कोटा. शिक्षा नगरी के नाम से मशहूर कोटा में हर साल अपने सपनों को पूरा करने के लिए लाखों बच्चे आते हैं. ये शहर जहां बच्चों के सपनों को (Students dies by suicide in Kota) उड़ान देने के लिए अपनी खास पहचान रखता है तो वहीं इसपर सुसाइड का दाग भी है. बीते 7 महीने में 10 बच्चों ने आत्महत्या की है. बच्चों के सुसाइड के बीच एक बार फिर कोटा कोरोना के हालात से पहले वाले रास्ते पर जाता नजर आ रहा है.
कोटा में कोचिंग छात्रों के सुसाइड की बात की जाए तो मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए आने वाले छात्रों में 2011 से अब तक 150 बच्चों ने आत्महत्या की है. हालांकि इनमें पढ़ाई के स्ट्रेस के अलावा अन्य कई कारण भी सामने आए हैं. जिनमें माता-पिता से दूर एकांकी रहना, अफेयर, मोबाइल इंटरनेट गेम एडिक्शन, पारिवारिक संकट और नशे की प्रवृत्ति के अलावा कई अन्य कारण भी हैं.
दूसरी तरफ माता पिता का बच्चे को मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस में इंटरेस्ट नहीं होने के बावजूद भी यहां पर भेजना और फॉर्स करना भी आत्महत्या के कारणों में सामने आया है. साथ ही कोचिंग में पिछड़ जाना और उसका बेच शिफ्टिंग, अच्छी परफॉर्मेंस नहीं होना और नीट और जेईई जैसी राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं में सफल नहीं होना भी सुसाइड के कारणों में शामिल रहे हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो 2011 में 6 सुसाइड हुए थे. यह संख्या बीते 11 सालों में अब तक 150 पहुंची है. आंकड़ों पर नजर डालें तो 2011 में 6 सुसाइड हुए थे. इसके बाद 2012 में 11, 2013 में 26, 2014 में 14, 2015 में 23, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4, 2021 में 4 और 2022 में अब तक 10 सुसाइड शामिल है. यह संख्या बीते 11 साल में अब तक 150 पहुंची हैं.
कोरोना में स्टूडेंट के नहीं होने के चलते गिर गया था आंकड़ाः बीते दो सालों में कोविड-19 के कारण कोचिंग के छात्रों में काफी गिरावट आ गई थी. पहले बच्चों को यहां से अपने घरों पर भेज दिया गया था. इसके बाद कोचिंग संस्थान बंद होने के चलते बच्चे भी नहीं आए थे, वह ऑनलाइन ही पढ़ रहे थे. इस कारण यहां पर सुसाइड की संख्या कम हो गई थी. बीते 2020 और 2021 में महज आठ कोचिंग स्टूडेंट्स के सुसाइड के मामले सामने आएं हैं. कोटा शहर एसपी केसर सिंह शेखावत का मानना है कि इस वर्ष में करीब दो लाख के आसपास बच्चे आ गए हैं.
कोटा के नाम पर कालिख पोत रहे हैं सुसाइडः एसपी केसर सिंह शेखावत का मानना है कि शैक्षणिक नगरी कोटा में सुसाइड के चलते गलत मैसेज भी पूरे देश भर में जा रहा है. साथ ही एक अच्छा पढ़ाई करने वाला बच्चा जो कि इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना देख रहा था, वह सुसाइड करके कम समय में ही काल का ग्रास बन जाता है. उसके परिवार पर गहरा वज्रपात होता है. वह कई सालों तक उबर नहीं पाते. इसी के चलते कोटा का नाम पर कालिख पुत रही है.
