ETV Bharat / city

एक जासूस, तीन कहानियां : घरवालों ने पत्नी को ही मान लिया था जासूस का कातिल

पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले महमूद अंसारी की कहानी चर्चा में है. महमूद अंसारी जब पाकिस्तान के जेल में यातनाएं झेल रहे थे, तब उनकी पत्नी ससुराल में लोगों के ताने झेल रही थी. अंसारी के अचानक गायब होने के बाद ससुराल पक्ष ने यही माना कि पत्नी ने ही अंसारी को मरवा दिया है. इसी शक में वहीदन कई तरह की यातनाओं से गुजरती रहीं, लेकिन फिर एक चिट्ठी ने सबकुछ बदलकर रख दिया.

Mahmood Ansari who Returned from Pakistan
घरवालों ने पत्नी को ही मान लिया था जासूस का कातिल
author img

By

Published : Sep 14, 2022, 9:28 PM IST

Updated : Sep 14, 2022, 10:29 PM IST

कोटा. पूर्व जासूस महमूद अंसारी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उनकी कहानी भी एक बार फिर सबके सामने है. महमूद अंसारी कब जासूसी करने लगे, इसके बारे में उनके परिवार में किसी को पता नहीं था. लेकिन जब पाकिस्तान में सिक्रेट मिशन के दौरान वे पकड़े गए तो वहां अंसारी ने यातनाएं झेली तो यहां भारत में पत्नी वहीदन का संघर्ष भी बढ़ गया. महमूद की कोई खबर नहीं मिलने पर ससुराल पक्ष ने पत्नी वहीदन को ही कातिल समझ लिया. जिसके कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा.

वहीदन उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि साल 1976 में जब अचानक महमूद अंसारी चले गए और दो साल तक कोई खबर नहीं मिली तो परिवार में उनके लिए संकट बढ़ गया. उन्होंने कहा कि ससुराल के बड़े बुजुर्गों ने मुझ पर ही शक किया और कहा कि इसने ही कुछ करवा दिया होगा. वहीदन कहती हैं कि मैं 11 माह की बच्ची फातिमा को लेकर दर-दर भटकती रही. हमने तो इन्हें मरा हुआ समझ लिया था कि कोई एक्सीडेंट हो गया होगा और हमें जानकारी नहीं मिल पा रही है.

घरवालों ने पत्नी को ही मान लिया था जासूस का कातिल...

एक चिट्ठी से खुला राज : वहीदन अंसारी का कहना है कि उन्हें महमूद अंसारी के पाकिस्तान में जाकर जासूसी करने के बारे में भी पता नहीं था, उन्होंने कभी भी इस सीक्रेट मिशन के बारे में हमें बताया भी नहीं था. हालांकि, उनके गायब होने के दो साल बाद (Struggle of Mahmood Ansari Wife) अचानक एक चिट्ठी आई. इसी चिट्ठी ने उनके पति की जासूस होने का राज खोला. इसके बाद हमने चिट्ठी के जरिए ही उनसे पाकिस्तान जेल में संपर्क किया और मेरे भाई जो उस समय केनिया में थे, उनकी मदद से हमने इनका केस भी वहां पर दोबारा शुरू करवाया.

वहीदन का कहना है कि मैंने (Wife of Mahmood Ansari) कोटा में छोटे-मोटे मजदूरी से लेकर कपड़े व सब्जी बेचना, सिलाई, बीड़ी बनाने से लेकर कई काम किए हैं. बेटी फातिमा को पढ़ाया लिखाया और इससे कई ज्यादा गुना खर्चा पाकिस्तान जेल में बंद महमूद अंसारी के लिए भेजा जाता था. उन्हें जरूरत के सामान भेजते थे. पति महमूद अंसारी के वापस आने के बाद भी उनको नौकरी पर दोबारा लगाने के लिए भी काफी खर्चा किया है, लेकिन उसका कोई फल हमें नहीं मिला.

पढ़ें : एक जासूस, तीन कहानियां : पाकिस्तानियों ने जेल में इतना टॉर्चर किया कि फिर बाप भी नहीं बन सके

घर के जेवर से लेकर फर्नीचर तक सब बिक गया : महमूद अंसारी की बेटी फातिमा का कहना है कि पूरे मामले में (Story of Mahmood Ansari) हमारे घर का फर्नीचर से लेकर जेवर तक सब बिक गया. यहां तक घर का छोटा-मोटा सभी सामान भी हमारे पास नहीं रहा. वापस आने के बाद पिता के पास नौकरी नहीं थी और वह छोटे-मोटे रोजगार करते रहे. मां ने उनको काम धंधा लगवाने के लिए भी काफी मेहनत की और अपने पास की सारी जमा पूंजी भी खर्च कर दी. इसके पहले भी मां ने छोटे-मोटे सभी काम किए और उनसे जो पैसा आता था.

