कोटा. पुलिस ने मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना की मदद से कोविड-19 के मरीजों के उपचार में काम आ रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी का डिकॉय ऑपरेशन किया था. इसमें दो आरोपियों, कोटा हार्ट इंस्टीट्यूट के श्रीजी अस्पताल में कार्यरत नर्सिंगकर्मी मनोज कुमार रैगर और उसके भाई मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के सामने कृष्णा लैब में कार्यरत राकेश कुमार को गिरफ्तार किया था.
इस पूरे प्रकरण की जांच कर रहे असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर विष्णु कुमार पंकज का कहना है कि जांच के लिए मनोज कुमार को कोटा हार्ट अस्पताल ले गए थे. जहां पर इंजेक्शन के बैच नंबर के अनुसार रजिस्टर का मिलान किया ह, साथ ही पूरा रिकॉर्ड देखा गया है. इसमें सामने आ रहा है कि जिन मरीजों को यह इंजेक्शन जारी हुए थे, उन्हें रजिस्टर में इंजेक्शन भी लगे दिखाए हुए हैं. इससे साफ है कि उन्हें पानी/ग्लूकोज का इंजेक्शन लगा दिया गया है और उन्हीं इंजेक्शन को कालाबाजारी कर बेचते हुए मनोज कुमार और उसका भाई राकेश गिरफ्तार हुए हैं.
कोटा हार्ट अस्पताल में था कार्यरत, वहीं से चुराए...
नर्सिंगकर्मी मनोज कुमार रैगर को पुलिस ने कालाबाजारी के मामले में गिरफ्तार किया था, जो कि 20 हजार रुपए में 2 इंजेक्शन बेच रहा था. पुलिस और ड्रग कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की जांच में सामने आया है कि मनोज कुमार रैगर के पास बरामद हुए 2 इंजेक्शन मरीज रतनलाल और माया को जारी हुए थे. इन दोनों को ही उसने पानी का इंजेक्शन लगा दिया और उनके इंजेक्शन को चुरा लिया है. इसमें मरीज रतनलाल के 8 मई और माया के इंजेक्शन 11 मई को इंजेक्शन की जगह केवल डिस्टल वाटर लगा दिया गया. इन इंजेक्शन को चुराकर मनोज ले गया. अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ. राकेश जिंदल का कहना है कि वह पुलिस जांच में सहयोग कर रहे हैं. मरीज के परिजन के सामने ही इस तरह के महंगे इंजेक्शन लगाए जाते हैं, लेकिन यह कैसे हो गया, इसकी वे भी जांच करवा रहे हैं. जिस कार्मिक ने इस कृत्य को किया है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
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मरीज को इंजेक्शन लगा या नहीं, इसकी मॉनिटरिंग नहीं...
असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर प्रहलाद मीणा का कहना है कि अस्पताल के मेडिकल स्टोर को इंजेक्शन स्टॉकिस्ट से जारी होते हैं और मरीज की गंभीरता को देखते हुए मरीज के नाम से ही इंजेक्शन जारी कर दिए जाते हैं. जिनका पूरा हिसाब-किताब रजिस्टर में बैच वाइज होता है. लेकिन मरीज को इंजेक्शन लगा या नहीं, यह चेक नहीं हो पाता है. जबकि इसके लिए एक पूरा रजिस्टर बना होता है, जिसमें मरीज को कौन-कौन सी दवा लगी है, उसका हिसाब लिखा होता है. यह आरोपी मरीज के इंजेक्शन नहीं लगाकर रजिस्टर में इंद्राज कर देते थे. इसकी किसी तरह की कोई मॉनिटरिंग अस्पताल में भी नहीं हो रही है. इसी का फायदा उठाकर मनोज कुमार रैगर ने इंजेक्शन को चुरा लिया और मरीज को पानी का इंजेक्शन लगा दिया. हालांकि, दोनों मरीज स्वस्थ्य हैं.
पुलिस जांच में जुटी, अन्य मरीजों के साथ तो नहीं किया ऐसा...
पुलिस इस मामले में भी जांच में जुटी है कि मनोज कुमार और राकेश कुमार ने अन्य मरीजों को तो इस तरह से इंजेक्शन लगा उन्हें बेच तो नहीं दिया है. ऐसे में उनकी कॉल डिटेल भी खंगाली जा रही है. साथ ही उनसे गहनता से पूछताछ भी की जा रही है कि उन्होंने पहले भी मरीजों को इस तरह से पानी के इंजेक्शन लगा दिया हों. उन्हीं इंजेक्शन की कालाबाजारी करते हुए महंगे दामों पर अन्य मरीज के परिजनों को बेंच दिया हो. साथ ही अस्पताल में कार्यरत अन्य कार्मिकों की भी भूमिका की जांच की जा रही है, क्योंकि मरीज माया के 11 मई को लगाए गए पानी के इंजेक्शन का इंद्राज रजिस्टर में दूसरे व्यक्ति नर्सिंग कार्मिक के हस्ताक्षर से हुआ है.