कोटा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे का काम कोटा जिले में बीते 10 दिनों से बंद है. किसान ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे पर टेंट लगाकर धरना दे (Kota farmers protest on Delhi Mumbai Expressway) रहे हैं. किसानों का आरोप है कि प्रशासन उनकी सुनवाई नहीं कर रहा है. मुद्दा मुआवजा और नहरी तंत्र को हो रहे नुकसान का है. एक्सप्रेस वे का 374 किलोमीटर का हिस्सा राजस्थान से होकर गुजर रहा है. इसके करीब 74 किलोमीटर का हिस्सा कोटा जिले में भी है. इसमें से 30 किलोमीटर का निर्माण सीडीएस कंपनी कर रही है, लेकिन सुल्तानपुर के नजदीक किसानों ने मुआवजा व नहरी तंत्र के मुद्दे को लेकर काम ठप करवा दिया है.
इस बीच इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे 2500 मजदूर बीते 10 दिनों से बेकार बैठे हुए हैं. इनमें से कुछ मजदूर तो काम की तलाश में दूसरे जगहों पर पलायन भी कर चुके हैं. सीडीएस कंपनी ने भी लेबर कॉन्ट्रैक्ट के जरिए ही मजदूरों को लगाया हुआ है. ऐसे में जब काम बंद होने से लेबर कांट्रेक्टर को भी भुगतान कंपनी नहीं करेगी, तो मजदूरों को भी मजदूरी नहीं मिलेगी. इसमें 200 मजदूर स्थानीय हैं, जबकि अन्य करीब 2300 के आसपास दूसरे राज्यों और जिलों से मजदूरी के लिए कोटा पहुंचे है. अब ये सभी पलायन को मजबूर हैं. कंपनी के प्रतिनिधियों का कहना है कि काम बंद होने से अप्रत्यक्ष रूप से 5 से 6 हजार लोग बेरोजगार हुए हैं.
खाना और पानी पहुंचाने में भी समस्या : सीडीएस कंपनी के लेबर सुपरवाइजर का कहना है कि उनकी 30 किलोमीटर लंबी साइट पर जगह-जगह मजदूरों को रुकवाया हुआ है. वे यहां निर्माण कार्य में जुटे हुए हैं. इसलिए उनके अस्थाई आवास भी वहीं बनाए हुए हैं. अब इन मजदूरों को बीते 10 दिनों से खाना-पीना पहुंचाने में भी समस्या आ रही है. बीच में किसान धरना लगाकर बैठे हैं. ऐसे में वे वाहनों को गुजरने देने में भी अड़चन पैदा कर रहे हैं. कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि किसान संगठन के लोग उन्हें कैंप में आकर धमका रहे हैं. उनके क्रेशर से लेकर डंपर और अन्य सारी मशीनें भी बंद हैं. अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा के लिए पुलिस से गुहार लगाते हैं, लेकिन पुलिस का व्यवहार न्यूट्रल है. पुलिस का कहना है कि हम किसानों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते.
10 किलोमीटर हिस्से में मुआवजे का चक्कर, काम 30 किमी में बंद : सीडीएस के प्रशासनिक अधिकारी मधुकर का कहना है कि वह किसानों की जायज मांगों का समर्थन करते हैं. इसका समाधान भी प्रशासन और एनएचएआई को करना चाहिए. हम भी इस संबंध में एनएचएआई को पत्र लिख चुके हैं. किसानों के मुआवजे का मुद्दा 10 किलोमीटर का है, लेकिन उन्होंने मंडावरा से कराडिया के बीच 30 किलोमीटर में काम बंद करवा दिया है. इससे प्रोजेक्ट को पूरा होने में भी समय लगेगा. उन्हें मार्च 2023 में यह प्रोजेक्ट पूरा करना है, लेकिन अब उसमें केवल एक साल ही बचा है. बारिश के सीजन में 4 माह काम नहीं होता है. काम करने का बेहतर समय यही है. अभी तक प्रोजेक्ट का 30 से 35 फीसदी ही काम हुआ है.
कंपनी बोली 60 लाख रोज का हो रहा नुकसान : अधिकारी का कहना है कि उन्हें करीब 60 लाख रुपए रोज का नुकसान हो रहा है. क्योंकि उन्होंने भारी मशीनरी कॉन्ट्रैक्ट पर लगाई है. इसके अलावा खों रुपए का लोन लेकर संसाधन खरीदे हैं. इनका स्टॉलमेंट और काम नहीं होने के बावजूद भी इंजीनियर और अन्य स्टाफ को भुगतान करना ही पड़ रहा है. हालांकि उनका कहना है कि लेबर को वे भुगतान नहीं करे रहे है. किसान उन्हें निर्माण कर चुके स्ट्रक्चर पर भी काम नहीं करने दे रहे.
गडकरी का दावा कोटा में हो रहा फेल: केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी दावा करते हैं कि उनके प्रोजेक्ट में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहती है. हालांकि उनका यह दावा कोटा जिले में फेल होता नजर आ रहा है. कोटा में प्रोजेक्ट के चलते नहरी तंत्र तहस-नहस हो गया है. निर्माण कर रही कम्पनियां नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तैयार की गई एक्सप्रेस वे की डीपीआर के तहत ही काम कर रही है. इस डीपीआर में इतनी बड़ी खामी है कि आगे चलकर किसानों को नुकसान होने वाला है. इसी के चलते किसान इस मुद्दे को उठा रहे हैं और इस मुद्दे से पीछे हटने के लिए कतई तैयार नहीं हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत करीब 30 किलोमीटर लम्बे नदी तंत्र को नुकसान हो रहा है. यह नुकसान आने वाले दिनों में किसानों पर भारी पड़ने वाला है.
एनएचएआई और सीएडी के तालमेल के अभाव से हुई गड़बड़ी : किसान संगठनों ने कंपनी को काम करने से तो रोक दिया है, लेकिन उनका साफ कहना है कि यह गलती नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया और सीएडी के अधिकारियों की है. भारतीय किसान संघ के प्रांतीय महामंत्री जगदीश शर्मा कलमंडा का कहना है कि जब इस प्रोजेक्ट की डीपीआर नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया बना रही थी, तब उन्होंने नहरी तंत्र का ध्यान नहीं रखा. सीएडी के अधिकारियों ने भी उस समय ध्यान नहीं दिया. सीएडी के अधिकारी एनएचआई के साथ तालमेल बना लेते, तो आज यह स्थिति नहीं होती. उनकी मुख्य व जायज मांग नहरी तंत्र को सुदृढ़ रखने की है. किसानों के साथ मुआवजे में भी धोखा हो रहा है. कुछ किसानों को मुआवजा कम करके दिया जा रहा है. एक्सप्रेस वे के नीचे से निकल रहे अंडरपास की ऊंचाई कम है. इससे कृषि संबंधी बड़ी मशीनरी नहीं निकल सकेगी.