नागौर. सरकारी स्कूलों में बदइंतजामी और अव्यवस्थाओं की खबरें आए दिन हम देखते पढ़ते हैं, लेकिन आज हम आपको नागौर जिले के मिरजास गांव ले चलते हैं. इस गांव की उच्च प्राथमिक स्कूल में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने और सिखाने पर जोर दिया जाता है.
एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग पर जोर देने के लिए प्रधानाध्यापक गजेंद्र गेपाला के नेतृत्व में स्टाफ ने कई जीरो कोस्ट प्रोजेक्ट तैयार किए हैं. जो अनुपयोगी समान से बनाए गए हैं, लेकिन बच्चों को सिखाने में बहुत मदद करते हैं. इसका नतीजा यह है कि मिरजास गांव के साथ ही आसपास की ढाणियों के लोग भी अपने बच्चों का दाखिला इस स्कूल में करवाते हैं.
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सीमित संसाधनों के बावजूद स्टाफ ने यहां खेल-खेल में बच्चों को सिखाने और पढ़ाने के लिए कई ऐसे प्रोजेक्ट तैयार कर रखे हैं जो बच्चों को न केवल आसानी से सीखाने में मदद करते हैं बल्कि एक बार जो सीखा है उसे याद रखने में भी सहायक होते हैं. इस स्कूल में करीब 12 साल से सेवाएं दे रहे शिक्षक गजेंद्र गेपाला का इस स्कूल के कायापलट में अहम योगदान रहा है.
इस साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर जयपुर में होने वाले समारोह में उन्हें राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से नवाजा जाएगा. मिरजास गांव की राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल में करीब 12 साल से कार्यरत शिक्षक गजेंद्र गेपाला बताते हैं कि वे तीन साल से इस स्कूल के प्रधानाध्यापक का जिम्मा भी संभाल रहे हैं. सरकार ने छोटी कक्षा के बच्चों के लिए खेल-खेल में सिखाने की योजना लागू कर दी, लेकिन बाकी स्कूलों की तरह यहां भी बजट की मुख्य समस्या थी, लेकिन शिक्षक गजेंद्र ने इसे बच्चों की पढ़ाई में आड़े नहीं आने दिया. उन्होंने खुद 50 हजार रुपए खर्च कर डिजिटल क्लासरूम की व्यवस्था करवाई. ताकि कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को विज्ञान और गणित जैसे विषयों की पूरी जानकारी दी जा सके.
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गजेंद्र का कहना है कि जो विषय बच्चों के पाठ्यक्रम में हैं उनसे संबंधित जानकारी का वीडियो उन्हें जहां कहीं भी मिलता है वो उसे एक हार्डडिस्क में सेव करते जाते हैं. ये वीडियो बच्चों को उनके पाठ्यक्रम में शामिल विषयों की गहन जानकारी उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं. गजेंद्र और उनके स्टाफ ने छोटी कक्षाओं के बच्चों को हिंदी, गणित और अंग्रेजी की प्रारंभिक जानकारी देने के लिए कई प्रोजेक्ट खुद ही तैयार करवाए हैं. इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट अनुपयोगी वस्तुओं से बनाए गए हैं. जिन पर ज्यादा खर्च भी नहीं आया.
मसलन, लकड़ी की एक चौकी बनाकर उस पर पेंट करवाया गया है और उस चौकी पर कई गोले पेंट की सहायता से बनाए गए हैं. इन गोलों में 1 से 9 तक की गिनती लिखी जाती है. फिर कागज के डिस्पोजल कप पर भी 1 से 9 तक के अंक लिखते हैं. बच्चों को गोले पर लिखे अंक पर सही कप छांटकर रखने को कहा जाता है. इससे बच्चों को खेल-खेल में सीखने में मदद मिलती है. इसी तरह बड़ी कक्षाओं के बच्चों को जोड़-बाकी, गुणा और भाग भी इन चौकियों की मदद से आसानी से सिखाया जा सकता है. हिंदी और अंग्रेजी की वर्णमाला की जानकारी देने में भी यह चौकी काफी कारगर साबित हो रही है. इसी तरह खिलौना बैंक और अन्य प्रोजेक्ट से खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.
