नागौर. राजस्थान में ऐसे कई चमत्कारी स्थान हैं, जहां आने से लोगों के शारीरिक और मानसिक दुख दर्द दूर हो जाते हैं. ऐसा ही एक चमत्कारी देव स्थल नागौर में है, जहां लकवे का सौ फीसदी इलाज होता है. अपने परिजनों के सहारे आने वाले मरीज 7 दिन नियमानुसार परिक्रमा लगाने और हवन कुंड की भभूति लगाने पर आत्मनिर्भर हो जाते हैं और उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती.
नागौर स्थित बुटाटी धाम लकवे के इलाज के लिए प्रसिद्ध है. मान्यता है, कि यहां नियमानुसार परिक्रमा लगाने पर पैरेलेसिस के रोग से मुक्ति मिल जाती है. इस मंदिर में 7 परिक्रमा से लकवा जैसे गंभीर रोग से मुक्त हो जाने की मान्यता है. यहां लकवा ग्रसित मरीजों को 7 दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगानी होती है.
सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर और शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है. ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है. सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है.
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बुटाटी धाम में बिना किसी वैद्य या डॉक्टर के लकवे का इलाज हो जाता है. ये संत चतुरदास जी की समाधि की शक्ति का प्रभाव है, कि लकवा जैसे गंभीर रोग से लोगों को मुक्ति मिल जाती है. डॉक्टर और वैज्ञानिक भी यहां के चमत्कार को देखकर हैरान रह जाते हैं. डॉक्टरों का कहना है, कि कभी सालों तक इलाज के बाद भी ठीक नहीं होने वाली paralysis की इस बीमारी में सात दिन में सुधार देखना वाकई अचंभित करता है.
द्वादशी को भरता है मेला..
लोगों की आस्था के केन्द्र बुटाटी धाम में हर महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मेला लगता है. इसके अलावा वैशाख, भादो और माघ में पूरे महीने विशेष मेलों का आयोजन होता है.
ये है धाम का इतिहास..
बुटाटी धाम की स्थापना लगभग1600 ई. की शुरूआत में की गई. पैराणिक कथाओं और बुजुर्गों के अनुसार बुरा लाल शर्मा (दायमा) नामक बाह्मण ने बुटाटी की स्थापना की और उन्हीं के नाम पर बुटाटी का नामकरण हुआ. इसके बाद धाम पर भौम सिंह नाम के राजपूत ठाकुर ने इस पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया और उसके बाद बुटाटी नए नाम भौम सिंह जी की बुटाटी नाम से जाना जाने लगा.
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यह मंदिर वास्तव में संत चतुरदास जी की समाधि है. माना जाता है, कि लगभग पांच सौ साल पहले संत चतुरदास जी का यहां निवास था. वे सिद्ध योगी थे और अपनी सिद्धियों से लकवा रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे. आज भी लोग लकवे से मुक्त होने के लिए इनकी समाधि पर सात फेरी लगाते हैं. यहां मरीज को लगातार मन्दिर की 7 परिक्रमा लगवाने के साथ ही हवन कुण्ड की भभूति लगाते हैं और बीमारी धीरे-धीरे अपना प्रभाव कम कर देती है. लकवे की चपेट में शरीर के जो अंग हिलते-डुलते नहीं हैं, वह धीरे-धीरे काम करने लगते हैं.
यहां सब कुछ होता है नि:शुल्क...
इस मंदिर में रोगियों का नि:शुल्क इलाज होता है. मंदिर के बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए बिस्तर, भोजन, पीने के लिए ठण्डा पानी, खाना बनाने के लिए सामान और बर्तन, जलाने के लिए लकड़ी, सात दिन रूकने के लिए कमरे सभी निःशुल्क व्यवस्थाएं होती हैं. मंदिर परिसर चारों ओर से चारदीवारी और दरवाजों से घिरा है. बडे़- बड़े हॉल और खुली जगह मरीजों और परिजनों के रूकने और खानपान के लिए बनाए गए हैं.
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मंदिर परिसर में ही यात्रियों के ठहरने के लिए करीब 200 कमरे बने हुए हैं. जिनके अलावा बड़े-बड़े बरामदे भी हैं. जहां यात्री ठहर सकते हैं. यहां आने वाले यात्रियों को बनी हुई सब्जी मिलती है. चपाती के लिए आटा दिया जाता है. जिसकी रोटियां उन्हें खुद बनानी पड़ती है. रोटियां बनाने के लिए लकड़िया भी यात्रियों को मंदिर ट्रस्ट ही नि:शुल्क मुहैया करवाता है.
नहाने-धोने के लिए मंदिर परिसर में उचित व्यवस्था है. यहां एक सुलभ शौचालय भी बना हुआ है. मंदिर परिसर में पानी की एक बड़ी टंकी तथा पानी ठंडा करने के लिए जगह-जगह ठंडे पानी की मशीने लगी है. मंदिर परिसर के बाहर की ओर लगभग 100 दुकानें है. निवास के लिए यहाँ सुविधा युक्त धर्मशालाएं हैं. यात्रियों को जरुरत का सभी सामान जैसे बिस्तर , राशन , बर्तन, जलावन की लकड़ियाँ आदि निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं.
मंदिर ट्रस्ट दान से करता है व्यवस्थाएं..
मंदिर यह सारी व्यवस्था दान में मिली राशि से करता है. मंदिर में ठीक होने वाले भक्त मंदिर की महिमा से अभिभूत होकर दान करते हैं. यही पैसा मंदिर में सेवा में लगाया जाता है. मरीजों और परिजनों के लिए निःशुल्क खाना और ठहरने की व्यवस्था इसी दान से होती है. यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए कर्मचारी भी रखे हुए हैं, जिन्हें मंदिर ट्रस्ट मासिक तनख्वाह देता है. यात्री मंदिर में अपनी श्रद्धानुसार अनाज चढ़ाते हैं. जो गोशालाओं में दिया जाता है.