उससे हमारा खाने पीने और मेरी पढ़ाई का खर्चा होता. इसके बाद बचा हुआ सारा पैसा पाकिस्तान जेल में बंद पापा को सामान भेजने में खर्च हो जाता था. उनको तेल, साबुन, कपड़े से लेकर सभी सामान यहीं से भेजा जा रहा था. उनका आरोप है कि इस दौरान न तो भारत सरकार ने हमारी मदद की, न डाक विभाग आगे आया. हमारे पास एक छोटा प्लॉट बसंत विहार में भी था, वह भी बिक गया. फातिमा का कहना है कि मेरे पिता परिवार में सबसे बड़े थे. ऐसे में चाचा और बुआ की पढ़ाई का खर्चा भी उनके ऊपर ही था. पिता एकमात्र कमाने वाले थे, लेकिन वह जब पाकिस्तान जेल में गए तो डाक विभाग से तनख्वाह बंद हो गई और पूरा परिवार ही पिछड़ गया. आज उनके भाई पढ़ाई पूरी नहीं होने के चलते छोटे-मोटे रोजगार से ही जुड़े हुए हैं.

परिवार का पत्नी पर ही हत्या का शक : वहीदन का कहना है कि इनके गायब होने के बाद हमारी स्थिति (Condition of Mahmood Ansari Family) काफी खराब थी. रिश्तेदारों व बड़े बुजुर्गों ने टॉर्चर किया. मुझे जेल में बंद करवाने और पुलिस को सुपुर्द करने की तैयारी थी. मुझे कहा गया कि इसने हमारे लड़के को मरवा दिया है. हालांकि, लेटर आने के बाद मैंने भी इन्हें पत्र लिखा और फिर आपस में इस तरह से बातचीत होती रही. फातिमा का कहना है कि मैं जबसे समझने लगी, तबसे मेरी मां काफी दुखी रहती थी, हमेशा रोती ही रहती थी. मुझे भी काफी अजीब लगता था. मेरे पिता जेल में क्यों हैं और पाकिस्तान क्या करने गए थे.

पढ़ें : एक जासूस, तीन कहानियां : पाक से छूटे तो अपने ही देश में किया 32 साल संघर्ष, सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

बाद में समझ आया कि वह जासूसी करने देश के लिए गए थे और वहीं फंस गए. मेरे माता-पिता और मेरे बचपन के दुखों की कहानी को शब्दों में भी बयां नहीं कर सकती हूं. पिता को भारत सरकार ने पाकिस्तान से छुड़ाने के लिए भी कोई मदद नहीं की. हमारे घर पर कई सारे कागज हैं, जो मेरे पिता की देशभक्ति का सबूत हैं. मैं बड़ी हुई तब सामने आया कि जेल जाना कोई अच्छा नहीं माना जाता. चाहे देश भक्ति के लिए ही हो. कोई इस बात को नहीं समझ रहे थे कि मेरे पिता देश भक्ति के लिए पाकिस्तान गए और वहां गिरफ्तार हो गए.

सब नेगेटिव बोलते थे, बुरी कंडीशन से गुजरे : फातिमा का कहना है कि जब पिता जासूसी करते हुए पकड़े गए, तब कुछ लोग पॉजिटिव तो कुछ नेगेटिव थे. लोग मुंह पर सही बोलते थे, लेकिन पीछे से नेगेटिव ही बोलते थे. ज्यादातर नेगेटिव ही सहा है, जिसे हम बयां भी नहीं कर सकते हैं. पिता की सरकारी नौकरी होने के बावजूद हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं. आज मेरे माता पिता के पास कोई सेविंग भी नहीं है, जबकि लाखों का कर्जा है. पिता के पास वापस आने के बाद नौकरी नहीं थी. ऐसे में उन्होंने पासपोर्ट बनवाने व गैस कनेक्शन दिलवाने के मीडिएटर का काम किया. स्टेशन से एरोड्रम तक साइकिल से जाते और मोटर मार्केट में मुंशी का काम किया. आज भी उनके पास कुछ नहीं है, वह बुरी कंडीशन से गुजर रहे हैं. मेरी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि मैं उनकी पूरी मदद कर सकूं.

10 लाख की मदद से कुछ नहीं होगा : फातिमा का कहना है कि मेरे माता-पिता काफी बीमार रहते हैं. पिता के ऊपर बहुत कर्जा भी हो गया है. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है. किसी की पूरी जिंदगी का मुआवजा 10 लाख नहीं हो सकता, देशभक्ति की कोई कीमत नहीं होती है तो उसको इस राशि में कैसे जोड़ सकते हैं. इससे बीमारी का कर्ज भी नहीं चुकेगा. सर्विस का पैसा या पेंशन मिलती, तो बाकी की जिंदगी भी अच्छे से गुजर जाती. भारत सरकार को योगदान देना चाहिए. उनकी जिम्मेदारी भी बनती है. हमने 32 साल में न्याय के लिए जो लड़ाई लड़ी है, इंसाफ की उम्मीद में सब कुछ बेच दिया है. घर के पंखे व सिलाई मशीन तक बिक गए.