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इस स्कूल के क्लास रूम की दीवारों पर हिंदी, अंग्रेजी और गणित की पढ़ाई से जुड़ी जानकारी पेंट करवाई गई है. ताकि इन जानकारियों पर बच्चों की नजर हमेशा पड़ती रहे और उनका दोहरान होता रहे. इसके साथ ही बच्चों को विषय से जुड़ी जानकारी देने के लिए संदर्भ शिक्षकों की भी मदद ली जाती है. बालसभाओं में बच्चों को कभी रॉकेट के उड़ने के पीछे का विज्ञान समझाया जाता है तो कभी ग्लाइडर के उड़ने के पीछे के रहस्य की बच्चों को जानकारी दी जाती है.
इस स्कूल में बच्चों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने पर भी स्टाफ का खास जोर है. मिरजास गांव की स्कूल उन चुनिंदा स्कूलों में से है जहां पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक के सभी बच्चों को क्लासरूम में फर्नीचर पर बिठाया जाता है. गर्मी में ठंडा पानी मिले इसके लिए वाटर कूलर लगाया गया है. हर क्लासरूम में पंखे भी लगे हैं. गांव में बिजली कटौती की समस्या के चलते बच्चों की डिजिटल क्लास पर असर नहीं पड़े इसके लिए इन्वर्टर भी लगे हैं. पढ़ाई के साथ ही बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए इस स्कूल में सुंदर बगीचा भी बनाया गया है. जहां छायादार और फूल वाले पौधे लगाए गए हैं. इसके साथ ही स्कूल की खाली पड़ी जमीन पर किचन गार्डन के रूप में मिर्च, प्याज जैसे पौधे भी लगाए गए हैं. ताकि मिड डे मील में बनने वाली दाल और सब्जियों में इनका उपयोग किया जा सके.
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खास बात यह है कि 60 घरों की बस्ती वाले मिरजास गांव की इस स्कूल में कुल 144 में से आधे बच्चे ही इस गांव के हैं. आधे बच्चे आसपास की ढाणियों से चलकर यहां पढ़ने आते हैं. जनाणा गांव की ढाणियों में रहने वाले अभिभावक रामप्रसाद बताते हैं कि उनकी ढाणी से जनाणा और मिरजास गांव की स्कूल बराबर दूरी पर पड़ती है, लेकिन इस स्कूल के स्टाफ की लगन और यहां बच्चों को पढ़ाने का तरीका ऐसा है कि वे अपने बच्चों का दाखिला इसी स्कूल में करवाते हैं.
शिक्षक गजेंद्र गेपाला का कहना है कि पढ़ाई के साथ ही सह बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों पर भी खासतौर पर ध्यान दिया जाता है. पांच साल में इस स्कूल के सात बच्चे राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में खेले हैं. इसके अलावा विज्ञान और गणित की प्रतियोगिता में भी बच्चों ने भाग लिया और पुरस्कार जीते हैं.
गणित की प्रतियोगिता मैथ्स कार्निवल में राज्य में पहला स्थान हासिल करने के बाद मिरजास स्कूल की दो बेटियां राष्ट्रीय स्तर पर चयनित भी हुई थी. यह राष्ट्रीय प्रतियोगिता मार्च के अंत में प्रस्तावित थी, लेकिन कोरोना काल और लॉकडाउन के चलते इसे स्थगित कर दिया गया. शिक्षक दिवस पर राज्यस्तरीय अवार्ड के सवाल पर शिक्षक गजेंद्र गेपाला का कहना है कि बच्चे पढ़-लिखकर काबिल बने. यह एक शिक्षक के लिए सबसे बड़ा अवार्ड होता है.