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Special: भूणी के मूर्तिकारों ने मूर्तिकला को दिलाई देशभर में पहचान, अब सुविधाएं नहीं मिलने से पलायन को मजबूर - Status of Nagaur sculptors

नागौर जिले में नावां उपखंड के छोटे से गांव भूणी के मूर्तिकारों ने अपनी कला और मेहनत के दम पर गांव को देशभर में पहचान दिलाई है. यहां के मूर्तिकारों ने देश में कई जगह 50 से 100 फीट तक और इससे भी बड़ी मूर्तियां बनाकर अपनी कला का लोहा मनवाया है, लेकिन क्या कारण है कि इन मूर्तिकारों को अब गांव छोड़कर आसपास के बड़े शहरों में बसना पड़ रहा है. पढ़ें- पूरी खबर...

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
पलायन को मजबूर मूर्तिकार
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Published : Aug 19, 2020, 8:31 PM IST

नागौर. मन में बसी देव प्रतिमा को जब हाथों में छैनी लेकर तराशना शुरू करती है तो पत्थर में भगवान के दर्शन कराने का हुनर सामने आता है और इस कला के लिए नागौर के भूणी के मूर्तिकारों को देश-प्रदेश में याद किया जाता है. इस गांव के मूर्तिकारों के हाथों के हुनर के कायल राजस्थान सहित अन्य राज्यों के कला को चाहने वाले हैं.

पलायन को मजबूर मूर्तिकार

जिले के भूणी को मूर्तिकारों का गांव कहा जाता है. यहां के मूर्तिकारों ने अपनी मेहनत और कला के दम पर देशभर में मूर्तिकला को एक नई पहचान दी है और कई शहरों में 21 से लेकर 108 फीट तक की मूर्तियां बनाई हैं. यहां तक कि जयपुर सहित प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में मूर्तियों का व्यापार करने वाले कई बड़े व्यापारी भी आर्डर देकर भूणी गांव के कलाकारों से ही मूर्तियां बनवाते हैं.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
विभिन्न पत्थरों से बनाई प्रतिमाएं

अब संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में भूणी के मूर्तिकार अपना गांव छोड़कर आसपास के किसी कस्बे या शहर में बसने को मजबूर हैं. करीब 5 हजार लोगों की आबादी वाले भूणी गांव में मूर्तियां बनाने के 15-20 कारखाने हैं. इसके अलावा कई लोग घरों में भी छोटी मूर्तियां बनाकर अपना गुजारा करते हैं.

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महाराणा प्रताप की 17 फीट ऊंची प्रतिमा

गांव के 300 लोग मूर्तिकला से जुड़े हैं...

गांव के करीब 300 लोग मूर्तिकला से जुड़े हुए हैं. यहां के कलाकार बेडौल पत्थरों को तराशकर सुंदर और आकर्षक मूर्तियां बनाने में सिद्धहस्त हैं. हिन्दू देवी-देवताओं के साथ ही यहां के कलाकार पत्थरों को जैन धर्म के तीर्थंकरों, महापुरुषों और शहीदों की मूर्तियों में बदल देते हैं. कई लोग अपने पूर्वजों की मूर्तियां भी बनवाते हैं. उनकी फोटो देखकर भूणी के कलाकार पत्थरों से हू-ब-हू वैसी ही मूर्ति तैयार कर देते हैं.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
भगवान बुद्ध की प्रतिमा

पढ़ें- Special Report : डूंगरपुर के मूर्तिकार तराशेंगे राम मंदिर के लिए पत्थर, स्तंभों पर उकेरेंगे कलाकृतियां

इन पत्थरों से बनती हैं मूर्तियां

मकराना के संगमरमर के अलावा ग्राहकों की मांग अनुसार ये कारीगर बिजोलिया के पत्थर, भैंसलाना के काले पत्थर, करौली के लाल पत्थर, जैसलमेर के सुनहरे पत्थर और पहाड़पुर के गुलाबी पत्थर से बेजोड़ मूर्तियां बनाते हैं. इस गांव के हर गली मोहल्ले में काली माता, शिव परिवार, राम दरबार, हनुमान, राधा कृष्ण, स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों की मूर्तियां बनाते हुए लोग मिल जाएंगे.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
भगवान गणेश की प्रतिमा

