नागौर. रेतीले टीलों और पथरीली जमीन पर आमतौर पर खेती मुश्किल काम माना जाता है. खासकर ऐसे इलाकों में जहां पानी की कमी रहती हो. लेकिन जैतून का पेड़ ऐसा है कि इस तरह के वातावरण में भी भरपूर फल देकर किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकता है.
कई देशी और विदेशी फसलें ऐसी हैं, जो कम बारिश, रेतीले टीलों और पथरीली जमीन पर उगाकर भी अच्छी कमाई की जा सकती है. कुछ ऐसा ही होता है जैतून का पेड़. नागौर सहित कम बारिश वाले जिलों में इजरायली तकनीक से जैतून की खेती की संभावना तलाशने के लिए प्रायोगिक तौर पर जो पौधे लगाए गए थे, वे अब बड़े पेड़ बन चुके हैं. उनकी डालियां फलों से लदी हैं. यह बताती हैं कि कम बारिश वाले इलाकों में जैतून की खेती कर किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं.
लाडनूं-डीडवाना हाईवे पर बसे बाकलिया गांव में साल 2008 में 200 बीघा जमीन पर जैतून के 13800 पौधे लगाए गए थे. तब मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे ने राजस्थान ऑलिव कलप्रिट ऑर्गनाइजेशन बनाकर नागौर सहित कई जिलों में इस खेती की संभावनाएं तलाशनी शुरू की गई थी. अब बाकलिया जैतून फार्म पर इस साल दूसरी बार फल आए हैं. इससे पहले 2013-14 में इन पौधों पर फल आए थे.
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फार्म मैनेजर कैलाश कलवानिया का कहना है कि बाकलिया जैतून फार्म पर 7 किस्म के जैतून के पौधे लगाए गए हैं. इनमें अर्बेक्यूना, बर्निया, कोर्टिना, कोरोनाइकी, पिसुलीन, फ्रंटोयो और पिकवाल शामिल हैं. इनमें से चार किस्म अर्बेक्यूना, बर्निया, कोर्टिना और कोरोनाइकी के पौधों में इस साल भरपूर फल लग रहे हैं. उम्मीद है कि 15 से 20 टन जैतून के फल इस बार इस फार्म पर लगेंगे. उन्होंने बताया कि इजरायल से ये जैतून के पौधे मंगवाए गए थे. इजरायली तकनीक से ही यहां जैतून की खेती सरकारी स्तर पर की जा रही है. समय समय पर इस खेती के विशेषज्ञ भी यहां विजिट पर आते हैं और कोई समस्या होने पर उसका निराकरण भी करते हैं.
उनका कहना है कि इजरायल और नागौर का वातावरण और जमीन की किस्म एक समान होने के कारण इस जगह को भी जैतून की प्रायोगिक खेती के लिए चुना गया था. यहां बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक की मदद से यह खेती की गई है और पूरे 200 बीघा में ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था भी की गई. उनका कहना है कि एक बार लगाने के चौथे साल पर जैतून का पेड़ फल देने लगता है. इसके बाद हर साल फल आते हैं.
बाकलिया जैतून फार्म पर 2008 में लगाए गए इन पौधों पर पहली बार 2013-14 में फल आए थे. लेकिन इसके बाद के सालों में इन पेड़ों पर फल आने बंद हो गए थे. इजरायली विशेषज्ञ की मदद से कुछ उपाय किए गए. अब इस साल यहां जैतून के पेड़ों पर काफी फल लगे हैं. उनका कहना है कि कम पानी, रेतीले टीलों और पथरीली जमीन पर भी जैतून के पौधे आसानी से पनप सकते हैं. इसके साथ ही खारे पानी का भी इन पौधों पर खास असर नहीं होता है. ऐसे में यह खेती नागौर जिले के किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है.
फार्म मैनेजर के अनुसार एक ही खेत में जैतून की खेती के साथ मूंगफली या मूंग जैसी फसल भी बोई जा सकती है. इसके लिए जैतून के पौधों को कतारों में लगाया जाता है और उनके बीच की खाली जमीन पर कोई दूसरी फसल उगाकर किसान एक साथ दो फसलों का फायदा भी ले सकता है. इससे किसान को दोहरा फायदा हो सकता है. उनका कहना है कि इस तरह खेती करने से किसान एक ही फसल पर निर्भर नहीं रहेगा
बीकानेर जिले के लूणकरणसर में बड़ी रिफाइनरी लगी है. जहां जैतून का तेल निकाला जाता है. किसान वहां जैतून के फल बेच सकता है, जिसके दाम भी सरकार ने गुणवत्ता के अनुसार तय कर रखे हैं.
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जानकारों बताते हैं कि जैतून का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है. कई बीमारियों के उपचार में भी यह तेल प्रयोग में लिया जाता है. फिलहाल देश में जैतून का उत्पादन कम होने और बाहर से आयात करने के कारण यह तेल काफी महंगा बिकता है. ऐसे में सरकार की मंशा जैतून की खेती को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की है. ताकि आमजन को कम कीमत पर जैतून का तेल मुहैया हो सके और किसान भी अपनी आय बढ़ा सकें.
फार्म मैनेजर बताते हैं कि आजकल ऑलिव टी यानि जैतून के पत्तों से बनी चाय पीने का भी चलन बढ़ रहा है. उनका मानना है कि यदि जैतून की चाय का बाजार बढ़ता है तो किसानों को कमाई के लिए जैतून के फल आने तक भी इंतजार नहीं करना पड़ेगा. वे इस पेड़ की पत्तियों को बेचकर भी अच्छी कमाई कर सकते हैं.
नागौर भी उन चुनिंदा जिलों में शामिल है, जहां जैतून की खेती के लिए सरकार किसानों को सहायता मुहैया करवाती है. फिलहाल जिले में तीन-चार किसानों ने ही जैतून की खेती में रुचि दिखाई है. लेकिन अब बाकलिया जैतून फार्म पर लगे पेड़ों से आशा के अनुरूप परिणाम मिलने पर अन्य किसानों का भी इस तरफ रुझान बढ़ने की उम्मीद है.