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Sawan 2022: 5100 पार्थिव शिवलिंग का हो रहा अभिषेक, देवताओं से लेकर दानव तक कर चुके हैं यह पूजा - Rajasthan hindi news

कोटा के श्री राम मंदिर (Special worship in Kota Shri Ram temple) में सुबह 6:00 बजे से 10:00 बजे तक मंत्रोचार के साथ मिट्टी, दही, दूध व अन्य सामग्री मिलाकर रोजाना 5100 से ज्यादा पार्थिव शिवलिंग बनाने के साथ पूजा-अर्चना व अभिषेक किया जा रहा है. इसके बाद यजमानों की ओर से शिवलिंग को चंबल नदी में विसर्जित किया जा रहा है. 10 सितंबर तक होगा आयोजन.

Special worship in Kota Shri Ram temple
सावन में विशेष अनुष्ठान
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Published : Jul 24, 2022, 6:05 AM IST

Updated : Jul 24, 2022, 12:12 PM IST

कोटा. सावन मास में मंदिर और शिवालयों की रौनक बढ गई है. भगवान शिव के अभिषेक के साथ राम मंदिर में नित पूजा-अर्चना हो रही है. शिव मंदिरों में लंबी कतार लग रही है. कोटा के स्टेशन इलाके स्थित श्रीराम मंदिर में भी सावन में विशेष अनुष्ठान (Special worship in Kota Shri Ram temple) किया जा रहा है. इसमें रोज 5100 शिवलिंग की पूजा-अर्चना के साथ दूध और जल से अभिषेक किया जाता है. हर दिन में अलग-अलग चार यजमान पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. बीते 10 जुलाई से निरंतर यहां पूजन और अनुष्ठान हो रहा है. यह क्रम 10 सितंबर तक 2 महीने चलेगा.

मंदिर समिति के अध्यक्ष ऋषि कुमार शर्मा का कहना है कि पहली बार कोटा के राम मंदिर में इस प्रकार का विशेष अनुष्ठान किया जा रहा है जिसमें प्रति दिन कम से कम चार यजमान आते हैं और शिवलिंग का पूजा करते हैं. पूजा-अर्चना के लिए मूलत: उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गीता मंदिर के महंत ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज पहुंचे हुए हैं. ये बीते साढ़े 3 साल से जबलपुर के नजदीक नर्मदा नदी के किनारे स्थित गोरक्षा घाट पर तपस्या कर रहे हैं.

सावन में विशेष अनुष्ठान

रोज श्री राम मंदिर में सुबह 6:00 बजे से 10:00 बजे तक मंत्रोचार के साथ मिट्टी, दही, दूध अन्य सामग्री मिलाकर बने हुए 5100 से ज्यादा शिवलिंग की पूजा-अर्चना होती है. इसके बाद रोज पूर्णाहुति होती है जिसमें भगवान का हवन कर इन शिवलिंग को चंबल नदी में विसर्जित किया जाता है. यहां पर पूजा-अर्चना करवा रहे ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज का कहना है कि मिट्टी या फिर किसी अन्य पदार्थ से बनाए हुए शिवलिंग की पूजा करने से मनचाहा फल मिलता है और यह एक कल्पवृक्ष के समान कल्पना जैसा है. महाराज विश्वस्वरूप का कहना है कि जिस तरह से कल्पवृक्ष के सामने पौराणिक काल में मान्यताएं मांगी जाती थीं और वह पूरी हो जाती हैं. उतना ही महत्व पार्थिव शिवलिंग का भी है. पूर्व में ऋषि, मुनि, साधु, संत, भगवान से लेकर दानव तक भी पूजन कर भगवान शिव को प्रसन्न कर मनचाहा वरदान प्राप्त किया करते थे.