कोटा. पूर्व जासूस महमूद अंसारी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उनकी कहानी भी एक बार फिर सबके सामने है. महमूद अंसारी कब जासूसी करने लगे, इसके बारे में उनके परिवार में किसी को पता नहीं था. लेकिन जब पाकिस्तान में सिक्रेट मिशन के दौरान वे पकड़े गए तो वहां अंसारी ने यातनाएं झेली तो यहां भारत में पत्नी वहीदन का संघर्ष भी बढ़ गया. महमूद की कोई खबर नहीं मिलने पर ससुराल पक्ष ने पत्नी वहीदन को ही कातिल समझ लिया. जिसके कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा.

वहीदन उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि साल 1976 में जब अचानक महमूद अंसारी चले गए और दो साल तक कोई खबर नहीं मिली तो परिवार में उनके लिए संकट बढ़ गया. उन्होंने कहा कि ससुराल के बड़े बुजुर्गों ने मुझ पर ही शक किया और कहा कि इसने ही कुछ करवा दिया होगा. वहीदन कहती हैं कि मैं 11 माह की बच्ची फातिमा को लेकर दर-दर भटकती रही. हमने तो इन्हें मरा हुआ समझ लिया था कि कोई एक्सीडेंट हो गया होगा और हमें जानकारी नहीं मिल पा रही है.

घरवालों ने पत्नी को ही मान लिया था जासूस का कातिल...

एक चिट्ठी से खुला राज : वहीदन अंसारी का कहना है कि उन्हें महमूद अंसारी के पाकिस्तान में जाकर जासूसी करने के बारे में भी पता नहीं था, उन्होंने कभी भी इस सीक्रेट मिशन के बारे में हमें बताया भी नहीं था. हालांकि, उनके गायब होने के दो साल बाद (Struggle of Mahmood Ansari Wife) अचानक एक चिट्ठी आई. इसी चिट्ठी ने उनके पति की जासूस होने का राज खोला. इसके बाद हमने चिट्ठी के जरिए ही उनसे पाकिस्तान जेल में संपर्क किया और मेरे भाई जो उस समय केनिया में थे, उनकी मदद से हमने इनका केस भी वहां पर दोबारा शुरू करवाया.

वहीदन का कहना है कि मैंने (Wife of Mahmood Ansari) कोटा में छोटे-मोटे मजदूरी से लेकर कपड़े व सब्जी बेचना, सिलाई, बीड़ी बनाने से लेकर कई काम किए हैं. बेटी फातिमा को पढ़ाया लिखाया और इससे कई ज्यादा गुना खर्चा पाकिस्तान जेल में बंद महमूद अंसारी के लिए भेजा जाता था. उन्हें जरूरत के सामान भेजते थे. पति महमूद अंसारी के वापस आने के बाद भी उनको नौकरी पर दोबारा लगाने के लिए भी काफी खर्चा किया है, लेकिन उसका कोई फल हमें नहीं मिला.

पढ़ें : एक जासूस, तीन कहानियां : पाकिस्तानियों ने जेल में इतना टॉर्चर किया कि फिर बाप भी नहीं बन सके

घर के जेवर से लेकर फर्नीचर तक सब बिक गया : महमूद अंसारी की बेटी फातिमा का कहना है कि पूरे मामले में (Story of Mahmood Ansari) हमारे घर का फर्नीचर से लेकर जेवर तक सब बिक गया. यहां तक घर का छोटा-मोटा सभी सामान भी हमारे पास नहीं रहा. वापस आने के बाद पिता के पास नौकरी नहीं थी और वह छोटे-मोटे रोजगार करते रहे. मां ने उनको काम धंधा लगवाने के लिए भी काफी मेहनत की और अपने पास की सारी जमा पूंजी भी खर्च कर दी. इसके पहले भी मां ने छोटे-मोटे सभी काम किए और उनसे जो पैसा आता था.

