कोटा. तत्कालीन भाजपा सरकार में कोटा के दशहरे मैदान को 75 करोड़ रुपए से प्रगति मैदान नई दिल्ली की तर्ज पर तैयार करवाया है. यह पैसा स्मार्ट सिटी के तहत खर्च हुआ, लेकिन जिस जोर-शोर से इसका निर्माण करवाया गया था. उतना इससे आमदनी नहीं हो पा रही है.
इससे भी कई गुना ज्यादा खर्चा उसकी बिजली, मेंटेनेंस और सिक्योरिटी में हो रहा है. ऐसे में दशहरा मैदान एक सफेद हाथी ही बनकर रह गया है. बीते 2 साल में इसमें कोई बड़े कार्यक्रम दशहरे मेले के अलावा नहीं हुआ. यहां तक की दो साल में महज 5 लाख ही रेवेन्यू मिला है. नगर निगम भी दशहरे मैदान की मार्केटिंग करने में फेल रहा.
यहां पर कोई बड़े कार्यक्रम और आयोजन नहीं करवा पाया है. जबकि शहर के अन्य कई जगह पर छोटे-मोटे मेले और आयोजन भी लगते रहे हैं. बीता साल हालांकि कोविड-19 गया, लेकिन अब जब दोबारा शुरू होंगे, तो नगर निगम को भी यह देखना होगा.
अब यूडीएच मंत्री ने रुकवाया दूसरे फेज का काम
पहले फेज में दशहरा मैदान में श्रीराम रंगमंच, विजयश्री रंगमंच और स्थाई दुकानों का निर्माण हुआ है. इसके अलावा आने-जाने के रास्तों और पूरी भव्यता से दशहरे मैदान को डस्ट फ्री बनाया गया है. इसके अलावा यहां पर प्लांटेशन किया गया है और पूरे दशहरे मैदान को डिजाइन देकर अलग स्वरूप बना दिया है.
इसी तरह से पशु मेला स्थल पर भी कार्य होना था, लेकिन भाजपा की सरकार चली गई और उसके बाद यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने इसके सेकंड फेज का काम रुकवा दिया. जिसमें पशु मेला स्थल तैयार होना था. साथ ही वहां पर किसान रंगमंच और अन्य कई कार्य भी होने थे.
छोटे दुकानदारों के लिए जरूरी है सेकंड फेज का काम
पूर्व महापौर महेश विजय का कहना है कि भाजपा शासन में यहां पर अधिकारियों ने एक बड़े गार्डन का निर्माण करवाने का टेंडर जारी कर दिया था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कहकर इसको रुकवाया था. मेले का स्वरूप बड़ा करना था,क्योंकि छोटे दुकानदारों के लिए जगह बनानी है.
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किसान रंगमंच की भी स्थापना करनी थी. साथ ही उसे जोड़कर स्मार्ट सिटी में शामिल किया था. लाइट की व्यवस्था भी वहां पर की, ताकि छोटे दुकानदार वहां पर अपना व्यापार कर सकें. कोटा का मेला और भव्य हो जाए. जहां छोटे दुकानदार बैठते हैं वहां कच्चे की जगह पक्का निर्माण हो जाए. हुबहू किसान रंगमंच भी बने, लेकिन अब यह कार्य नहीं हो पा रहा है.
केवल 25 परसेंट ही बचता है टेंट का खर्चा
नगर निगम कोटा दक्षिण की महापौर कीर्ति राठौड़ का कहना है कि दशहरे मैदान बनने के बाद जो मेले भरने के दौरान टेंट लगाना पड़ता था. उसका 25 फीसदी खर्चा बच गया है, लेकिन पिछले साल तो मेला लगा नहीं और उससे पहले 2 सालों में 28 और 32 लाख रुपए का खर्चा आया था. ऐसे में इनका भी अगर 25 फीसदी माना जाए तो महज 7 से 8 रुपए ही बचत हुई है.
हालांकि कीर्ति राठौड़ का कहना है कि हर साल जो मेले की तैयारी के लिए खर्चा करवाना पड़ता था. वह इसमें नहीं होगा, उससे नगर निगम को निजात मिल गई है. मशीनरी भी काम में कब आएगी. इसमें अच्छी सड़कें मैदान के भीतर बनी है. साथ ही पेरिफेरी का रोड भी बहुत अच्छा बन गया है और पार्किंग पैलेस भी काफी है.
कोशिश करेंगे की दशहरा मैदान खुद अपना खर्चा उठा ले
कोटा दक्षिण नगर निगम के महापौर राजीव अग्रवाल का कहना है कि उनका बोर्ड अभी बना है और अबे दशहरा मैदान की आया बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि जो दूसरे फेज का काम है. वह यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने रुकवा दिया है. अब उसकी जगह पर यहां पर वैवाहिक स्थल बनाने की प्लानिंग चल रही है. जिससे कि नगर निगम को आमदनी हो सके.
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साथ ही उन्होंने कहा कि जो दशहरा मैदान है. वह पूरे साल भर काम आए, क्योंकि दशहरा मेला तो 1 महीना ही भरता है. इसके बाद यह पूरा मैदान खाली पड़ा रहता है. साथ ही इसमें सिक्योरिटी और बिजली के साथ-साथ मेंटेनेंस का भी खर्चा नगर निगम को वहन करना पड़ रहा है. ऐसे में अब हम व्यवस्था करेंगे कि इस मैदान का खर्चा मैदान ही उठा ले और शहर में अन्य जगह लगने वाले छोटे-मोटे मेले और दूसरे कार्यक्रम भी यहां पर हो.
शादी समारोह हो सके, ऐसी करेंगे पशुमेला स्थल की प्लानिंग
कोटा दक्षिण नगर निगम के महापौर राजीव अग्रवाल का कहना है कि शहर में कई तर्क एग्जीबिशन, शादियां व धार्मिक स्थल आयोजन होते हैं, जो नॉमिनल रेट पर ही उनको उपलब्ध कराएंगे, तो निगम को मेंटेनेंस के रूप में जो आर्थिक भार वाहन करना पड़ रहा है. उसमें भी मदद मिलेगी. रेवेन्यू भी बढ़ जाएगा.
मेले में केवल 2 महीने ही मैदान काम आता है. उसके बाद 10 महीने यह खाली पड़ा रहता है. हम कोशिश करेंगे कि पशु मेले के नाम पर भी कुछ पार्ट में काम हो, इसके अलावा जो मैदान पशु मेला स्थल का खाली रहता है. उस पर भी कुछ अच्छा निर्माण करवाकर रेवेन्यू बढ़ाएंगे.