सीकर. शेखावाटी का सीकर जिला हमेशा से कांग्रेस पार्टी का गढ़ रहा है. 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में यहां से 8 विधायकों में से बीजेपी का खाता भी नहीं खुल पाया था. लेकिन, पिछले दो चुनावों से कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं की फूट पंचायत चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ कर गई. सभी आठ विधायक कांग्रेस के समर्थित होने के बाद भी इस बार पार्टी का जिला प्रमुख नहीं बन पाया. इन सब के पीछे दिग्गजों की फूट को सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है.
फूट से ढहा कांग्रेस का गढ़...
पंचायत चुनाव की जब टिकट वितरण शुरू हुआ था, तब से ही कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की फूट खुलकर सामने आने लगी थी. पंचायत चुनाव के दौरान कांग्रेस के आठ विधायक कभी भी एक जाजम पर नहीं बैठे और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. जबकि, कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की कमान भी यहीं के गोविंद सिंह डोटासरा के हाथ में है.
बड़े नेताओं ने बनाई दूरी...
पार्टी ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को सीकर जिला परिषद का पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था. डॉ. चंद्रभान ने सीकर में कांग्रेस कार्यालय में 2 दिन तक कार्यकर्ताओं की बैठक ली, लेकिन एक भी मीटिंग में पार्टी के बड़े नेता नहीं पहुंचे. विधायकों की बात करें तो मुश्किल से दो या तीन विधायक डॉ. चंद्रभान की बैठक में पहुंचे.
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प्रत्याशियों की जानकारी ही नहीं...
कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशियों के सिंबल भी संबंधित विधायकों को भेज दिए और विधायकों ने अपने स्तर पर प्रत्याशी तय कर लिए. पार्टी के जिला अध्यक्ष तक को यह जानकारी नहीं थी कि कहां से किस को प्रत्याशी बनाया जा रहा है. जबकि, अब तक जिला परिषद के टिकट जिला स्तर पर ही तय होते आए हैं. विधायकों को अपनी पंचायत समिति की जिम्मेदारी सौंपने तक तो काम ठीक था. लेकिन, जिला परिषद के प्रत्याशी जिला स्तर पर मंथन के बाद तय होने चाहिए थे, लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं हुआ. यही वजह रही कि जिला परिषद में बोर्ड बनाना तो दूर, पार्टी अपने जीते हुए प्रत्याशियों को भी काबू में नहीं रख पाई और उन्होंने भी भाजपा के पक्ष में मतदान कर दिया.
खींचतान की वजह से डूबी कांग्रेस की नैया...
पार्टी के दिग्गजों की खींचतान की वजह से कांग्रेस की नैया डूब गई. जिला परिषद के टिकट वितरण को लेकर पार्टी में जिला स्तर पर कभी ठीक से मंथन नहीं हुआ. पार्टी के दिग्गज नेता और विधायक परसराम मोरदिया, राजेंद्र पारीक, दीपेंद्र सिंह शेखावत और गोविंद सिंह डोटासरा पूरी तरह से बैठक से दूर रहे. आखिरी दिन तक यह तय नहीं था कि जिला परिषद चुनाव को संभाल कौन रहा है?
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नारायण सिंह भी आखिरी वक्त में हुए सक्रिय...
सीकर जिला परिषद में हमेशा से कांग्रेस के जिला प्रमुख बनते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यही रही कि दिग्गज नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह के हाथ में हमेशा से जिला परिषद चुनाव की कमान रही है. लेकिन, इस बार नारायण सिंह भी चुनाव के दौरान इस से दूर रहें और नतीजे आने के बाद सक्रिय हुए. दिग्गज नेताओं की खींचतान के चलते प्रत्याशी चयन में भी घमासान हुआ और पार्टी की तरफ से दो नामांकन दाखिल हो गए. कुछ सदस्य भाजपा के पक्ष में चले गए.
भाजपा की रणनीति रही सफल...
सीकर जिला परिषद में भाजपा की रणनीति पूरी तरह से सफल रही. पार्टी ने पूर्व विधायक प्रेम सिंह बाजोर को जिला परिषद की पूरी कमान सौंप दी. उन्होंने अपने हिसाब से प्रत्याशी तय किए और टिकट बांटे. किसी भी दूसरे नेता की दखलंदाजी नहीं रही. नतीजा यह रहा कि 3 वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित होने के बाद भी भाजपा यहां बहुमत के साथ वोट बनाने में कामयाब रही.
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पिछले चुनाव के आंकड़े...
- पंचायत चुनाव 2005: इस चुनाव में सीकर में 39 वार्डों में से भाजपा को 22 सीटें मिली थी और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थी. भाजपा की मल्ली देवी जिला प्रमुख बनी थी.
- पंचायत चुनाव 2010: इस चुनाव में कांग्रेस को 21 सीटें मिली थी और भाजपा को 17 सीटें मिली थी एक सीट निर्दलीय खाते में गई थी. कांग्रेस की रीटा सिंह जिला प्रमुख बनी थी.
- पंचायत चुनाव 2015: इस चुनाव में भाजपा को 23 सीटें मिली थी और कांग्रेस को 11 सीटें मिली थी. 4 सीटें माकपा के खाते में और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. इस बार भी भाजपा की अपर्णा रोलन जिला प्रमुख बनी थी।