कोटा. राजस्थान में कोटा का जेके लोन अस्पताल 2019 और 2020 में नवजात शिशु की मौत (infants death in Kota JK Loan hospital in 2019) के मामले में बदनाम रहा. यह देशभर में सुर्खियों में भी छाया रहा, लेकिन उसके बाद में अस्पताल में आमूलचूल बदलाव हुए हैं. नवजात बच्चों के अलावा हर उम्र के बच्चों के उपचार की सुविधाएं बढ़ी हैं, साथ ही उपचार के दौरान बच्चों की मौत के मामले भी कम हुए हैं. इनकी दर काफी कंट्रोल में रही है.
हालात ऐसे बन गए हैं कि जेके लोन अस्पताल (Kota JK Loan) अब एक मॉडल अस्पताल के रूप में सामने आ गया है. अस्पताल की फोटो हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर इसे मॉडल अस्पताल बनने पर (CM Gehlot shared photos of Kota JK Loan hospital) खुशी जाहिर की थी. इसके साथ ही जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद हर साल बाल अधिकार विभाग के साथ-साथ केंद्र से भी कई टीमें आई हैं. सभी ने अस्पताल की तारीफ की है. अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत में 2020 के मुकाबले 2022 में 60 फीसदी की कमी आई है, जबकि पीआईसीयू में होने वाली मौतों के मामले में 47 फीसदी की कमी है.
जिस तरह से जेके लोन अस्पताल में बीते 1 साल में यह सब कुछ बदलाव किया है. इससे देश और प्रदेश के अन्य अस्पतालों के लिए यह मॉडल बन सकता है. मेडिकल कॉलेज कोटा में शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृता मयंगर का कहना है कि अस्पताल में 2020 में नवजात बच्चों की मौत का प्रतिशत 17.64 था, जिसे उन्होंने कम कर अब 7.29 पर ले आए हैं. अब 5 फीसदी से भी नीचे लाने के लिए जुटे हुए हैं. वर्तमान में भी यह (Infants Death Rate Decreased in Jk Loan) मृत्यु दर देश के सभी बड़े इंस्टिट्यूट के बराबर ही है, जहां पर गंभीर बीमार और रेफर होकर मरीज पहुंचते हैं. ये अधिकांश सीरियस स्थित में होते हैं.
करोड़ों से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार उपकरण भी 5 गुना बढ़े : अस्पताल में सरकार ने करोड़ों रुपए का खर्च कर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करवाया है. अस्पताल में पेड़ों की संख्या भी दोगुनी हो गई है. अभी निर्माण कार्य जारी है, जिसमें और बढ़ोतरी हो जाएगी. इसके अलावा उपकरणों में 5 गुना तक वृद्धि हो गई है. इसके अलावा जीवन रक्षक उपकरण भी बड़ी संख्या में खरीदे गए हैं. जिसके बाद अस्पताल के हालात आज काफी अच्छे हैं. आज की तारीख में अस्पताल के पास में एक्सिस जीवन रक्षक उपकरण है, ताकि कोई भी उपकरण खराब होने पर दूसरे का उपयोग लिया जा सके. सभी उपकरणों की मेंटेनेंस का कांटेक्ट है. कुछ भी खराब होने पर तुरंत दुरुस्त हो रहा है. इसके लिए भी कार्मिकों की जिम्मेदारी तय कर दी गई है.
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बच्चों के उपचार के लिए बनाए हैं प्रोटोकॉल : डॉ. अमृता मयंगर का कहना है कि हमें काफी अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर बना कर दिया गया है. एनआईसीयू बेड भी हमारे बढ़ गए हैं. अभी स्ट्रैंथ 114 आईसीयू की है. यह और बढ़ेगी. मरीजों के उपचार के लिए कई नई प्रैक्टिस भी हमने चालू कर दी है. सभी प्रोटोकॉल को स्ट्रिक्टली फॉलो कर रही किया जा रहा है. हैंड वॉशिंग व एसेप्सिस पर हमारा ध्यान है. अटेंडेंस की एंट्री को हमने बंद भी नहीं किया है, लेकिन कई प्रोटोकॉल उनके लिए तैयार कर दिए हैं. जिसके तहत 2 घंटे एंट्री मिलती है, फिर 2 घंटे उन्हें बाहर कर दिया जाता है. बच्चे के पास में मां मौजूद रहने पर उसे कंगारू केयर के अलावा फीडिंग और सार संभाल करती है. इसके बाद में वह बाहर चली जाती है. हमने विभाग के सभी नर्सिंग स्टाफ की पूरी ट्रेनिंग कराई है, ताकि नवजात बच्चों को किस तरह से केयर की जा सके. साथ ही लगातार इन स्टाफ को मोटिवेट किया जाता है. उन्हें मोब्लाइज किया जाता है. डॉक्टर मरीज को राउंड पर पर्सनली जाकर देखते हैं. रेजीडेंट डॉक्टरों का भी काफी सहयोग है.
