नागौर. अपने हाथों से लोगों के आशियाने तराशने वाले मजदूर लॉकडाउन के इस विकट हालात में दूसरों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर हैं. अपना और परिवार का पेट पालने की मजबूरी उन्हें अपने गांव-शहर से दूर ले आई. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करते समय केंद्र और राज्य सरकार ने दावा किया था कि किसी जरूरतमंद को भूखा नहीं सोने दिया जाएगा.
लेकिन उत्तरप्रदेश के दो जिलों के नागौर में फंसे 30 मजदूर कभी एक समय खाना खाकर तो कभी खाना नहीं मिलने पर चाय पीकर दिन काटने को मजबूर हैं. उत्तरप्रदेश के बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के 30 मजदूर पिछले आठ-दस महीने से नागौर के लुहारों के मोहल्ले में रह रहे हैं. यहां ये मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट भर रहे थे. लॉकडाउन हुआ तो नागौर में ही फंसकर गए. बचत के रुपए खर्च हुए तो आसपास के दुकानदारों से उधार लेकर कुछ दिन गुजारा किया. लेकिन अब दुकानदारों ने भी उधार देना बंद कर दिया हैं.
![नागौर में फंसे मजदूर, laboures trraped in nagaur](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/6922424_nagaur12.jpg)
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इसके बाद वे पूरी तरह भामाशाहों और सामाजिक संगठनों पर निर्भर हो गए हैं. इन मजदूरों का कहना हैं कि एक बार कुछ लोग आए और राशन देकर गए. लेकिन अब खाने-पीने का कोई स्थाई इंतजाम नहीं हैं. ऐसे में इधर-उधर से जो भी व्यवस्था हो जाती है गुजारा कर रहे हैं. इनका कहना हैं कि कभी दिन में एक समय के खाने का इंतजाम हो जाता है तो कभी आधे लोगों के लिए खाने के पैकेट मिलते हैं. ऐसे में जो कुछ मिलता है बांटकर खा लेते हैं. कभी कुछ नहीं मिलता तो चाय पीकर पेट की आग को शांत करने का प्रयास करते हैं. उनका कहना है कि अब वे जल्द से जल्द घर जाना चाहते हैं.
![नागौर में फंसे मजदूर, laboures trraped in nagaur](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/6922424_nagaur1.jpg)
सोशल डिस्टेंसिंग के नियम-कायदों का भी उड़ रहा मखौल
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सरकार का पूरा जोर सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवाने पर है. लेकिन छोटे-छोटे तीन कमरों में रह रहे इन 30 मजदूरों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करना किसी भी हाल में संभव नहीं हैं. सरकार का दावा है कि जरूरतमंदों को खाने के पैकेट और रसद सामग्री के पैकेट दिए जा रहे हैं. इधर जिला प्रशासन का भी दावा है कि खाने-पीने को लेकर जिलेभर से कोई खास शिकायत नहीं आई है. लेकिन कलेक्टर ऑफिस से करीब 2 किमी की दूरी पर रह रहे इन मजदूरों के उदास चेहरे और आंखें सारी हकीकत बयान कर रही हैं.