उन्होंने कहा कि सभी हॉस्टल संचालकों और कोचिंग संचालकों से अपील है कि अच्छे से प्रयास करें तो कोटा का नाम खराब नहीं होगा. एसपी केसर सिंह शेखावत का यह भी कहना है कि काउंसलिंग की जितनी व्यवस्था होनी चाहिए, उतने अनुपात में नहीं है. काफी कम या फिर अल्प मात्र की सुविधाएं हैं. हर हॉस्टल में काउंसलिंग की सुविधा नहीं है. कोचिंग संस्थानों में भी पूरी व्यवस्था नहीं है. जितने बच्चे यहां प्रवेश लेते हैं, उतनी व्यवस्था नहीं है. कोचिंग इंस्टिट्यूट में संचालकों का सकारात्मक रोल होना चाहिए, वह नहीं है.
कोटा का आंकड़ा राजस्थान के औसत से काफी ज्यादाः मनोरोग विशेषज्ञ डॉ एमएल अग्रवाल का मानना है कि सुसाइड पूरे विश्व में ही समस्या है. हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है और इससे 20 गुना ज्यादा सुसाइड अटेम्प्ट किए जाते हैं. यह विश्व में 8 लाख लोगों की मौत का कारण है. उनका कहना है कि राजस्थान का आंकड़ा प्रति लाख जनसंख्या पर 7 से भी कम है. जबकि कोटा का आंकड़ा नेशनल एवरेज 22 के आसपास है. हमारे भारत में करीब एक लाख 33 हजार मौतें हर साल सुसाइड के चलते ही होती हैं. इसीलिए मैं सामूहिक प्रयास और जन जागृति से ही इन्हें रोकने की बात करता हूं. यहां पर केवल कोचिंग के अंदर हो रहे प्रयास से काम नहीं चलेगा. आम जनता और हॉस्टल से लेकर मैस और हर व्यक्ति को इसमें योगदान देना होगा. आत्महत्या के लिए केवल पढ़ाई का स्ट्रेस ही जिम्मेदार नहीं है अन्य भी कई कारण है.
इन क्लू को पहचानें तो रुक सकते हैंः एमएल अग्रवाल का कहना है कि हर सुसाइड करने वाला कोई क्लू छोड़ देता है. बच्चों की हम बात करें तो उनमें पढ़ाई में मन नहीं लगना, क्लास से अपसेट रहना, बातचीत नहीं करना, चिड़चिड़ा होना, खाना नहीं खाना, खाने के प्रति रुचि नहीं रहना, बार-बार बीमार या पेट खराब होना, दर्द रहना, बहाने बनाना आदि शामिल हैं. उन्होंने बताया कि अपनी मनपसंद और सबसे प्रिय चीज भी दूसरों को दे देना, रस्सी या कोई रासायनिक केमिकल खरीद कर लेकर आने जैसे लक्षण शामिल हैं. इस तरह के सिम्टम्स आने पर बच्चों पर नजर रखना जरूरी है. इन्हें पहचान जाएंगे, तो आत्महत्या से उसे रोका जा सकता है.
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फैकल्टी से लेकर हॉस्टल के वार्डन तक को ट्रेंड करना जरूरीः मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. एमएल अग्रवाल का मानना है कि बच्चों में हो रहे सुसाइड के मामलों को रोकने के लिए सुसाइड प्रीवेंशन की ट्रेनिंग कई लोगों के लिए जरूरी है. उन्होंने कहा कि मैं पहले भी कई मीटिंग्स में इस संबंध में बता चुका हूं कि बच्चों के फर्स्ट टच वाला व्यक्ति को समझना जरूरी है. इसमें फैकल्टी, हॉस्टल वार्डन, मालिक, सिक्योरिटी गार्ड, कुक से लेकर सफाई वाले तक को भी जानना जरूरी है. इसके अलावा कोचिंग संस्थान और हॉस्टल्स में काम कर रहे स्टॉफ को भी इनकी जानकारी होनी चाहिए. यह लोग बच्चे में अगर हो रहे बदलाव को समझ लेंगे और 2 मिनट का भी टाइम निकाल कर उससे बात करेंगे. ये उसकी दुविधा को जानने की कोशिश करेंगे, तो सुसाइड प्रिवेंट किया जा सकता है. साथ ही बच्चे को मैनेज कर डॉक्टर या साइकोलॉजिस्ट के पास पहुंचाया जा सकता है. जिससे कि वह आत्महत्या नहीं करे.
