सीकर. होली का त्योहार हो और शेखावाटी के गींदड़ नृत्य की बात न हो ये भला कैसे हो सकता. रंगों के इस पर्व का जिक्र होते ही जेहन में शेखावाटी के इस प्रसिद्ध लोक नृत्य का चित्र बरबस ही आ जाता है. शेखावाटी का अनूठा गींदड़ नृत्य देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है. होली के रंगीले त्योहार के मौके पर इन दिनों शेखावाटी इलाके की गली-मोहल्लों में गींदड़ नृत्य के कार्यक्रम में जोरों पर हैं. फाल्गुन के महीने में शेखावाटी की कला संस्कृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है और पूरे महीने तक फाग की मस्ती चलती है. एकादशी से यह नृत्य का कार्यक्रम शुरू हो जाता है.
शेखावाटी का यह प्रसिद्ध नृत्य डांडिया से मिलता जुलता है लेकिन इसका अंदाज कुछ अलग है. गाने और नगाड़े की धुन पर लोग जमकर नृत्य करते हैं. इस नृत्य के लिए जगह-जगह बंदनवार और बिजली की झालरों से सजावट की जाती है. जहां पर यह नृत्य किया जाता है, उसके चारों तरफ गोल घेरे में सजावट होती है और बीच में नगाड़ा बजाने वाले और लोक गीत गाने वालों के लिए जगह छोड़ी जाती है. नगाड़ा बजना शुरू होते ही चारों तरफ गींदड़ नृत्य करने वाले कलाकार अपने अपने डंडों को आपस में टकराते हुए गोल-गोल घूमना शुरू कर देते हैं. बीच में नगाड़े के साथ बांसुरी और लोकगीतों का समा बंधने से आनंद और बढ़ जाता है और नृत्य की सुंदर प्रस्तुतियां दी जाती हैं. होली पर चांदनी रात में इस गींदड़ नृत्य पर रमते रसिया और कलाकारों की मौज मस्ती देखते ही बनती है.
स्वांग भी मोह लेते हैं मन
इस नृत्य के दौरान काफी लोग अलग-अलग तरह के साफे बांधकर यहां पहुंचते हैं जिसे देखकर सभी का उत्साह बढ़ जाता है. काफी लोग विचित्र वेशभूषा में यह नृत्य करते हैं. इसके अलावा महरी (महिला के कपड़े पहने पुरुष) का नृत्य अलग ही छटा बिखरते हैं. गली-मोहल्लों में रात 8:00 बजे के बाद यह कार्यक्रम शुरू होते हैं और देर रात तक चलते हैं. कई जगह सुबह चार से पांच बजे तक कार्यक्रम चलते रहते हैं. इनमें रात भर कलाकारों के साथ आम लोग भी झूमते रहते हैं.