मूर्तिकला बन गया है पुश्तैनी काम

दरअसल, भूणी गांव के कारीगर पहले अनाज पीसने के काम आने वाली हाथ चक्कियां बनाते थे. लेकिन आधुनिक जीवन शैली के कारण हाथ चक्कियों की मांग दशकों पहले ही खत्म हो गई थी. ऐसे में अपना और परिवार का पेट पालने के लिए इन लोगों ने मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया. अब कई परिवार ऐसे हैं, जिनमें मूर्तिकारी ने एक पुश्तैनी काम के रूप में जगह बना ली है.

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पत्थरों से बनी मूर्तियां

भूणी गांव के कानाराम प्रजापति बताते हैं कि उन्होंने राजस्थान के साथ ही महाराष्ट्र के कई शहरों में मूर्तियां बनाकर भेजी हैं. हाल ही में उन्होंने घोड़े पर सवार महाराणा प्रताप की करीब 17 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई है, जो महाराष्ट्र ले जाई जाएगी. उनका कहना है कि उनके गांव में बिजली की समस्या रहती है. बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली काट ली जाती है. ऐसे में काम अटक जाता है.

बिजली की है समस्या

कानाराम का कहना है कि बिजली की समस्या के कारण उन्होंने इन्वर्टर लगवाया, लेकिन उससे छोटे औजार ही काम कर पाते हैं और वह भी सीमित समय तक. कटौती ज्यादा समय के लिए हो जाती है तो काम प्रभावित होता है. उनका यह भी कहना है कि उनके गांव या आसपास के कस्बों में ऐसी सुविधाएं नहीं है. जहां बाहर से आने वाले मूर्ति के खरीदारों को रुकने की व्यवस्था हो पाए. ऐसे में मूर्तियां खरीदने वाले ग्राहक गांव में आने से कतराते हैं.

महाराष्ट्र के नासिक जिले में मांगीतुंगी नामक स्थान पर पहाड़ को काटकर 108 फीट ऊंची भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा बनाने वाले चतुरदास स्वामी बताते हैं कि उन्होंने 50 कारीगरों के साथ 4 साल तक कड़ी मेहनत कर वह प्रतिमा तैयार की है. जिसे देखने के लिए आज देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. उनका कहना है कि गांव के कलाकार छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मूर्तियां बना सकते हैं.

नहीं मिल रही सरकारी सुविधा

चतुरदास स्वामी का कहना है कि आजकल काफी बड़ी मूर्तियों के आर्डर भी मिलते हैं. लेकिन उनका गांव हाईवे से काफी दूर पड़ता है, ऐसे में बड़ी मूर्तियों के लिए जरूरी बड़ा पत्थर लेकर आने वाले भारी वाहन गांव तक पहुंच ही नहीं पाते हैं. इसके साथ ही गांव में तैयार बड़ी प्रतिमाओं को निर्धारित स्थान तक पहुंचना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. इसलिए यहां के मूर्तिकार अब गांव छोड़कर किसी बड़े शहर या कस्बे में बसने लगे हैं. उनका कहना है कि जागरूकता के अभाव में इन कलाकारों को हस्तशिल्प उद्योग के तहत मिलने वाली सरकारी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है.

पढ़ें- SPECIAL : "राजनीतिक सत्ता और प्रजा के अपने-अपने उत्तरदायित्व, फल की चिंता किए बिना करें कर्म"

मूर्तिकार लक्ष्मणराम का कहना है कि तमाम कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद भी सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा बिजली कटौती और गांव तक पहुंचने वाली मुख्य सड़क का क्षतिग्रस्त होना भी अहम कारण है. जिसके चलते ग्राहक गांव तक आने से कतराते हैं. ऐसे में युवा कारीगर आसपास के बड़े शहरों और कस्बों में जाकर काम करते हैं और वहीं बस रहे हैं.

