कोटा. जेईई एडवांस के रिजल्ट में एक बार फिर कोटा सिरमोर बनकर सामने आया है. कोटा से बड़ी संख्या में तैयारी कर रहे हैं स्टूडेंट का सिलेक्शन जेईई एडवांस में हुआ है. ईटीवी भारत ने तीसरी रैंक लाने वाले वैभव राज से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि कोचिंग संस्थान ने जिस तरह से तैयारी कराई, सभी बुक्स को फॉलो किया, नोट्स का रिवीजन किया और सभी मॉक टेस्ट दिए. जिससे हमें पता चला कि कहां पर हम गलतियां कर रहे हैं.
मैंने लगातार पढ़ाई भी की. दिमाग को डाइवर्ट नहीं होने दिया. फोकस होकर फुल स्ट्रेन्थ से पढ़ाई करने से ही सफलता मिली है. उन्होंने अपना आगे का लक्ष्य बताते हुए कहा कि इसके आगे आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करना चाहता हूं. उसके बाद मेरा लक्ष्य यह है कि स्टार्टअप खोलना है. साथ ही इन्नोवेटिव रिसर्च ही करना है. कोविड-19 के एरा में सामने आई दिक्कतों को कैसे पार किया के सवाल पर वैभव राज ने कहा कि कोचिंग संस्थान ने इंश्योर कर दिया था कि मार्च-अप्रैल तक उनका पूरा सिलेबस खत्म हो जाएगा.
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साथ रिविजन भी करा दिया जाएगा. उसके बाद मोटिवेट किया. हमें डाउन फील नहीं करने दिया, लगातार हमें मॉक टेस्ट करवाते रहे. उसी मोटिवेशन से हम आगे बढ़े हैं. वैभव राज बेगूसराय बिहार के रहने वाले हैं. साथ ही उनके पिता सुनील कुमार राय मुरादनगर गाजियाबाद में डिफेंस में सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर के पद पर तैनात हैं. उनकी मां सुधा राय हाउसवाइफ है और बीते 4 सालों से कोटा ही उनके साथ रहकर इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवा रही थी.
पिता सुनील कुमार राय का कहना है कि कोटा के कोचिंग संस्थान ने काफी सपोर्ट किया. बच्चों के दिन या रात कोई भी डाउट हो, उसे तुरंत क्लियर किया जाता था. कोटा के कोचिंग का जो केयरिंग एटीट्यूट है. उसके कारण ही सक्सेज मिला है. उनकी मां सुधा का कहना है कि हमेशा टाइम पर पढ़ाई करता था और रिवीजन हमेशा करता रहता था.
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उन्होंने कहा कि कोविड-19 का जो 4 महीने का समय काफी कठिन था. इसमें बच्चे गेम और टीवी देखने की तरफ डायवर्ट हो गए थे. ऐसे में मुझे उसके पीछे 24 घंटे लगना पड़ा. थोड़ा उसका टाइम मैनेजमेंट बनाना पड़ा. उन्होंने कहा कि कोविड-19 के समय में तैयारी पूरी तरह से हो गई थी, लेकिन परीक्षाएं लगातार आगे बढ़ रही थी. उससे भी यह डिप्रेशन में चला गया था, लेकिन मैंने, उसके पिता और कोचिंग संस्थान की फैकल्टी ने उसे मोटिवेट किया और उसे कहा कि पढ़ाई करते रहो, 2 साल जो मेहनत है. वह बेकार नहीं चली जाए.