कोटा. प्रदेश में नगर निगम के पहले चरण का चुनाव गुरुवार को शांतिपूर्ण संपन्न हुआ. इसके बाद 1 नवंबर को दूसरे चरण का चुनाव होना है. दूसरे चरण में कोटा दक्षिण, जोधपुर दक्षिण और जयपुर ग्रेटर नगर निगम का चुनाव होना है. कोटा में इस बार दो नगर निगम है. इससे पहले कोटा शहर को 5 मेयर मिल चुके हैं. इनमें सीधी चुनी हुई मेयर डॉ. रत्ना जैन थी, जो 2009 में मेयर बनी थी.
बता दें, कोटा में अब तक के 5 मेयर में चार बार भाजप का मेयर रहा है और एक बार कांग्रेस की मेयर रही है, जो डॉ. रत्ना जैन हैं. शुक्रवार को ईटीवी भारत ने डॉ. रत्ना जैन से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि जब तक जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की अकाउंटेबिलिटी तय नहीं होगी, तब तक शहर की समस्याओं का निदान नहीं हो सकता है.
हर बार नगर निगम के चुनाव में एक ही मुद्दे छाए रहते हैं...
पूर्व महापौर डॉ. रत्ना जैन ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या है कि परमानेंट सॉल्यूशन के बारे में कोई नहीं सोचता है. इस समस्या के समाधान के लिए ट्रांसपेरेंसी से काम करना होगा. जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की अकाउंटेबिलिटी तय होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी का जमाना है, कुछ भी झूठ नहीं बोला जा सकता.
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जैन ने कहा कि आपने क्या बात पहले कही थी और क्या बात आगे लागू की जा रही है, ये सब कुछ जनता के सामने होना चाहिए. उसे क्रिस्टल क्लियर करते हुए जनता तक पहुंचा देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सब चीज ऑनलाइन और पेपर्स पर हो और नेट के जरिए किया जाए तो लोगों के सामने ट्रांसपेरेंसी रहेगी.
सीईओ और मेयर में किसके पास ज्यादा अधिकार है?
हर बोर्ड के समय आयुक्त (सीईओ) और मेयर के बीच तकरार होती है. डॉ. रत्ना जैन ने कहा कि अधिकार तो जनता और जनप्रतिनिधियों के हैं. इसमें कोई शक नहीं है. जहां पर उनकी बात नहीं मानी जाएगी और वो जो विजन रखना चाहते हैं अगर वह फॉलो नहीं किया जाएगा तो तकरार होता है. अगर जनता के हित में मेयर या जनप्रतिनिधि ने कोई बात कही है तो उसे मानना चाहिए.
रत्ना जैन ने कहा कि तकनीकी बिंदु है तो उसे डिस्कस करते हुए दूर करना चाहिए. कुछ काम है जो नहीं हो सकते, तो उसका भी रास्ता निकाल कर हल निकाला जाना चाहिए. जिसके लिए उच्च अधिकारियों से भी बात अधिकारियों को करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जनता के हित में जो काम है, वह होना चाहिए.
आयुक्त को नहीं होता है शहर से लगाव...
पूर्व महापौर डॉ. रत्ना जैन का मानना है कि आयुक्त आते-जाते रहते हैं, जबकि जनप्रतिनिधि शहर के ही होते हैं. आयुक्त का शहर से लगाव नहीं होता है, मेयर और जनप्रतिनिधि शहरवासी होते हैं तो उनका जनता से सीधा जुड़ाव भी रहता है. जबकि आयुक्त बदलते रहते हैं. जनता के प्रति दायित्व जनप्रतिनिधि का ज्यादा होता है. वह 5 साल के लिए चुनकर आते हैं. जनता को जवाब भी देना है तो वह चाहते हैं कि आसानी से काम हो. उन्हें निगम के चक्कर नहीं लगाने पड़े.
आने वाले बोर्ड ने नहीं किया मेरे प्रोजेक्ट पर काम
डॉ. रत्ना जैन का कहना है कि उन्होंने नगर निगम की एक वेबसाइट और एप्लीकेशन तैयार की थी. उस समय 60 पार्षद थे, लेकिन बाद में 65 संख्या हो गई थी. ऐसे में आगामी पार्षदों के अनुसार ही वेबसाइट तैयार कर दी गई थी, जिसमें कर्मचारियों और अधिकारियों के नाम जोड़ दिए थे. वार्ड के अनुसार केवल महापौर और पार्षदों के नाम ही जोड़ने थे, लेकिन नए बोर्ड ने यह काम भी नहीं किया और वह प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
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रत्ना जैन ने कहा कि उस समय हम भवन निर्माण की परमिशन ऑनलाइन देने लग गए थे. इसमें सब कुछ स्क्रीन पर होता था. आवेदक को मैसेज भी चला जाता था कि उसे परमिशन मिल गई है. हालांकि नए महापौर कंप्यूटर के अच्छे जानकार और टेक्नोलॉजी फ्रेंडली नहीं थे, उन्होंने उसे कैरी फॉरवर्ड नहीं किया. जो जैसा था वैसे ही बंद हो गया.
शहर की खूबसूरती कचरे में ढक जाती है...
पूर्व महापौर ने कहा कि मैं डॉक्टर हूं और इसलिए मुझे सफाई की काफी चिंता है. बीमारियां जो गंदे पानी से या गंदगी से होती है, उसके लिए कार्य शुरू किया था. यूनाइटेड नेशन ने हमें इसके लिए पैसा भी दिया था, पायलट प्रोजेक्ट भी हुआ. उसको कैरी फॉरवर्ड करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कोटा काफी खूबसूरत शहर है, लेकिन कचरा और गंदगी की वजह से हम काफी पीछे चले जाते हैं और खूबसूरती ढक जाती है.
जनता के काम घर बैठे हो...
डॉ. रत्ना जैन से जब पूछा गया कि कार्यकाल के दौरान क्या काम नहीं करने का मलाल है, तब उन्होंने कहा कि मैं 5 साल के लिए थी. आज के जमाने में जो लोग कह रहे हैं, वह ई-गवर्नेंस सिस्टम हम नगर निगम में लेकर आए थे. सफाई के लिए डोर-टू-डोर का पायलट प्रोजेक्ट हम बना चुके थे, जिसमें यूनाइटेड नेशन ने भी इसमें भूमिका निभाई थी. नगर निगम की कार्यप्रणाली को सिस्टमैटिक किया था. उन्होंने कहा कि मैं यही चाहती हूं कि जनता के काम त्वरित और घर बैठे हो.
सोच समझ कर लिया डिसीजन
कोटा शहर में दो महापौर को लेकर डॉ. रत्ना जैन ने कहा कि जनता को पता है, उनके पार्षद और महापौर कौन हैं. सरकार ने जो भी किया है वह सोच समझ कर किया है, जिससे जनता तक आसानी से पहुंचा जा सके. साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले दोनों मेयर पढ़े लिखे होने चाहिए और उनमें शहर के विकास को लेकर विजन हो.