पढ़ें. मनोकामना पूरी करते हैं 'नई के नाथ', सावन में महादेव के पूजन को लगती है श्रद्धालुओं की कतार

शिव-पुराण के वचन के साथ ही बनते हैं शिवलिंग
मंदिर समिति के महामंत्री परमानंद शर्मा का कहना है कि लोगों को पार्थिव शिवलिंग के महत्व के बारे में जागरूक करने लिए ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज रोज प्रवचन देते हैं. इसके लिए वे शिव पुराण का वाचन भी शाम को करते हैं. इस दौरान क्षेत्र की बड़ी संख्या में महिलाएं और आम जन उपस्थित रहते हैं. श्रद्धालु शिव पुराण सुनते हुए ही पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करते हैं और इन पार्थिव शिवलिंग का दूसरे दिन अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता है. महिलाएं और बच्चों की घंटों की मेहनत के बाद यह शिवलिंग बनकर तैयार होते हैं. यजमान बढ़ने के साथ इन शिवलिंग की संख्या भी बढ़ जाती है. सोमवार और रविवार के दिन यह शिवलिंग 7100 भी बनते हैं.

Special worship in Kota Shri Ram temple
51 सौ पार्थिव शिवलिंग बनाए जा रहे

दूध, दही और घी से होता है अभिषेक, मिलेगा चातुर्मास का फल
मंदिर समिति के महामंत्री परमानंद शर्मा का कहना है कि यजमान अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान का अभिषेक करते हैं जिसमें दूध, दही, शहद और जल का उपयोग कर सकते हैं. मंदिर समिति ही पूजा सामग्री यजमानों को उपलब्ध करवा देती है. यह अनुष्ठान 2 महीने चलेंगे और इससे चातुर्मास जैसा ही फल प्राप्त होता है. इसके दो पहलू हैं कि 4 महीने का चातुर्मास होता है, लेकिन इस कलयुग के कारण हमारे संतों ने चातुर्मास में 2 माह में कर दिया है. एक माह में दोपहर कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं. ऐसे में चार पहर 2 महीने में हो जाते हैं और इन्हीं को चतुर्मास माना गया है.

पढ़ें. Bhuteshwar Mahadev temple: वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ, सावन में दर्शनार्थियों का लगता है तांता

रोज चंबल नदी में होते हैं विसर्जित
यजमानों की ओऱ से शिवलिंग का पूजा, अर्चना व रुद्राभिषेक करने के बाद चंबल नदी में उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है. इसके लिए पूरी विधिवत प्रक्रिया अपनाई जाती है. यह आयोजन 10 सितंबर तक चलेगा और पूर्णाहुति के अवसर पर बड़ा अनुष्ठान किया जाएगा. स्थानीय क्षेत्र के संत महात्माओं के साथ जुलूस और शोभायात्रा निकाली जाएगी.

मां पार्वती भी करती थी भगवान शिव का सावन में अभिषेक
चातुर्मास हमारे हिंदू धर्म का हमारी संस्कृति में चला रहा है. चातुर्मास इसलिए भी है कि इस दौरान बारिश का सीजन होने से सभी साधु संत अपने आवास पर ही रहते थे और वहां पर 4 महीने तक कठिन तप करते थे. इसमें भगवान शिव की साधना भी शामिल है. नदी-नाले उफान पर होने के चलते रास्ते भी नहीं हुआ करते थे. मां पार्वती भी भगवान शिव की पूजा-अनुष्ठान हमेशा सावन मास में ही करती थीं. पूरे महीने वह यह विशेष पूजा-अर्चना करती थीं. भगवान का अभिषेक कर उन्हें प्राप्त करती थीं. इसीलिए सावन माह विशेष महत्व रखता है.