भर्ती होने के बाद स्टाफ की है पूरी जिम्मेदारी : नवजात या शिशु के एक बार भर्ती हो जाने के बाद अस्पताल के स्टाफ और चिकित्सकों की जिम्मेदारी हो जाती है. उसकी केयर के लिए जरूरी प्रोटोकॉल को फॉलो किया जाता है. जरूरत पड़ने पर कोई जांच अगर करवानी है तो नवजात को स्टाफ ही लेकर जा रहा है. पहले परिजनों को सुपुर्द कर दिया जाता था. उपचार में किसी भी तरह की जरूरत होने पर चिकित्सक ही उसे लेकर जाते हैं. यानी सीरियस बच्चे को अगर सीटी स्कैन कराना है तो उसके साथ में डॉक्टर और अस्पताल का स्टाफ जरूर जाएगा. नवजात ऑक्सीजन पर है और एम्बू बैग की भी जरूरत है. उसके साथ पूरी तरह से मॉनिटर और अन्य संसाधन लगाकर ही नवजात को भेजा जाता है.
नवजात की डेथ ऑडिट बनी सहारा, रख रहे मॉनिटरिंग : एचओडी डॉ. मयंगर का कहना है कि अस्पताल में डेथ ऑडिट हमने शुरू कर दी है. हर हर बच्चे की मौत को गंभीरता से लिया जाता है. इस पर हम गहन चिंतन करते हैं, ताकि अगली बार उस तरह के केस में किस तरह से स्टेप उठाए जा सकें. सभी टीम मेंबर्स बैठकर यह भी जानकारी जुटाते हैं कि नवजात किस स्थित में आया था. क्या इलाज लिया है, क्या जांच की है, साथ ही क्या बेहतर कर सकते हैं, क्या कारण उसमें छूट गए है, कोई जांच हम करा सकते थे ? कौन सा ऐसा पहलू था, जो उन्होंने ट्रीटमेंट के पार्ट में नहीं जोड़ा था. उस पर गहन विश्लेषण करके, इससे बच्चे की किस स्थिति में मौत हुई है, यह पता चल जाता है. उसी स्थिति में आने वाले अगले बच्चे पर ज्यादा फोकस होकर ध्यान दिया जाता है.
रिकॉर्ड 32 दिन में बनाया नया एनआईसीयू : अस्पताल के उपाधीक्षक और शिशु रोग विभाग के चिकित्सक डॉ. गोपी किशन शर्मा का कहना है कि राज्य सरकार ने कई तरह का बजट हमारे लिए जारी किया. उसकी मदद से अस्पताल में नवजात शिशुओं की केयर पर काफी कुछ ध्यान दिया गया. जनवरी से हमने कार्य शुरू किया पहले 32 दिनों में ही 40 बेड का एनआईसीयू बनाया. जिसके लिए दो करोड़ से ज्यादा रुपए जारी किए गए थे. इसके बाद फेज वाइज एनआईसीयू तैयार करवा दिए गए, साथ ही मदर बेबी वार्ड भी बनकर तैयार करवाया गया है. प्रतीक्षालय, प्ले एरिया व कई सारी मशीनों को हमने खरीदा है. यह जीवन रक्षक मशीन है. देश के बड़े अस्पतालों के एनआईसीयू की तरह की कोटा के जेके लोन अस्पताल में सुविधा मौजूद है. जिस तरह से 32 दिन में नया एनआईसीयू तैयार किया, उसी तरह से व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन पूरे 1 साल में हुआ है.
3 फीसदी के नीचे पहुंचाने का लक्ष्य : अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. शर्मा का कहना है कि अस्पताल में सुविधाओं में विस्तार और बेड कैपेसिटी बढ़ जाने के बाद चिकित्सकों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है. इसकी बदौलत 2019 में नवजात की उपचार के दौरान जो मौत हो रही थी, यह दर 2021 में गिरकर 3.8 फीसदी पर पहुंच गई. वहीं, 2022 में यह दर 3.5 फीसदी है, जबकि शुरुआत में यह 7 फीसदी के आस पास रहती थी. अब इसे 3 फीसदी से भी कम पहुंचाने का लक्ष्य है. इस साल 2022 में जनवरी, फरवरी व मार्च में काफी कम हो गई है. यह 3.5 फीसदी के आसपास आ गई है. यह पहले करीब 7 फीसदी से भी ऊपर थी.
अस्पताल का बीते सालों का रिकॉर्ड :
साल | ओपीडी | आईपीडी | मौत | प्रतिशत |
2020 | 38000 | 9360 | 963 | 6.87 |
2021 | 66729 | 19585 | 739 | 3.77 |
2022 | 15115 | 4424 | 155 | 3.50 |
पीआईसीयू का आंकड़ा :
साल | भर्ती | मौत | प्रतिशत |
2020 | 1971 | 261 | 13.64 |
2021 | 3367 | 281 | 8.34 |
2022 | 572 | 42 | 7.34 |
पीआईसीयू का आंकड़ा :
साल | भर्ती | मौत | प्रतिशत |
2020 | 3783 | 667 | 17.63 |
2021 | 5826 | 456 | 7.82 |
2022 | 1549 | 113 | 7.29 |
(नोट : 2022 का आंकड़ा 28 मार्च तक का है)