विदेशों की तरह यहां भी हो स्क्रीनिंगः डॉ अग्रवाल का कहना है कि मानसिक बीमारियों के लिए भी स्क्रीनिंग बच्चों की करवाई जाती है. साधारण सी इन्वेंटरी की जाती है. जिसके बाद मानसिक बीमारी है या नहीं, पता लग जाता है. कुछ इन्वेंटरीज होती है. यदि इस तरह का कोई स्क्रीनिंग हो जाए तो जल्दी से बच्चों की मानसिक बीमारी का पता चल जाएगा. उन बच्चों को मैनेज किया जा सकता है और आत्महत्याओं को रोका जा सकता है. उन्होंने बताया कि करियर बनाने और मानसिक बीमारियों के शुरू होने की उम्र एक ही होती है. करीब 14 साल से 28 साल तक मानसिक बीमारी शुरू होती है. इसे समय से नहीं पहचाना जाए और इलाज नहीं हो, तो यह आत्महत्या की तरफ बढ़ सकती है.
आत्महत्या के नाम से डरते हैं कोचिंग संस्थान मेंः डॉ अग्रवाल का कहना है कि कोटा में कोचिंग संस्थान या कहीं भी आत्महत्या के नाम से डर है. बीते सालों में डब्ल्यूएचओ ने मेंटल हेल्थ डे पर सुसाइड प्रीवेंशन थीम पर कार्यक्रम आयोजित किए थे. एक कोचिंग में प्रोग्राम आयोजित किया, लेकिन वहां पर इस थीम का बैनर पर भी नाम नहीं लिखा गया. कार्यक्रम तो आयोजित हुआ, लेकिन उसे मोटिवेशन नाम दिया गया. इस तरह की मानसिकता रहेगी, तो आत्महत्या को नहीं रोक सकते. इसलिए सबसे पहले कोचिंग के ऑर्गेनाइजर्स व संचालकों को भी मानसिक रूप से तैयार होना पड़ेगा. उनकी भी मानसिकता बदलनी होगी, कहीं ऐसा नहीं लिखा है कि सुसाइड के बारे में बात करने से सुसाइड कर लेते हैं. सुसाइड की बात करने से सुसाइड को रोका जा सकता है.
10,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या करने के पहले किया फोनः डॉ अग्रवाल अपने सहयोगियों के साथ सुसाइड प्रीवेंशन के लिए कार्यक्रम चला रहे हैं. इसके लिए साल 2010 से ही होप सोसायटी 24 घंटे का कॉल सेंटर संचालित किया जा रहा है. यह कॉल सेंटर बीच में 2 से 3 साल बंद हो गया था. जिसे दोबारा उन्होंने शुरू किया है. डॉ. अग्रवाल का कहना है कि दो हजार से ज्यादा लोगों के कॉल्स अभी तक आ चुके हैं. मैं कुछ दिन पहले बैंकॉक गया हुआ था, एक बच्चा सुसाइड करने पहुंच गया था. मेरे स्टाफ ने मुझे बताया कि वे मैनेज नहीं कर पा रहे हैं.
सोसायटी के डॉ. अविनाश बंसल को मैंने भेजा. पुलिस ने बच्चे को बुलाकर काउंसलिंग की और इलाज कराया है. ऐसे बच्चों को लगातार काउंसलिंग की जरूरत होती है. सुसाइड पॉइंट से भी लाकर बचाया है. हेल्पलाइन की पब्लिसिटी भी होनी चाहिए. हर हॉस्टल और कोचिंग में 07442333666 हेल्पलाइन नंबर भी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अभी तक 10000 से ज्यादा कॉल इसमें आए हैं. कोरोना के पहले हर दिन करीब 7 से 10 फोन आते थे, लेकिन अब यह घटकर 3 से 5 ही रह गए है.