Special worship in Kota Shri Ram temple
कोटा श्री राम मंदिर

भगवान कृष्ण, मां पार्वती और ब्रह्माजी भी कर चुके हैं अभिषेक
ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज का कहना है कि ऋषि-मुनियों में वशिष्ठ व अंगिरा सहित अन्य ने भी भगवान शिव का पूजन यहां पर किया है. यहां तक कि देव गुरु बृहस्पति ने भी काशी में महाराज का पूजन किया था और तपस्या की थी. जिसके बाद भगवान ने उन्हें बृहस्पति पद दे दिया और जगतगुरु बना दिया. इसके अलावा भगवान कृष्ण ने पुत्र प्राप्ति, भगवान कृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने युद्ध में जीत और मां पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पार्थिव शिवलिंग का पूजन किया था और मन वांछित फल पाया था.

कोटा. सावन मास में मंदिर और शिवालयों की रौनक बढ गई है. भगवान शिव के अभिषेक के साथ राम मंदिर में नित पूजा-अर्चना हो रही है. शिव मंदिरों में लंबी कतार लग रही है. कोटा के स्टेशन इलाके स्थित श्रीराम मंदिर में भी सावन में विशेष अनुष्ठान (Special worship in Kota Shri Ram temple) किया जा रहा है. इसमें रोज 5100 शिवलिंग की पूजा-अर्चना के साथ दूध और जल से अभिषेक किया जाता है. हर दिन में अलग-अलग चार यजमान पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. बीते 10 जुलाई से निरंतर यहां पूजन और अनुष्ठान हो रहा है. यह क्रम 10 सितंबर तक 2 महीने चलेगा.

मंदिर समिति के अध्यक्ष ऋषि कुमार शर्मा का कहना है कि पहली बार कोटा के राम मंदिर में इस प्रकार का विशेष अनुष्ठान किया जा रहा है जिसमें प्रति दिन कम से कम चार यजमान आते हैं और शिवलिंग का पूजा करते हैं. पूजा-अर्चना के लिए मूलत: उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गीता मंदिर के महंत ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज पहुंचे हुए हैं. ये बीते साढ़े 3 साल से जबलपुर के नजदीक नर्मदा नदी के किनारे स्थित गोरक्षा घाट पर तपस्या कर रहे हैं.

सावन में विशेष अनुष्ठान

रोज श्री राम मंदिर में सुबह 6:00 बजे से 10:00 बजे तक मंत्रोचार के साथ मिट्टी, दही, दूध अन्य सामग्री मिलाकर बने हुए 5100 से ज्यादा शिवलिंग की पूजा-अर्चना होती है. इसके बाद रोज पूर्णाहुति होती है जिसमें भगवान का हवन कर इन शिवलिंग को चंबल नदी में विसर्जित किया जाता है. यहां पर पूजा-अर्चना करवा रहे ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज का कहना है कि मिट्टी या फिर किसी अन्य पदार्थ से बनाए हुए शिवलिंग की पूजा करने से मनचाहा फल मिलता है और यह एक कल्पवृक्ष के समान कल्पना जैसा है. महाराज विश्वस्वरूप का कहना है कि जिस तरह से कल्पवृक्ष के सामने पौराणिक काल में मान्यताएं मांगी जाती थीं और वह पूरी हो जाती हैं. उतना ही महत्व पार्थिव शिवलिंग का भी है. पूर्व में ऋषि, मुनि, साधु, संत, भगवान से लेकर दानव तक भी पूजन कर भगवान शिव को प्रसन्न कर मनचाहा वरदान प्राप्त किया करते थे.

पढ़ें. मनोकामना पूरी करते हैं 'नई के नाथ', सावन में महादेव के पूजन को लगती है श्रद्धालुओं की कतार

शिव-पुराण के वचन के साथ ही बनते हैं शिवलिंग
मंदिर समिति के महामंत्री परमानंद शर्मा का कहना है कि लोगों को पार्थिव शिवलिंग के महत्व के बारे में जागरूक करने लिए ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज रोज प्रवचन देते हैं. इसके लिए वे शिव पुराण का वाचन भी शाम को करते हैं. इस दौरान क्षेत्र की बड़ी संख्या में महिलाएं और आम जन उपस्थित रहते हैं. श्रद्धालु शिव पुराण सुनते हुए ही पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करते हैं और इन पार्थिव शिवलिंग का दूसरे दिन अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता है. महिलाएं और बच्चों की घंटों की मेहनत के बाद यह शिवलिंग बनकर तैयार होते हैं. यजमान बढ़ने के साथ इन शिवलिंग की संख्या भी बढ़ जाती है. सोमवार और रविवार के दिन यह शिवलिंग 7100 भी बनते हैं.

Special worship in Kota Shri Ram temple
51 सौ पार्थिव शिवलिंग बनाए जा रहे

दूध, दही और घी से होता है अभिषेक, मिलेगा चातुर्मास का फल
मंदिर समिति के महामंत्री परमानंद शर्मा का कहना है कि यजमान अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान का अभिषेक करते हैं जिसमें दूध, दही, शहद और जल का उपयोग कर सकते हैं. मंदिर समिति ही पूजा सामग्री यजमानों को उपलब्ध करवा देती है. यह अनुष्ठान 2 महीने चलेंगे और इससे चातुर्मास जैसा ही फल प्राप्त होता है. इसके दो पहलू हैं कि 4 महीने का चातुर्मास होता है, लेकिन इस कलयुग के कारण हमारे संतों ने चातुर्मास में 2 माह में कर दिया है. एक माह में दोपहर कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं. ऐसे में चार पहर 2 महीने में हो जाते हैं और इन्हीं को चतुर्मास माना गया है.

पढ़ें. Bhuteshwar Mahadev temple: वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ, सावन में दर्शनार्थियों का लगता है तांता

रोज चंबल नदी में होते हैं विसर्जित
यजमानों की ओऱ से शिवलिंग का पूजा, अर्चना व रुद्राभिषेक करने के बाद चंबल नदी में उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है. इसके लिए पूरी विधिवत प्रक्रिया अपनाई जाती है. यह आयोजन 10 सितंबर तक चलेगा और पूर्णाहुति के अवसर पर बड़ा अनुष्ठान किया जाएगा. स्थानीय क्षेत्र के संत महात्माओं के साथ जुलूस और शोभायात्रा निकाली जाएगी.

मां पार्वती भी करती थी भगवान शिव का सावन में अभिषेक
चातुर्मास हमारे हिंदू धर्म का हमारी संस्कृति में चला रहा है. चातुर्मास इसलिए भी है कि इस दौरान बारिश का सीजन होने से सभी साधु संत अपने आवास पर ही रहते थे और वहां पर 4 महीने तक कठिन तप करते थे. इसमें भगवान शिव की साधना भी शामिल है. नदी-नाले उफान पर होने के चलते रास्ते भी नहीं हुआ करते थे. मां पार्वती भी भगवान शिव की पूजा-अनुष्ठान हमेशा सावन मास में ही करती थीं. पूरे महीने वह यह विशेष पूजा-अर्चना करती थीं. भगवान का अभिषेक कर उन्हें प्राप्त करती थीं. इसीलिए सावन माह विशेष महत्व रखता है.

Special worship in Kota Shri Ram temple
कोटा श्री राम मंदिर

भगवान कृष्ण, मां पार्वती और ब्रह्माजी भी कर चुके हैं अभिषेक
ब्रह्मचारी विश्वस्वरूप महाराज का कहना है कि ऋषि-मुनियों में वशिष्ठ व अंगिरा सहित अन्य ने भी भगवान शिव का पूजन यहां पर किया है. यहां तक कि देव गुरु बृहस्पति ने भी काशी में महाराज का पूजन किया था और तपस्या की थी. जिसके बाद भगवान ने उन्हें बृहस्पति पद दे दिया और जगतगुरु बना दिया. इसके अलावा भगवान कृष्ण ने पुत्र प्राप्ति, भगवान कृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने युद्ध में जीत और मां पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पार्थिव शिवलिंग का पूजन किया था और मन वांछित फल पाया था.

Last Updated : Jul 24, 2022, 12:12 PM IST
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