मूर्तिकारों की मांग

लक्ष्मणराम का कहना है कि सरकारी प्रयास से गांव के आबादी क्षेत्र से दूर उन्हें मूर्तिकला के कारखाने लगाने के लिए जमीन और बाकी सुविधाएं मुहैया करवाई जाए. साथ ही गांव तक आने वाली सड़क को चौड़ी करवाई जाए तो यह गांव मूर्तिकला के क्षेत्र में देश में वास्तव में वह पहचान हासिल कर सकता है, जिसका यह गांव हकदार है. ऐसा होने पर मूर्तिकला से जुड़े लोगों को गांव छोड़कर किसी दूसरे शहर कस्बे में भी जाकर नहीं बसना पड़ेगा.

नागौर. मन में बसी देव प्रतिमा को जब हाथों में छैनी लेकर तराशना शुरू करती है तो पत्थर में भगवान के दर्शन कराने का हुनर सामने आता है और इस कला के लिए नागौर के भूणी के मूर्तिकारों को देश-प्रदेश में याद किया जाता है. इस गांव के मूर्तिकारों के हाथों के हुनर के कायल राजस्थान सहित अन्य राज्यों के कला को चाहने वाले हैं.

पलायन को मजबूर मूर्तिकार

जिले के भूणी को मूर्तिकारों का गांव कहा जाता है. यहां के मूर्तिकारों ने अपनी मेहनत और कला के दम पर देशभर में मूर्तिकला को एक नई पहचान दी है और कई शहरों में 21 से लेकर 108 फीट तक की मूर्तियां बनाई हैं. यहां तक कि जयपुर सहित प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में मूर्तियों का व्यापार करने वाले कई बड़े व्यापारी भी आर्डर देकर भूणी गांव के कलाकारों से ही मूर्तियां बनवाते हैं.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
विभिन्न पत्थरों से बनाई प्रतिमाएं

अब संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में भूणी के मूर्तिकार अपना गांव छोड़कर आसपास के किसी कस्बे या शहर में बसने को मजबूर हैं. करीब 5 हजार लोगों की आबादी वाले भूणी गांव में मूर्तियां बनाने के 15-20 कारखाने हैं. इसके अलावा कई लोग घरों में भी छोटी मूर्तियां बनाकर अपना गुजारा करते हैं.

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महाराणा प्रताप की 17 फीट ऊंची प्रतिमा

गांव के 300 लोग मूर्तिकला से जुड़े हैं...

गांव के करीब 300 लोग मूर्तिकला से जुड़े हुए हैं. यहां के कलाकार बेडौल पत्थरों को तराशकर सुंदर और आकर्षक मूर्तियां बनाने में सिद्धहस्त हैं. हिन्दू देवी-देवताओं के साथ ही यहां के कलाकार पत्थरों को जैन धर्म के तीर्थंकरों, महापुरुषों और शहीदों की मूर्तियों में बदल देते हैं. कई लोग अपने पूर्वजों की मूर्तियां भी बनवाते हैं. उनकी फोटो देखकर भूणी के कलाकार पत्थरों से हू-ब-हू वैसी ही मूर्ति तैयार कर देते हैं.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
भगवान बुद्ध की प्रतिमा

पढ़ें- Special Report : डूंगरपुर के मूर्तिकार तराशेंगे राम मंदिर के लिए पत्थर, स्तंभों पर उकेरेंगे कलाकृतियां

इन पत्थरों से बनती हैं मूर्तियां

मकराना के संगमरमर के अलावा ग्राहकों की मांग अनुसार ये कारीगर बिजोलिया के पत्थर, भैंसलाना के काले पत्थर, करौली के लाल पत्थर, जैसलमेर के सुनहरे पत्थर और पहाड़पुर के गुलाबी पत्थर से बेजोड़ मूर्तियां बनाते हैं. इस गांव के हर गली मोहल्ले में काली माता, शिव परिवार, राम दरबार, हनुमान, राधा कृष्ण, स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों की मूर्तियां बनाते हुए लोग मिल जाएंगे.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
भगवान गणेश की प्रतिमा

मूर्तिकला बन गया है पुश्तैनी काम

दरअसल, भूणी गांव के कारीगर पहले अनाज पीसने के काम आने वाली हाथ चक्कियां बनाते थे. लेकिन आधुनिक जीवन शैली के कारण हाथ चक्कियों की मांग दशकों पहले ही खत्म हो गई थी. ऐसे में अपना और परिवार का पेट पालने के लिए इन लोगों ने मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया. अब कई परिवार ऐसे हैं, जिनमें मूर्तिकारी ने एक पुश्तैनी काम के रूप में जगह बना ली है.

