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Special : 'कुत्ता घर' में नरकीय जीवन जी रहे शरणार्थी....करीब 80 परिवारों की दर्द-ए-दास्तां सुनिए... - kota kutta ghar

कोटा के सीएडी सर्कल स्थित, बटवारे के बाद 80 परिवार शरणार्थी बनकर भारत आए थे. ये शरणार्थी पुनर्वास योजना की मांग कर रहे है. लेकिन आज इनकी स्थिति काफी दयनीय बन चुकी है. ये आज भी उपेक्षा का कारण बने हुए है. इनके हालात जस के तस बने हुए है. यहां रह रहे लोगो का कहना है कि कई बार प्रशासन सर्वे कर ले जाते है. लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान नही निकला.

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सर्वे प्रपत्र 'कुत्ता घर' सीएडी सर्किल
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Published : Feb 8, 2020, 4:18 PM IST

कोटा. यहां 'कुत्ता घर' नाम की एक जगह है. इसका नाम सुनकर शायद आपको लगे, कि यहां पर कुत्ते रहते हैं, लेकिन सीएडी सर्किल स्थित कुत्ता घर में भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए तकरीबन 80 परिवारों को आश्रय दिया गया है.

शरणार्थियों की दर्द-ए-दास्तां

शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरक की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. यहा रह रहे लोगों का कहना है, कि शायद सरकार इनको यहां बसाकर भूल गई. शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.

पढ़ेंः कोटा : रात्रि चौपाल में हुई जनसुनवाई, अधिकारियों के साथ मौजूद रहे कलेक्टर

एक कमरे में चार-चार लोग

शरणार्थियों का कहना है, कि 1947 से लेकर 2020 तक इनके हालात जस के तस हैं. इन्हें इस मकान में एक कमरा और रसोई मिली थी. उसमें एक एक कमरे में चार-चार लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं. ये शरणार्थी चाहते हैं, कि सरकार इन्हें कहीं और फ्लैट या मकान मुहैया करवाए. जिससे इनकी जिंदगी थोड़ी राहतभरी हो. लेकिन तंग गलियों के छोटे-छोटे कमरों में रहना इनकी नियति बन गई है.

ऐसा नहीं है, कि सरकारी नुमाइंदे या नेता यहां नहीं आते हैं. चुनाव के वक्त इनसे कई सारे वादे किए जाते हैं. इनके सामने आश्वासन का पिटारा खोल दिया जाता है. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद फिर से इनकी वही जद्दोजहद की जिंदगी शुरू हो जाती है.

पढ़ेंः कोटा: RCL सीजन-5 का खिताब उदयपुर के नाम, 48 रनों से कोटा को हराया

इस परकोटे के ठीक पास में नगर निगम का आधुनिक भवन है. उसी के बाहर दशहरा मैदान है. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पूरे शहर में कार्य हो रहे हैं. लेकिन शायद चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर चरितार्थ हो रही है.

अबतक सिर्फ आश्वासन

सरकार की निगाहें इन लोगों की बदहाल जिंदगी पर नहीं पड़ रही. इन्हे इसी बात का मलाल है, कि आज भी इन्हें शरणार्थी का ही दर्जा मिला है. बंटवारे के वक्त इन लोगों ने करोड़ों की संपत्ति छोड़ दी थी और भारत आ गए थे. अब देखना यह है, कि सरकार इनका दर्द दूर करने के लिए कब कदम उठाती है.

कुत्ता घर नाम क्यों पड़ा?

इस जगह का नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा, इसका जवाब वहां रह रहे लोगों को भी नहीं पता. जानकारी के मुताबिक यह इलाका राजा रजवाड़ों के वक्त का बसा हुआ है र उस वक्त का कोई भी वर्तमान में जीवित नहीं है. जिस वजह से किसी को भी नहीं पता की इसका नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा.

कोटा. यहां 'कुत्ता घर' नाम की एक जगह है. इसका नाम सुनकर शायद आपको लगे, कि यहां पर कुत्ते रहते हैं, लेकिन सीएडी सर्किल स्थित कुत्ता घर में भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए तकरीबन 80 परिवारों को आश्रय दिया गया है.

शरणार्थियों की दर्द-ए-दास्तां

शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरक की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. यहा रह रहे लोगों का कहना है, कि शायद सरकार इनको यहां बसाकर भूल गई. शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.

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एक कमरे में चार-चार लोग

शरणार्थियों का कहना है, कि 1947 से लेकर 2020 तक इनके हालात जस के तस हैं. इन्हें इस मकान में एक कमरा और रसोई मिली थी. उसमें एक एक कमरे में चार-चार लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं. ये शरणार्थी चाहते हैं, कि सरकार इन्हें कहीं और फ्लैट या मकान मुहैया करवाए. जिससे इनकी जिंदगी थोड़ी राहतभरी हो. लेकिन तंग गलियों के छोटे-छोटे कमरों में रहना इनकी नियति बन गई है.

