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World Biofuel Day : कोटा में स्थापित हुआ देश का सबसे बड़ा गोबर गैस प्लांट, जानें क्या है विशेषता..

हर साल 10 अगस्त को बायोफ्यूल डे मनाया जाता है. इस खास दिन हम आपको बता रहे हैं देश के सबसे बड़े गोबर गैस प्लांट के बारे (Largest gobar gas plant of India in Kota) में. यह प्लांट राजस्थान के कोटा में स्थापित किया गया है. इस प्लांट से रोजाना 3000 किलो बायोगैस और 21 टन प्रोम खाद का उत्पादन होगा. इससे प्लांट और नगर विकास न्यास को मोटी आय होगी.

World Biofuel day: India's largest gobar gas plant in Kota, know about the production and income
कोटा में स्थापित हुआ देश का सबसे बड़ा गोबर गैस प्लांट, रोज होगा 3000 किलो CBG और 21 टन प्रोम खाद का उत्पादन
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Published : Aug 10, 2022, 7:11 AM IST

कोटा. शहर के बाहरी इलाके में देश की एक अनूठी देवनारायण पशुपालक आवासीय योजना बंधा धर्मपुरा में विकसित की गई है. इसके पहले फेज में करीब 738 पशुपालकों को पशु बाड़े आवंटित किए गए हैं. इनमें से करीब 500 पशुपालक रहने भी लगे हैं. 10 अगस्त को मनाए जा रहे वर्ल्ड बायोफ्यूल डे (World Biofuel day) पर पढ़िए देश के सबसे बड़े गोबर गैस प्लांट में बनने वाले उत्पादों और इससे होने वाली आय के बारे में...

नगर विकास न्यास के बायोगैस प्लांट के कंसल्टेंट डॉ. महेंद्र गर्ग ने बताया कि आवासीय योजना में करीब 1227 पशुपालकों के लिए मकान बनाए जाने हैं. जिनमें 15000 पशुओं की क्षमता होगी. वर्तमान में 500 से ज्यादा पशुपालक करीब 10,000 से ज्यादा पशु लेकर यहां पहुंच गए हैं. इन सभी पशुओं से एकत्रित होने वाले गोबर के निस्तारण के लिए 150 टन क्षमता का गोबर गैस प्लांट स्थापित किया गया है. इस प्लांट से कंप्रेस्ड बायोगैस, प्रोम खाद, इंडस्ट्रियल बायो फर्टिलाइजर व सॉलिड लिक्विड फर्टिलाइजर का निर्माण किया जाएगा. इन्हें बाजार में बेचने पर नगर विकास न्यास को आमदनी भी होगी.

देश के सबसे बड़े गोबर गैस प्लांट में क्या होगा उत्पादन और कितनी मिलेगी आय...

डॉ. गर्ग ने बताया कि बायोगैस का देश का दूसरा (गोबर गैस का पहला) सबसे बड़ा प्लांट और राजस्थान का सबसे बड़ा प्लांट (Largest gobar gas plant of Rajasthan) है. 550 टन का सबसे बड़ा बायोगैस प्लांट इंदौर में स्थापित है जो वेस्ट के सेग्रिगेशन के बाद बायोगैस उत्पादन कर रहा है. लेकिन गोबर गैस से संचालित देश का सबसे बड़ा प्लांट है. हालांकि, यहां गोबर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाएगा. ऐसे में मंडी वेस्ट की आवश्यकता शायद ही हो.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: गोबर गैस प्लांट ने बदली किसान की जीवनशैली...गैस सिलेंडर, बिजली बिल से मिला छुटकारा

कंपनी करेगी 5 साल मेंटेनेंस और ऑपरेशन: नगर विकास न्यास के अधीक्षण अभियंता राजेंद्र राठौड़ ने बताया कि नगर विकास न्यास ने करीब 30 करोड़ रुपए की लागत से इस प्लांट को तैयार करवाया है. इसमें से करीब 25 करोड़ में प्लांट स्थापित हुआ है और करीब 5 करोड़ रुपए में सिविल वर्क हुआ है. गोबर गैस प्लांट का निर्माण बेंगलुरु की नॉलेज इंटीग्रेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड कर रही है. जिसके टेंडर में 5 साल उसका ऑपरेशन और मेंटेनेंस भी शामिल है. इस कॉलोनी में रहने वाले सभी निवासियों को रसोई में एलपीजी की जगह बायोगैस पहुंचाई जाएगी. इन घरों को बायो गैस कनेक्शन से जोड़ा जाएगा. जिसके लिए घरों पर लाइन डाल दी गई है. जैसे ही प्लांट से बायोगैस का निर्माण शुरू होगा, उन्हें भी सप्लाई शुरू हो जाएगी.

जेडपीएचबी तकनीक पर काम करेगा गैस प्लांट: डॉ. महेंद्र गर्ग ने बताया कि इस बायोगैस प्लांट से कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) की तरह ही उपयोग में ली जाने वाली कंप्रेस्ड बायोगैस का उत्पादन होगा. यहां करीब 3000 किलो रोज का प्रोडक्शन होगा. जिसके लिए नगर विकास न्यास ने राजस्थान स्टेट गैस लिमिटेड (आरएसजीएल) से कांट्रैक्ट किया है, जो कि 54 रुपए किलो के हिसाब से बायोगैस खरीदेगा. इससे नगर विकास न्यास को करीब डेढ़ लाख से ज्यादा की आय होगी. आरएसजीएल इस कंप्रेसर बायो गैस (सीबीजी) को व्हीकल और इंडस्ट्री सप्लाई के लिए भी पहुंचाया जाएगा. यह प्लांट जीरो पॉल्यूशन हाई बायोगैस (जेडपीएचबी) तकनीकी पर काम करेगा.

पढ़ें: Special: कोरोना में आयुर्वेद की ओर बढ़ा रूझान, लोगों ने खूब खाया च्यवनप्राश, जमकर गटका काढ़ा

सप्लाई शुरू होने में लगेंगे एक दो महीने: यह प्लांट करीब 5 एकड़ जमीन पर बनाया गया है. जिसको चारों तरफ से पैक कर दिया गया है. साथ ही गोबर कलेक्शन भी शुरू हो गया है. बीते महीने ही पशुपालकों को देवनारायण पशुपालक आवासी योजना में शिफ्ट किया गया था. ऐसे में वहां पर अभी करीब 500 परिवारों से गोबर कलेक्शन शुरू हो गया है. यह करीब 75 टन रोज पहुंच रहा है. ऐसे में ट्रायल के लिए प्लांट को कमीशन पर दिया गया है और उससे बायोगैस का निर्माण हो रहा है. लेकिन अभी बेचने और सप्लाई की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है. इसमें कुछ समय और लग सकता है, क्योंकि थोड़ा निर्माण अभी बाकी है. जिसके बाद प्रोम खाद, इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर और सॉलिड लिक्विड खाद का उत्पादन भी शुरू हो जाएगा. इसमें अभी एक-दो महीने का समय लग सकता है.

इस तरह से काम करेगा प्लांट: प्लांट में गोबर पहुंचने के बाद उसे रिएक्टर में डाला जाता है, जहां हीटिंग सिस्टम लगा हुआ है. जहां पर टेंपरेचर मेंटेन किया जाएगा. हर रिएक्टर में तीन टर्बो गैस मिक्सिंग सिस्टम भी लगे हैं. जहां पर ज्यादा गैस बनाने के लिए लगातार गोबर को मिक्स किया जा रहा है. रिएक्टर में गोबर का डाइजेशन पर गैस का निर्माण शुरू होता है. इस रिएक्टर से रॉ गैस होल्डर में गैस आना शुरू हो जाएगी. इसके बाद प्रेशर स्विंग अब्जोर्शन (पीएसए) सिस्टम चालू होगा. जिसके जरिए गैस को प्यूरिफाई किया जाएगा. इस गैस में से सल्फर व नमी को बाहर कर दिया जाएगा. इसके बाद में बायोगैस और सीएनजी को अलग-अलग सप्लाई सिस्टम तक पहुंचाई जाएगी.

