कोटा. भारत से सैंड स्टोन एक्सपोर्ट में कोटा अव्वल है. लेकिन वर्तमान में इंडियन सेंड स्टोन एक्सपोर्ट पिछले साल की अपेक्षा एक तिहाई ही हुआ (Heavy loss to sand stone export) है. वर्तमान समय में इंडियन सैंड स्टोन एक्सपोर्ट के लिए यह जबरदस्त झटका है. इस इंडस्ट्री के जरिए डेढ़ लाख लोग रोजगार ले रहे थे, लेकिन इंडस्ट्री को नुकसान के बाद करीब 75 हजार कार्मिकों का काम छीन गया हैं. साथ ही इस नुकसान से कई एक्सपोर्टर को करोड़ों का घाटा हुआ है, इस इंडस्ट्री के नुकसान का सबसे बड़ा कारण रशिया यूक्रेन युद्ध, ओसियन फ्रेट बढ़ना, यूरोप में आई मंदी और कोविड-19 के बाद का असर है.
कोटा स्टोन के एक बड़े एक्सपोर्टर केके बंसल का कहना है कि कोटा से हो रहा सैंड स्टोन का एक्सपोर्ट अपने सबसे निम्न स्तर पर आ गया है. कोटा से होने वाले सैंड स्टोन की कुल एक्सपोर्ट पिछले सालों में 1200 करोड़ के आसपास हो रहा था, यह अब घटकर 400 करोड़ के आसपास ही रह गया है.
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एक्सपोर्ट से विदेश भेजना 800 से पहुंचा 5000 यूएस डॉलर पर: सैंडस्टोन के एक्सपोर्टर बंसल का कहना है कि विदेशों में माल भेजना अब काफी महंगा हो गया है. पहले पोर्ट से शिपिंग कॉस्ट 800 यूएस डॉलर यानी कि 60 से 70 हजार रुपए के बीच शिपिंग कॉस्ट आ रही थी. जबकि वर्तमान में यह दाम 5000 यूएस डॉलर हो गए हैं. यानी कि 1 कंटेनर को भेजने में करीब 4 लाख का किराया देना पड़ रहा है. जबकि पिछले सालों में तो यह किराया 7000 यूएस डॉलर तक पहुंच गया था. ऐसे में हमने इसका 5 लाख रुपए से अधिक तक भी किराया दिया है. इससे हमारा प्रोडक्ट विदेश में पहुंचाने का खर्चा काफी ज्यादा हो गया है.
दूसरा पत्थर और पोर्सिलेन टाइल्स पड़ रहे सस्ते: उन्होंने कहा कि कोटा के सैंड स्टोन का विदेशों में अल्टरनेट पहले नहीं था. ओसियन फ्रेट यहां से काफी कम था, तब यह कोटा से जा रहा इंडियन सैंड स्टोन काफी सस्ता उन्हें पड़ रहा था और इसकी हाई डिमांड भी वहां पर रहती थी. यह कई सारे यूरोपियन स्टोन से सस्ता भी हुआ करता था, अब वे उन्हें महंगे पड़ रहे थे.
एक्सपोर्टर बीएन गुप्ता का कहना है कि सैंड स्टोन का विदेश में पहले कोई कंपटीशन भी नहीं था. पिछले 2 साल से और पोर्सिलेन टाइल गुजरात के मोरबी, इटली, स्पेन और टर्की से बनकर जा रही है, जब भी कोई नया प्रोडक्ट आता है, तो लोग उसकी तरफ जरूर जाते हैं. उसका इंपैक्ट भी काफी आया है. यह हमारे पत्थर को कंपटीशन दे रही है.
यूके में बढ़ गई लिविंग कॉस्ट, यहां लोग हो गए बेरोजगार: रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूके के देशों में गैस और कोयल की सप्लाई पर काफी फर्क पड़ा है. दोनों ही देशों से यहां पर यह सप्लाई बड़े स्तर पर होती थी. जिसके चलते बिजली और गैस के दामों में काफी बढ़ोतरी यूके में हुई है. इसी के चलते सेंड स्टोन की डिमांड भी कम हुई है. जिससे वहां के लोगों की लिविंग कॉस्ट भी काफी बढ़ गई है. वहां के लोग एक्सपोर्ट नहीं कर पा रहे हैं. वहीं, यूके में कोविड-19 के बाद का असर भी इस इंडस्ट्री पर पड़ा है. उन्होंने कहा कि इस इंडस्ट्री में जिससे बेरोजगारी भी काफी ज्यादा बढ़ गई है. हम लोगों को काम नहीं दे पा रहे हैं. बेरोजगार होने वाले लोगों में कारीगर, मशीन मैन, ऑपरेटर, सुपरवाइजर, स्टॉक मैनेजर, बेलदार, पेटी उठाने वाले मजदूर, क्रेन चालक और सिक्योरिटी गार्ड सहित कई लोग हैं. भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया, बूंदी के बुधपुरा, डाबी, धनेश्वर, कोटा के रानपुर, एमपी के ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, गंजबासौदा और सागर इलाके में सेंड स्टोन एक्सपोर्ट का काम प्रभावित हुआ है.