Nagaur Sculptor Latest News,  Bhuni Village Sculpto
पत्थरों से बनी मूर्तियां

भूणी गांव के कानाराम प्रजापति बताते हैं कि उन्होंने राजस्थान के साथ ही महाराष्ट्र के कई शहरों में मूर्तियां बनाकर भेजी हैं. हाल ही में उन्होंने घोड़े पर सवार महाराणा प्रताप की करीब 17 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई है, जो महाराष्ट्र ले जाई जाएगी. उनका कहना है कि उनके गांव में बिजली की समस्या रहती है. बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली काट ली जाती है. ऐसे में काम अटक जाता है.

बिजली की है समस्या

कानाराम का कहना है कि बिजली की समस्या के कारण उन्होंने इन्वर्टर लगवाया, लेकिन उससे छोटे औजार ही काम कर पाते हैं और वह भी सीमित समय तक. कटौती ज्यादा समय के लिए हो जाती है तो काम प्रभावित होता है. उनका यह भी कहना है कि उनके गांव या आसपास के कस्बों में ऐसी सुविधाएं नहीं है. जहां बाहर से आने वाले मूर्ति के खरीदारों को रुकने की व्यवस्था हो पाए. ऐसे में मूर्तियां खरीदने वाले ग्राहक गांव में आने से कतराते हैं.

महाराष्ट्र के नासिक जिले में मांगीतुंगी नामक स्थान पर पहाड़ को काटकर 108 फीट ऊंची भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा बनाने वाले चतुरदास स्वामी बताते हैं कि उन्होंने 50 कारीगरों के साथ 4 साल तक कड़ी मेहनत कर वह प्रतिमा तैयार की है. जिसे देखने के लिए आज देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. उनका कहना है कि गांव के कलाकार छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मूर्तियां बना सकते हैं.

नहीं मिल रही सरकारी सुविधा

चतुरदास स्वामी का कहना है कि आजकल काफी बड़ी मूर्तियों के आर्डर भी मिलते हैं. लेकिन उनका गांव हाईवे से काफी दूर पड़ता है, ऐसे में बड़ी मूर्तियों के लिए जरूरी बड़ा पत्थर लेकर आने वाले भारी वाहन गांव तक पहुंच ही नहीं पाते हैं. इसके साथ ही गांव में तैयार बड़ी प्रतिमाओं को निर्धारित स्थान तक पहुंचना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. इसलिए यहां के मूर्तिकार अब गांव छोड़कर किसी बड़े शहर या कस्बे में बसने लगे हैं. उनका कहना है कि जागरूकता के अभाव में इन कलाकारों को हस्तशिल्प उद्योग के तहत मिलने वाली सरकारी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है.

पढ़ें- SPECIAL : "राजनीतिक सत्ता और प्रजा के अपने-अपने उत्तरदायित्व, फल की चिंता किए बिना करें कर्म"

मूर्तिकार लक्ष्मणराम का कहना है कि तमाम कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद भी सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा बिजली कटौती और गांव तक पहुंचने वाली मुख्य सड़क का क्षतिग्रस्त होना भी अहम कारण है. जिसके चलते ग्राहक गांव तक आने से कतराते हैं. ऐसे में युवा कारीगर आसपास के बड़े शहरों और कस्बों में जाकर काम करते हैं और वहीं बस रहे हैं.

मूर्तिकारों की मांग

लक्ष्मणराम का कहना है कि सरकारी प्रयास से गांव के आबादी क्षेत्र से दूर उन्हें मूर्तिकला के कारखाने लगाने के लिए जमीन और बाकी सुविधाएं मुहैया करवाई जाए. साथ ही गांव तक आने वाली सड़क को चौड़ी करवाई जाए तो यह गांव मूर्तिकला के क्षेत्र में देश में वास्तव में वह पहचान हासिल कर सकता है, जिसका यह गांव हकदार है. ऐसा होने पर मूर्तिकला से जुड़े लोगों को गांव छोड़कर किसी दूसरे शहर कस्बे में भी जाकर नहीं बसना पड़ेगा.

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