पढ़ें: जयपुर: छात्र ने लगाया दिमाग तो घर में बिना सिलेंडर के जलने लगा गैस चूल्हा, जानिए कैसे ?

रॉक फास्फेट के निर्माण के बाद बनेगी खाद: रिएक्टर में गैस निकलने के बाद बची हुई स्लरी को भी टैंक में भेज दिया जाएगा. जहां पर सॉलिड और लिक्विड फर्टिलाइजर सेपरेटर भी लगाया जाएगा. सॉलिड फर्टिलाइजर बनाने के लिए रॉक फास्फेट मिलाया जाएगा. साथ ही उसे सुखाने के लिए ड्रायर भी लगे हुए हैं. जहां पर इसके सूखने के बाद मशीन से पैक हो जाएगा. इसी तरह से लिक्विड फर्टिलाइजर भी प्लास्टिक के कैन में पैक हो जाएगा.

इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर होगा यूरिया का रिप्लेसमेंट: डॉ. गर्ग के अनुसार लिक्विड खाद को टैंकरों के जरिए नगर विकास न्यास और नगर निगम के पार्क में भेजा जाएगा. इसके अलावा डिवाइडर पर हो रही हरियाली में भी उनको डाला जाएगा. जिससे कि उन्हें ऑर्गेनिक खाद मिले. साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति मजबूत होगी. जिससे पेड़-पौधे भी हरे रहेंगे. यह काफी ज्यादा मात्रा में होगा. ऐसे में संभाग के अन्य जिलों में भी इसे भेजा जा सकता है. कुछ लिक्विड को हम इंडीज करेंगे. जिससे इंडस्ट्रियल बायो फर्टिलाइजर का निर्माण होगा, जिनमें पीएसबी कल्चर, पोटाश कल्चर, राइजोबेम, ह्यूमिक, फुलविक, एसिड बनेंगे. करीब 5000 लीटर प्रतिदिन इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर बनाकर सप्लाई करेंगे. यह यूरिया का रिप्लेसमेंट है. इनमें नाइट्रोजन 2, फास्फोरस 1, पोटास 1, फेरस, कोपर, जिंक, मैग्निशियम सहित 17 तत्व मौजूद होंगे जो यूरिया को रिप्लेस करेगा.

पढ़ें: राजस्थान का सबसे बड़ा और देश का दूसरा गोबर गैस प्लांट कोटा में, रसोई के साथ इंडस्ट्री और व्हीकल को भी मिलेगी नेचुरल गैस

डीएपी और यूरिया का रिप्लेसमेंट होगा प्रोम खाद व बायो फर्टिलाइजर: यह प्रोम खाद अपने आप में एक ऐसा जैविक खाद है, जो महंगे डीएपी को रिप्लेस कर सकता है. आईसीआर के रिकमेंडेशन के अनुसार प्रोम खाद उपयोग से उत्पादन 15 से 25 फीसदी बढ़ जाता है. इसको 20 से 25 फीसद डीएपी की तरह रिप्लेस कर सकते हैं. इस खाद से खरपतवार का खतरा 50 फीसदी कम हो जाता है. भूमि की उत्पादन और पानी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है. सबसे बड़ी बात है कि बाहर से आने वाले डीएपी का रिप्लेसमेंट भी इसे माना गया है. इसमें फास्फोरस 10.4, कार्बन 7.9, नाइट्रोजन 0.4, कार्बन-नाइट्रोजन 20 फीसदी होगा.इसका उपयोग डीएपी से दोगुना करना होगा.