ऐसा नहीं है, कि सरकारी नुमाइंदे या नेता यहां नहीं आते हैं. चुनाव के वक्त इनसे कई सारे वादे किए जाते हैं. इनके सामने आश्वासन का पिटारा खोल दिया जाता है. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद फिर से इनकी वही जद्दोजहद की जिंदगी शुरू हो जाती है.

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इस परकोटे के ठीक पास में नगर निगम का आधुनिक भवन है. उसी के बाहर दशहरा मैदान है. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पूरे शहर में कार्य हो रहे हैं. लेकिन शायद चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर चरितार्थ हो रही है.

अबतक सिर्फ आश्वासन

सरकार की निगाहें इन लोगों की बदहाल जिंदगी पर नहीं पड़ रही. इन्हे इसी बात का मलाल है, कि आज भी इन्हें शरणार्थी का ही दर्जा मिला है. बंटवारे के वक्त इन लोगों ने करोड़ों की संपत्ति छोड़ दी थी और भारत आ गए थे. अब देखना यह है, कि सरकार इनका दर्द दूर करने के लिए कब कदम उठाती है.

कुत्ता घर नाम क्यों पड़ा?

इस जगह का नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा, इसका जवाब वहां रह रहे लोगों को भी नहीं पता. जानकारी के मुताबिक यह इलाका राजा रजवाड़ों के वक्त का बसा हुआ है र उस वक्त का कोई भी वर्तमान में जीवित नहीं है. जिस वजह से किसी को भी नहीं पता की इसका नाम कुत्ता घर क्यों पड़ा.

Intro:स्पेशल:-1947 के भारत पाक बंटवारे में पाकिस्तान से आये करीब 80 परिवार, सरकार की अनदेखी से उपेक्षाओं का शिकार हो रहे हैं।

कोटा के सीएडी सर्कल स्थित, बटवारे के बाद शरणार्थियों को आज भी उपेक्षा का कारण बने हुए है।इनके हालात जस के तस बने हुए है।एंहा रह रहे लोगो का कहना है कि कई बार प्रशासन सर्वे कर ले जाते है।लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान नही निकला।

Body:कोटा में एक जगह ऐसी भी है जिसका नाम सुनकर शायद आपको लगे कि यहां पर जो नाम है कुत्ता घर है। उसमें शायद कुत्ते रहते हो किंतु उस कुत्ता घर में इंसान रहते हैं हम बात कर रहे हैं सीएडी सर्किल स्थित कुत्ता घर की जहां पर 1947 के भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए हुए तकरीबन 80 परिवार को आश्रय दिया था।
शरणार्थी के रूप में आए हुए यह परिवार उस खंडहर मकानों में आज भी रह रहे हैं और नर की जीवन जीने पर मजबूर है इनका कहना है 1947 से लेकर 2020 तक इनकी हालात जस के तस है यह सामने आया कि जिस मकान में एक कमरा और रसोई मिली थी उसमें एक एक कमरे में चार चार लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं और शायद सरकार इनको बसाकर भूल गई इन शरणार्थियों के लिए कहीं और पुनर्वास की योजना बने इनका दर्द यह है कि उन्होंने कहीं सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया होता तो बदले में सरकार शायद इन्हें कहीं और फ्लैट या मकान मुहैया करवाती किंतु तंग गलियों के छोटे-छोटे कमरों में रहना इनकी नियति बन गई है ऐसा नहीं है कि सरकारी नुमाइंदे या नेता यहां नहीं आते हैं चुनाव के वक्त इनसे वादे किए जाते हैं इन्हें आश्वासन का पिटारा और उसके बाद फिर से इनकी वहीं जद्दोजहद के जीवन जीने की शुरू हो जाती है
इस परकोटे के ठीक पास में नगर निगम का आधुनिक भवन है और उसी के बाहर दशहरा मैदान है स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पूरे शहर में कार्य हो रहे हैं किंतु शायद चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर चरितार्थ हो रही है सरकार की निगाहें इन लोगों की नर के जीवन पर नहीं पड़ी और सरकार शायद आज भी इन्हें शरणार्थी का ही दर्जा दे रखा है इन्हें मलाल है कि अभी तक मालिकाना हक नहीं मिला।
Conclusion:इन्होंने बंटवारे के वक्त करोड़ों की संपत्ति छोड़ कर आए थे देखना यह है कि सरकार इनका दर्द तकलीफ कब दूर करने के लिए कदम उठाती है।
बाईट-दिनेश, रहवासी शरणार्थी
बाईट-जयपाल वासवानी, स्थानीय शरणार्थी
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