7 कलर के सैंड स्टोन की थी विदेशों में डिमांड: एक्सपोर्टर बीएन गुप्ता का कहना है कि अधिकांश पत्थर बूंदी जिले के डाबी और बुधपुरा, भीलवाड़ा के बिजोलिया में निकलता है. इसके अलावा एक्सपोर्ट होने वाले पत्थर में मध्य प्रदेश के ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, सागर, गंज बासौदा से भी आता है. सैंडस्टोन का सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट यूके, ऑस्ट्रेलिया और गल्फ के देशों में होता है. सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट यूके में हो रहा था. यूके में 75 फीसदी सैंड स्टोन का एक्सपोर्ट होता था. शेष 25 परसेंट में बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, यूके, कनाडा, आयरलैंड, नीदरलैंड और गल्फ कंट्रीज शामिल हैं. करीब 7 से 8 तरह का कलर के पत्थर ज्यादा एक्सपोर्ट होते हैं. इनमें रेड, ग्रीन, ग्रे, बफ, मिंट, ब्राउन और ब्लैक शामिल है. यूके में सभी कलर के पत्थर की मांग रहती है. जबकि गल्फ कंट्रीज यूएई, कतर, दुबई, सऊदी अरब में लाल पत्थर की डिमांड रहती है.
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कोविड-19 के दौरान बढ़ गया था एक्सपोर्ट: एक्सपोर्टर बंसल के अनुसार हर साल जहां पर 1000 से 1200 करोड़ का माल कोटा से विदेशों में भेजा जाता था. वहीं अब यह महज 300 से 400 करोड़ रुपए के आसपास का माल ही एक्सपोर्ट हो पाता है. साथ ही कोविड-19 के 2 सालों में सेंड स्टोन की भारी डिमांड विदेशों में थी. जिसके चलते बड़े हुए ओसियन फ्रेट से भी काफी माल विदेशों में भेजा गया है. पिछले 2 सालों में यह डिमांड 1500 से 1800 करोड़ के आसपास थी. कोविड-19 के दौरान ओसियन फ्रेट ज्यादा होने के बावजूद भी सेंड स्टोन की काफी ज्यादा डिमांड थी. ऐसे में सेंड स्टोन का एक्सपोर्ट भी काफी बढ़ा था, लेकिन अब बिल्कुल न्यूनतम स्तर पर आ गया है.
अगले एक-दो साल चल सकती है यूरोप की मंदी: एक्सपोर्टर बीएल गुप्ता का कहना है कि सेंड स्टोन की यह मंदी अगले एक 2 साल जारी रह सकती है. जब तक यूरोप के हालात ठीक नहीं होंगे, कोटा के सेंड स्टोन को झटका सहना पड़ेगा. काफी मात्रा में स्ट्रोक हमारे पास है, लेकिन डिमांड नहीं आ रही है. पत्थर अचानक से खदान में नहीं निकलता है. बारिश के सीजन में माइनिंग बंद हो जाती है और एक्सपोर्ट के लिए पत्थर को तैयार करके भी रखना पड़ता है. यह स्टॉक का पत्थर बड़ी मात्रा में एक्सपोर्टर के पास है. जिसमें उनका करोड़ों रुपया डंप हो गया है. इसी तरह से विदेशों में हमारे डिस्ट्रीब्यूटर के पास भी बड़ी मात्रा में माल डंप पड़ा हुआ है. जिस की सप्लाई न के बराबर रह गई है.
पत्थर के 35 फीसदी गिर गए दाम: खनन मालिकों के अनुसार पिछले साल में सैंड स्टोन का एक्सपोर्ट अपने हाई डिमांड पर था. इसके चलते सैंड स्टोन के दाम भी काफी बढ़ गए थे, यह 40 रुपए फिट तक पहुंच गए थे. जबकि अब यह दाम एक्सपोर्ट कम होने के चलते फिर गिर गए हैं. अब 25 रुपए फिट पत्थर के दाम हो गए हैं, ऐसे में यह दाम करीब 35 फीसदी से ज्यादा गिर गए हैं. पहले जहां पर 100 कंटेनर रोज एक्सपोर्ट किए जा रहे थे, अब यह 30 के आसपास ही है.
पहले पत्थर से आधा था किराया, अब 3 गुना हुआ: एक कंटेनर में औसत करीब 5000 फीट पत्थर भेजा जाता है. ऐसे में एक पत्थर की लागत दो लाख रुपए के आसपास की होती है. इसके साथ ही कोटा से पोर्ट और पोर्ट से विदेश भेजने में ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा एक लाख रुपए के आसपास हो रहा था. ऐसे में पत्थर की लागत से ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा आधा ही था, लेकिन अब यह 3 गुना से भी ज्यादा हो गया है. जबकि एक पत्थर की कीमत कम होकर 1.15 लाख रुपए ही रह गई है. जबकि ट्रांसपोर्टेशन का किराया 4 लाख रुपए पर पहुंच गया है. ऐसे में एक कंटेनर 5 लाख 25 हजार रुपए का पड़ रहा है, जबकि पहले यह कंटेनर 3 लाख रुपये में ही पहुंच रहा था.