यूआईटी को प्रतिदिन होगी एक लाख की आय: प्लांट में गोबर करीब पौने दो लाख रुपए का आएगा. इसमें 21 टन प्रोम खाद के लिए रोज 10 टन रॉक फास्फेट आएगा. इसकी लागत करीब 60 हजार रुपए है. इनके अलावा बिजली 25000, लेबर खर्च मिलाकर करीब साढ़े तीन लाख का खर्चा होगा. जबकि 3000 किलो गैस करीब डेढ़ लाख, 21 टन प्रोम खाद 2 लाख, लिक्विड फर्टिलाइजर 50 हजार और करीब 5000 लीटर इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर बनेगा, जिससे भी 50 हजार रुपए की आय होगी. इस तरह इसकी कुल आया 4.50 लाख रुपए (Income from Kota gobar gas plant) होगी. ऐसे में नगर विकास न्यास को रोज 1 लाख की आय होगी.

कोटा. शहर के बाहरी इलाके में देश की एक अनूठी देवनारायण पशुपालक आवासीय योजना बंधा धर्मपुरा में विकसित की गई है. इसके पहले फेज में करीब 738 पशुपालकों को पशु बाड़े आवंटित किए गए हैं. इनमें से करीब 500 पशुपालक रहने भी लगे हैं. 10 अगस्त को मनाए जा रहे वर्ल्ड बायोफ्यूल डे (World Biofuel day) पर पढ़िए देश के सबसे बड़े गोबर गैस प्लांट में बनने वाले उत्पादों और इससे होने वाली आय के बारे में...

नगर विकास न्यास के बायोगैस प्लांट के कंसल्टेंट डॉ. महेंद्र गर्ग ने बताया कि आवासीय योजना में करीब 1227 पशुपालकों के लिए मकान बनाए जाने हैं. जिनमें 15000 पशुओं की क्षमता होगी. वर्तमान में 500 से ज्यादा पशुपालक करीब 10,000 से ज्यादा पशु लेकर यहां पहुंच गए हैं. इन सभी पशुओं से एकत्रित होने वाले गोबर के निस्तारण के लिए 150 टन क्षमता का गोबर गैस प्लांट स्थापित किया गया है. इस प्लांट से कंप्रेस्ड बायोगैस, प्रोम खाद, इंडस्ट्रियल बायो फर्टिलाइजर व सॉलिड लिक्विड फर्टिलाइजर का निर्माण किया जाएगा. इन्हें बाजार में बेचने पर नगर विकास न्यास को आमदनी भी होगी.

देश के सबसे बड़े गोबर गैस प्लांट में क्या होगा उत्पादन और कितनी मिलेगी आय...

डॉ. गर्ग ने बताया कि बायोगैस का देश का दूसरा (गोबर गैस का पहला) सबसे बड़ा प्लांट और राजस्थान का सबसे बड़ा प्लांट (Largest gobar gas plant of Rajasthan) है. 550 टन का सबसे बड़ा बायोगैस प्लांट इंदौर में स्थापित है जो वेस्ट के सेग्रिगेशन के बाद बायोगैस उत्पादन कर रहा है. लेकिन गोबर गैस से संचालित देश का सबसे बड़ा प्लांट है. हालांकि, यहां गोबर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाएगा. ऐसे में मंडी वेस्ट की आवश्यकता शायद ही हो.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: गोबर गैस प्लांट ने बदली किसान की जीवनशैली...गैस सिलेंडर, बिजली बिल से मिला छुटकारा

कंपनी करेगी 5 साल मेंटेनेंस और ऑपरेशन: नगर विकास न्यास के अधीक्षण अभियंता राजेंद्र राठौड़ ने बताया कि नगर विकास न्यास ने करीब 30 करोड़ रुपए की लागत से इस प्लांट को तैयार करवाया है. इसमें से करीब 25 करोड़ में प्लांट स्थापित हुआ है और करीब 5 करोड़ रुपए में सिविल वर्क हुआ है. गोबर गैस प्लांट का निर्माण बेंगलुरु की नॉलेज इंटीग्रेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड कर रही है. जिसके टेंडर में 5 साल उसका ऑपरेशन और मेंटेनेंस भी शामिल है. इस कॉलोनी में रहने वाले सभी निवासियों को रसोई में एलपीजी की जगह बायोगैस पहुंचाई जाएगी. इन घरों को बायो गैस कनेक्शन से जोड़ा जाएगा. जिसके लिए घरों पर लाइन डाल दी गई है. जैसे ही प्लांट से बायोगैस का निर्माण शुरू होगा, उन्हें भी सप्लाई शुरू हो जाएगी.

