कोटा. यहां 'कुत्ता घर' नाम की एक जगह है. इसका नाम सुनकर शायद आपको लगे, कि यहां पर कुत्ते रहते हैं, लेकिन सीएडी सर्किल स्थित कुत्ता घर में भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए तकरीबन 80 परिवारों को आश्रय दिया गया है.
शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरक की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. यहा रह रहे लोगों का कहना है, कि शायद सरकार इनको यहां बसाकर भूल गई. शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.
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एक कमरे में चार-चार लोग
शरणार्थियों का कहना है, कि 1947 से लेकर 2020 तक इनके हालात जस के तस हैं. इन्हें इस मकान में एक कमरा और रसोई मिली थी. उसमें एक एक कमरे में चार-चार लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं. ये शरणार्थी चाहते हैं, कि सरकार इन्हें कहीं और फ्लैट या मकान मुहैया करवाए. जिससे इनकी जिंदगी थोड़ी राहतभरी हो. लेकिन तंग गलियों के छोटे-छोटे कमरों में रहना इनकी नियति बन गई है.
ऐसा नहीं है, कि सरकारी नुमाइंदे या नेता यहां नहीं आते हैं. चुनाव के वक्त इनसे कई सारे वादे किए जाते हैं. इनके सामने आश्वासन का पिटारा खोल दिया जाता है. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद फिर से इनकी वही जद्दोजहद की जिंदगी शुरू हो जाती है.
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इस परकोटे के ठीक पास में नगर निगम का आधुनिक भवन है. उसी के बाहर दशहरा मैदान है. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पूरे शहर में कार्य हो रहे हैं. लेकिन शायद चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर चरितार्थ हो रही है.
अबतक सिर्फ आश्वासन
सरकार की निगाहें इन लोगों की बदहाल जिंदगी पर नहीं पड़ रही. इन्हे इसी बात का मलाल है, कि आज भी इन्हें शरणार्थी का ही दर्जा मिला है. बंटवारे के वक्त इन लोगों ने करोड़ों की संपत्ति छोड़ दी थी और भारत आ गए थे. अब देखना यह है, कि सरकार इनका दर्द दूर करने के लिए कब कदम उठाती है.
कुत्ता घर नाम क्यों पड़ा?
इस जगह का नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा, इसका जवाब वहां रह रहे लोगों को भी नहीं पता. जानकारी के मुताबिक यह इलाका राजा रजवाड़ों के वक्त का बसा हुआ है र उस वक्त का कोई भी वर्तमान में जीवित नहीं है. जिस वजह से किसी को भी नहीं पता की इसका नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा.