.