जेडपीएचबी तकनीक पर काम करेगा गैस प्लांट: डॉ. महेंद्र गर्ग ने बताया कि इस बायोगैस प्लांट से कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) की तरह ही उपयोग में ली जाने वाली कंप्रेस्ड बायोगैस का उत्पादन होगा. यहां करीब 3000 किलो रोज का प्रोडक्शन होगा. जिसके लिए नगर विकास न्यास ने राजस्थान स्टेट गैस लिमिटेड (आरएसजीएल) से कांट्रैक्ट किया है, जो कि 54 रुपए किलो के हिसाब से बायोगैस खरीदेगा. इससे नगर विकास न्यास को करीब डेढ़ लाख से ज्यादा की आय होगी. आरएसजीएल इस कंप्रेसर बायो गैस (सीबीजी) को व्हीकल और इंडस्ट्री सप्लाई के लिए भी पहुंचाया जाएगा. यह प्लांट जीरो पॉल्यूशन हाई बायोगैस (जेडपीएचबी) तकनीकी पर काम करेगा.

पढ़ें: Special: कोरोना में आयुर्वेद की ओर बढ़ा रूझान, लोगों ने खूब खाया च्यवनप्राश, जमकर गटका काढ़ा

सप्लाई शुरू होने में लगेंगे एक दो महीने: यह प्लांट करीब 5 एकड़ जमीन पर बनाया गया है. जिसको चारों तरफ से पैक कर दिया गया है. साथ ही गोबर कलेक्शन भी शुरू हो गया है. बीते महीने ही पशुपालकों को देवनारायण पशुपालक आवासी योजना में शिफ्ट किया गया था. ऐसे में वहां पर अभी करीब 500 परिवारों से गोबर कलेक्शन शुरू हो गया है. यह करीब 75 टन रोज पहुंच रहा है. ऐसे में ट्रायल के लिए प्लांट को कमीशन पर दिया गया है और उससे बायोगैस का निर्माण हो रहा है. लेकिन अभी बेचने और सप्लाई की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है. इसमें कुछ समय और लग सकता है, क्योंकि थोड़ा निर्माण अभी बाकी है. जिसके बाद प्रोम खाद, इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर और सॉलिड लिक्विड खाद का उत्पादन भी शुरू हो जाएगा. इसमें अभी एक-दो महीने का समय लग सकता है.

इस तरह से काम करेगा प्लांट: प्लांट में गोबर पहुंचने के बाद उसे रिएक्टर में डाला जाता है, जहां हीटिंग सिस्टम लगा हुआ है. जहां पर टेंपरेचर मेंटेन किया जाएगा. हर रिएक्टर में तीन टर्बो गैस मिक्सिंग सिस्टम भी लगे हैं. जहां पर ज्यादा गैस बनाने के लिए लगातार गोबर को मिक्स किया जा रहा है. रिएक्टर में गोबर का डाइजेशन पर गैस का निर्माण शुरू होता है. इस रिएक्टर से रॉ गैस होल्डर में गैस आना शुरू हो जाएगी. इसके बाद प्रेशर स्विंग अब्जोर्शन (पीएसए) सिस्टम चालू होगा. जिसके जरिए गैस को प्यूरिफाई किया जाएगा. इस गैस में से सल्फर व नमी को बाहर कर दिया जाएगा. इसके बाद में बायोगैस और सीएनजी को अलग-अलग सप्लाई सिस्टम तक पहुंचाई जाएगी.

पढ़ें: जयपुर: छात्र ने लगाया दिमाग तो घर में बिना सिलेंडर के जलने लगा गैस चूल्हा, जानिए कैसे ?

