कोटा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मीसा और डीआरआई बंदी पेंशन पर ब्रेक लगा दी है. सोमवार को आयोजित हुई गहलोत कैबिनेट की बैठक में निर्णय लेते हुए पेंशन रोक दी. ऐसे में अब मीसा व डीआरआई बंदियों ने आंदोलन की राह पकड़ ली है. कोटा के मीसा बंदियों का कहना है कि अशोक गहलोत सरकार ने उनके बुढ़ापे की लाठी तोड़ दी है.
गौरतलब है कि ये सभी 1975 में जेल गए थे और अब इनकी उम्र 65 से 70 साल हो गई है. ऐसे में उनकी लोकतंत्र सम्मान निधि को रोक देना गलत है. इन लोगों ने कहना है कि उन्होंने जेल में यातनाएं सही है, वह 18 माह तक जेल में बंद रहे. उस समय उनका कारोबार चौपट हो गया. काम धंधा बंद हो गया. वे बेरोजगार हो गए थे और उसी के चलते भाजपा की सरकार ने उन्हें सम्मान दिया था. जिस पर भी बीच में रोक लगा दी गई थी. ऐसे में कोर्ट से जीतकर वह आए हैं और उन्हें पेंशन मिल रही थी.
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रामस्वरूप गुप्ता का कहना है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय राजस्थान और पटना हाईकोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसले दिए हैं. अब जो सरकार ने हमारी पेंशन बंद की है उसका कठोर विरोध करेंगे. इस मामले को दोबारा न्यायालय में लेकर जाएंगे और पेंशन को बहाल करवाने का काम करेंगे. मीसाबंदी पुरुषोत्तम नायक की पत्नी द्रौपदी का कहना है कि उनके पति आपातकाल में जेल गए, तब उन्हें भी परेशानियां हुई. कैंसर से पति की मौत हो गई है और बच्चे भी बेरोजगार हैं. ऐसे में उनके रोजगार का साधन यह पेंशन ही थी. अब वे गुजारा कैसे चलाएंगे. यह समस्या उनके सामने खड़ी हो जाएगी.
राधाकृष्ण शर्मा का कहना है आपातकाल के समय इन लोगों के साथ जुल्म हुआ था. इनका परिवार आपातकाल के समय ही टूट गया था. ये लोग उससे ही उभर नहीं पाए हैं. अब इस पेंशन को रोक देने से यह लोग और उजड़ जाएंगे. इनमें से कई लोग अस्पतालों में हैं, वे चल फिर नहीं सकते. महिलाएं विधवा हो चुकी हैं और उनके इनकम का कोई स्रोत नहीं है. सरकार को अपना निर्णय वापस लेना चाहिए.