आत्महत्या के मामले में ये कारण आए सामने:
- माता-पिता की अपेक्षाएं बच्चों को भारी पड़ रही हैं. बच्चा जेईई या नीट का नहीं करना चाहता है, इसके बावजूद भी माता-पिता इच्छाओं को बच्चों पर थोप देते हैं.
- बच्चा माता-पिता के फोर्स या खुद भी अपने साथियों को देखकर कोटा आकर पढ़ने लग जाता है. बच्चा ऐसा सोचता रहता है कि मां-बाप ने लाखों रुपए यहां पर खर्च कर दिए हैं. मैं उनको उतना आउटपुट नहीं दे पा रहा हूं, जितना वे उम्मीद कर रहे हैं. इसके कारण वह डिप्रेशन की स्थिति में चला जाता है.
- बच्चा घर में परिवार के बीच में रहता है. यहां एकांकी पर रहता है और पढ़ाई का भी प्रेशर रहता है. जिसको बच्चा सहन नहीं कर पाता है.
- कोचिंग के यूनिट टेस्ट होते हैं, उनमें पिछड़ जाता है तो फिर बैच शिफ्टिंग होती है. इसमें बच्चा धीरे-धीरे पीछे चला जाता है. इस कारण वह धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार हो जाता है.
- कोटा आने के बाद कई स्टूडेंट अफेयर में पड़ जाते हैं. ऐसे में कई बार बच्चे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं. जिससे वह डिप्रेशन में चला जाता है.
- जेईई या नीट का रिजल्ट में अपेक्षा के मुताबिक कम अंक मिलने पर बच्चा वस्तुस्थिति को सहन नहीं कर पाता है. जिसके कारण भी सुसाइड के कई केस सामने आए हैं.
- स्मार्टफोन की वजह से गेम्स आदि के कारण बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, क्लास से दूर हो जाते हैं. साथ ही पढ़ाई में पिछड़ जाने के चलते ही स्ट्रेस होता है.
- कई बच्चे नशे की तरफ जाते हैं. कोई अश्लील एक्टिविटी में शामिल हो जाते हैं. मोबाइल एडिक्शन भी हो जाता है.
यह हो सकता है समाधान: इस मामले में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी परिजनों की है. उन्हें अपने बच्चों की क्षमता का आकलन करने के बाद ही भविष्य किस फील्ड में होगा, यह तय करना चाहिए. उसकी रूची के अनुसार ही आगे बढ़ने के अवसर देने चाहिए. हॉस्टल और कोचिंग संचालकों को भी गार्जियन के रूप में बच्चों का ध्यान रखना चाहिए. लेकिन अभी कोचिंग संचालक प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट हो गए हैं. उनका दृष्टिकोण पैसे कमाने का रह गया है.
फैन पर लगी है एंटी सुसाइड रॉड: कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि सुसाइड को प्रिवेंट करने के लिए उन्होंने भी कई जतन किए हैं. लगातार वह हॉस्टल संचालकों की मीटिंग लेकर उनको भी निर्देश देते हैं. उन्होंने बताया कि लगभग कोटा शहर के सभी हॉस्टल के रूम में लगे हुए सीलिंग फैन पर एंटी सुसाइड रॉड लगी हुई है. इसके अलावा दिन में कई बार बच्चों की अटेंडेंस ली जाती है. कोचिंग जाने व आने, ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर और नाइट के समय भी अटेंडेंस ली जा रही है. ताकि बच्चे का मूड हॉस्टल के वार्डन को पता चल जाए. उसकी तबीयत खराब है या कोई और अन्य कारण है, तो जिन पर भी एक्शन लिया जा सके.