कोटा. जिले में अधिकांश किसान संतरे की सर्दी की फसल ही ले रहे हैं. सर्दी की संतरे की पैदावार किसानों को ज्यादा मुनाफा दे रही है. साथ ही उत्पादन भी गर्मी के सीजन की तुलना में ज्यादा हो रहा है.
कोटा में सर्दी की संतरा की पैदावार को अंबे बहार सीजन की फसल कहा जाता है. जबकि गर्मी में होने वाली फसल को मृग बहार कहा जाता है. कोटा में सेंटर फॉर एक्सीलेंस (सीएफई) सिट्रस की मदद से किसानों ने प्रयोग शुरू किया था. कोटा जिले में करीब 80 फ़ीसदी किसान इसी तरह से अंबे बाहर की फसल को ही ले रहे हैं.
जिले में झालावाड़ से लगते रामगंजमंडी इलाके के सालेदाखुर्द, बोरीना, गादिया, पीपाखेड़ी और मंडलिया खेड़ी में 700 से 800 किसान संतरे की खेती करते हैं. यहां संतरे की खेती एक हजार से ज्यादा हेक्टेयर में की जा रही है. इन किसानों में से 80 फीसदी अंबे बहार की फसल लेते हैं. जबकि 20 फीसदी मृग बहार के सीजन को प्राथमिकता देते हैं. एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि सर्दी के सीजन में होने वाली फसल की क्वालिटी काफी अच्छी रहती है. इसमें रस भी काफी ज्यादा आता है.
20 फीसदी ज्यादा उत्पादन, दाम भी अच्छे
सीएफई सिट्रस के उपनिदेशक एसएल जांगिड़ का कहना है कि मृग बहार की फसल के दौरान गर्मी ज्यादा होने से फसल को तुरंत भेजना जरूरी होता है. जबकि सर्दी में फसल को एक-दो दिन ज्यादा रखा जा सकता है. वहीं कई दिन तक फसल सेफ रहती है. उसमें खराबा नहीं होता है. इसके साथ ही अंबे बहार की फसल में करीब 80 से 100 किलो तक एक पेड़ से उत्पादन लिया जा सकता है. जिसका औसत करीब 90 से 95 किलो रहता है.
इसके उलट मृग बहार की फसल में 50 से 70 किलो ही उत्पादन होता है. इस दौरान औसत 60 के आसपास रहता है. सर्दियों में आमतौर पर संतरे की डिमांड तो नहीं होती है, लेकिन उसके दाम काफी ज्यादा होते हैं. ऐसे में अंबे बहार संतरे की फसल लेने वाले किसानों को दुगना फायदा होता है. उत्पादन ज्यादा के साथ दाम भी ज्यादा मिलते हैं.
बारिश के पानी से मृग बहार का उत्पादन
सीएफई सिट्रस के उपनिदेशक एसएल जांगिड़ का कहना है कि मृग बहार फसल के लिए जुलाई में फ्रूटिंग और फ्लॉवरिंग शुरू होती है. इसमें मार्च से लेकर जून तक फसल से उत्पादन होता है. जून तक गर्मी के सीजन में पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं और पानी भी जमीन में नहीं रहता है. ऐसे में दोबारा जुलाई में फ्रूटिंग और फ्लॉवरिंग हो जाती है. यह मौसम के अनुसार सतत प्रक्रिया है. ऐसे में इस फसल के लिए जुलाई के बाद सितंबर तक पर्याप्त पानी बारिश से मिल जाता है.
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एक्सपर्ट के मुताबिक अंबे बहार फसल को मेंटेन करना थोड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में करीब जनवरी में 15 से 20 दिन खेत का पानी रोकना पड़ता है. ताकि पूरा एरिया शुष्क हो जाए. पानी नहीं होने की वजह से पेड़ के पत्ते गिर जाते हैं और उनके लिए पतझड़ जैसा सीजन हो जाता है. इसके बाद फरवरी मार्च की सीजन में फ्रूटिंग और फ्लॉवरिंग शुरू होती है. जिसे नवंबर से जनवरी तक फलों को उत्पादन होता है. हालांकि इस फसल का उत्पादन लेने के लिए ड्रिप तकनीकी या दूसरे तरीके से पानी पहुंचाया जाता है. इससे इसमें खर्चा थोड़ा ज्यादा होता है.
3 फायदे होते हैं सर्दी में फसल के
सर्दी में कीपिंग क्वालिटी यानी कि सड़ने का झंझट ज्यादा नहीं होता है. फसल को 5 से 7 दिन तक रखा जा सकता है. ऐसे में दूसरे बड़े शहरों में भेजने में भी सुविधा होती है. साथ ही सर्दी के सीजन में दाम भी अपेक्षाकृत गर्मी से ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि गर्मी में बंपर उत्पादन बाजार में होता है. उस दौरान संतरे के दाम ज्यादा नहीं मिल पाते हैं.
ऐसे में सर्दी में जब संतरे का उत्पादन कम होता तो बाजार में डिमांड कम तो रहती है, लेकिन दाम ठीक-ठाक मिल जाते हैं. साथ ही सर्दी में रस ज्यादा फसल में आता है. क्वॉलिटी भी अच्छी रहती है. ऐसे में वह अच्छे दाम पर भी बिकता है. हालांकि इसमें पानी की जरूरत ज्यादा होती है.