उससे हमारा खाने पीने और मेरी पढ़ाई का खर्चा होता. इसके बाद बचा हुआ सारा पैसा पाकिस्तान जेल में बंद पापा को सामान भेजने में खर्च हो जाता था. उनको तेल, साबुन, कपड़े से लेकर सभी सामान यहीं से भेजा जा रहा था. उनका आरोप है कि इस दौरान न तो भारत सरकार ने हमारी मदद की, न डाक विभाग आगे आया. हमारे पास एक छोटा प्लॉट बसंत विहार में भी था, वह भी बिक गया. फातिमा का कहना है कि मेरे पिता परिवार में सबसे बड़े थे. ऐसे में चाचा और बुआ की पढ़ाई का खर्चा भी उनके ऊपर ही था. पिता एकमात्र कमाने वाले थे, लेकिन वह जब पाकिस्तान जेल में गए तो डाक विभाग से तनख्वाह बंद हो गई और पूरा परिवार ही पिछड़ गया. आज उनके भाई पढ़ाई पूरी नहीं होने के चलते छोटे-मोटे रोजगार से ही जुड़े हुए हैं.

परिवार का पत्नी पर ही हत्या का शक : वहीदन का कहना है कि इनके गायब होने के बाद हमारी स्थिति (Condition of Mahmood Ansari Family) काफी खराब थी. रिश्तेदारों व बड़े बुजुर्गों ने टॉर्चर किया. मुझे जेल में बंद करवाने और पुलिस को सुपुर्द करने की तैयारी थी. मुझे कहा गया कि इसने हमारे लड़के को मरवा दिया है. हालांकि, लेटर आने के बाद मैंने भी इन्हें पत्र लिखा और फिर आपस में इस तरह से बातचीत होती रही. फातिमा का कहना है कि मैं जबसे समझने लगी, तबसे मेरी मां काफी दुखी रहती थी, हमेशा रोती ही रहती थी. मुझे भी काफी अजीब लगता था. मेरे पिता जेल में क्यों हैं और पाकिस्तान क्या करने गए थे.

पढ़ें : एक जासूस, तीन कहानियां : पाक से छूटे तो अपने ही देश में किया 32 साल संघर्ष, सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

बाद में समझ आया कि वह जासूसी करने देश के लिए गए थे और वहीं फंस गए. मेरे माता-पिता और मेरे बचपन के दुखों की कहानी को शब्दों में भी बयां नहीं कर सकती हूं. पिता को भारत सरकार ने पाकिस्तान से छुड़ाने के लिए भी कोई मदद नहीं की. हमारे घर पर कई सारे कागज हैं, जो मेरे पिता की देशभक्ति का सबूत हैं. मैं बड़ी हुई तब सामने आया कि जेल जाना कोई अच्छा नहीं माना जाता. चाहे देश भक्ति के लिए ही हो. कोई इस बात को नहीं समझ रहे थे कि मेरे पिता देश भक्ति के लिए पाकिस्तान गए और वहां गिरफ्तार हो गए.

सब नेगेटिव बोलते थे, बुरी कंडीशन से गुजरे : फातिमा का कहना है कि जब पिता जासूसी करते हुए पकड़े गए, तब कुछ लोग पॉजिटिव तो कुछ नेगेटिव थे. लोग मुंह पर सही बोलते थे, लेकिन पीछे से नेगेटिव ही बोलते थे. ज्यादातर नेगेटिव ही सहा है, जिसे हम बयां भी नहीं कर सकते हैं. पिता की सरकारी नौकरी होने के बावजूद हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं. आज मेरे माता पिता के पास कोई सेविंग भी नहीं है, जबकि लाखों का कर्जा है. पिता के पास वापस आने के बाद नौकरी नहीं थी. ऐसे में उन्होंने पासपोर्ट बनवाने व गैस कनेक्शन दिलवाने के मीडिएटर का काम किया. स्टेशन से एरोड्रम तक साइकिल से जाते और मोटर मार्केट में मुंशी का काम किया. आज भी उनके पास कुछ नहीं है, वह बुरी कंडीशन से गुजर रहे हैं. मेरी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि मैं उनकी पूरी मदद कर सकूं.

10 लाख की मदद से कुछ नहीं होगा : फातिमा का कहना है कि मेरे माता-पिता काफी बीमार रहते हैं. पिता के ऊपर बहुत कर्जा भी हो गया है. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है. किसी की पूरी जिंदगी का मुआवजा 10 लाख नहीं हो सकता, देशभक्ति की कोई कीमत नहीं होती है तो उसको इस राशि में कैसे जोड़ सकते हैं. इससे बीमारी का कर्ज भी नहीं चुकेगा. सर्विस का पैसा या पेंशन मिलती, तो बाकी की जिंदगी भी अच्छे से गुजर जाती. भारत सरकार को योगदान देना चाहिए. उनकी जिम्मेदारी भी बनती है. हमने 32 साल में न्याय के लिए जो लड़ाई लड़ी है, इंसाफ की उम्मीद में सब कुछ बेच दिया है. घर के पंखे व सिलाई मशीन तक बिक गए.

Last Updated : Sep 14, 2022, 10:29 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.