रॉक फास्फेट के निर्माण के बाद बनेगी खाद: रिएक्टर में गैस निकलने के बाद बची हुई स्लरी को भी टैंक में भेज दिया जाएगा. जहां पर सॉलिड और लिक्विड फर्टिलाइजर सेपरेटर भी लगाया जाएगा. सॉलिड फर्टिलाइजर बनाने के लिए रॉक फास्फेट मिलाया जाएगा. साथ ही उसे सुखाने के लिए ड्रायर भी लगे हुए हैं. जहां पर इसके सूखने के बाद मशीन से पैक हो जाएगा. इसी तरह से लिक्विड फर्टिलाइजर भी प्लास्टिक के कैन में पैक हो जाएगा.

इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर होगा यूरिया का रिप्लेसमेंट: डॉ. गर्ग के अनुसार लिक्विड खाद को टैंकरों के जरिए नगर विकास न्यास और नगर निगम के पार्क में भेजा जाएगा. इसके अलावा डिवाइडर पर हो रही हरियाली में भी उनको डाला जाएगा. जिससे कि उन्हें ऑर्गेनिक खाद मिले. साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति मजबूत होगी. जिससे पेड़-पौधे भी हरे रहेंगे. यह काफी ज्यादा मात्रा में होगा. ऐसे में संभाग के अन्य जिलों में भी इसे भेजा जा सकता है. कुछ लिक्विड को हम इंडीज करेंगे. जिससे इंडस्ट्रियल बायो फर्टिलाइजर का निर्माण होगा, जिनमें पीएसबी कल्चर, पोटाश कल्चर, राइजोबेम, ह्यूमिक, फुलविक, एसिड बनेंगे. करीब 5000 लीटर प्रतिदिन इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर बनाकर सप्लाई करेंगे. यह यूरिया का रिप्लेसमेंट है. इनमें नाइट्रोजन 2, फास्फोरस 1, पोटास 1, फेरस, कोपर, जिंक, मैग्निशियम सहित 17 तत्व मौजूद होंगे जो यूरिया को रिप्लेस करेगा.

पढ़ें: राजस्थान का सबसे बड़ा और देश का दूसरा गोबर गैस प्लांट कोटा में, रसोई के साथ इंडस्ट्री और व्हीकल को भी मिलेगी नेचुरल गैस

डीएपी और यूरिया का रिप्लेसमेंट होगा प्रोम खाद व बायो फर्टिलाइजर: यह प्रोम खाद अपने आप में एक ऐसा जैविक खाद है, जो महंगे डीएपी को रिप्लेस कर सकता है. आईसीआर के रिकमेंडेशन के अनुसार प्रोम खाद उपयोग से उत्पादन 15 से 25 फीसदी बढ़ जाता है. इसको 20 से 25 फीसद डीएपी की तरह रिप्लेस कर सकते हैं. इस खाद से खरपतवार का खतरा 50 फीसदी कम हो जाता है. भूमि की उत्पादन और पानी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है. सबसे बड़ी बात है कि बाहर से आने वाले डीएपी का रिप्लेसमेंट भी इसे माना गया है. इसमें फास्फोरस 10.4, कार्बन 7.9, नाइट्रोजन 0.4, कार्बन-नाइट्रोजन 20 फीसदी होगा.इसका उपयोग डीएपी से दोगुना करना होगा.

यूआईटी को प्रतिदिन होगी एक लाख की आय: प्लांट में गोबर करीब पौने दो लाख रुपए का आएगा. इसमें 21 टन प्रोम खाद के लिए रोज 10 टन रॉक फास्फेट आएगा. इसकी लागत करीब 60 हजार रुपए है. इनके अलावा बिजली 25000, लेबर खर्च मिलाकर करीब साढ़े तीन लाख का खर्चा होगा. जबकि 3000 किलो गैस करीब डेढ़ लाख, 21 टन प्रोम खाद 2 लाख, लिक्विड फर्टिलाइजर 50 हजार और करीब 5000 लीटर इंडस्ट्रियल बायोफर्टिलाइजर बनेगा, जिससे भी 50 हजार रुपए की आय होगी. इस तरह इसकी कुल आया 4.50 लाख रुपए (Income from Kota gobar gas plant) होगी. ऐसे में नगर विकास न्यास को रोज 1 लाख की आय होगी.

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