कोटा. मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए देशभर में विख्यात कोटा में कक्षा 6 में ही बच्चे पढ़ाई के लिए पहुंच जाते हैं. ये कॅरियर फाउंडेशन कोर्सेज में स्टडी करते हैं. इन बच्चों को अपनी कक्षा के साथ-साथ मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस की बारीकियां सिखाई जाती हैं, ताकि जब वे आगे जाकर मेडिकल एंट्रेंस नीट और इंजीनियरिंग एंट्रेंस जेईई का एग्जाम दें तो उन्हें सफलता जरूर मिले. इसके अलावा इन बच्चों को इनकी क्लास के जनरल सब्जेक्ट, रिजनिंग, लॉजिकल, नेशनल व इंटरनेशनल ओलंपियाड, केवीपीवाई और एनटीएसई की तैयारी भी करवाई जाती है. इनमें से सैकड़ों बच्चे सफल भी रहे हैं.
कोटा के अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में करीब देशभर के 10 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. कुछ बच्चों के साथ (Class 6 to 10 Students Education in Kota) उनकी मां भी रहती है और कुछ बच्चे अकेले ही हॉस्टल में रहकर स्टडी कर रहे हैं. कोटा ही एक एकमात्र शहर है, जहां पर इतनी कम उम्र में और छोटी कक्षाओं में ही बच्चे अपना कॅरियर संवारने के लिए पहुंच जाते हैं.
इंजीनियरिंग मेडिकल एंट्रेंस का हो जाता है बेस तैयार : निजी कोचिंग संस्थान में फाउंडेशन डिवीजन के हेड अमित गुप्ता का मानना है कि पहले यह धारणा थी कि 12वीं कक्षा हम पास कर लें, उसके बाद करियर के ऑप्शन को सिलेक्ट किया जाता था. लेकिन सन 2000 के आसपास यह समझ में आया कि जिस तरह का देश में कंपटीशन हुआ है. उसी तरह से तैयारी की आवश्यकता है. वहां पर 11वीं और 12वीं के बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. उसके बाद धीरे-धीरे कंपटीशन का स्वरूप बदलता रहा है. नई जनरेशन में लगातार बदलाव आ रहे हैं.
नई शिक्षा नीति आ गई है और कंपटीशन भी कठिन हो गया है. एग्जाम के पैटर्न में भी बदलाव आया है. इसीलिए जिस तरह से कच्ची मिट्टी को आकार देना आसान होता है, उसी तरह से कम उम्र में फाउंडेशन स्टेज पर ही स्टूडेंट्स को कंपटीशन की तैयारी के लिए तैयार करना सहज होता है. इसीलिए यह एकेडमिक बेस (Education for Small Age Students) कक्षा 6 से दसवीं तक के स्टूडेंट्स में ही फाउंडेशन डिवीजन के नाम से चल रहा है. इनसे मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस का बेस बच्चों में तैयार किया जाता है.
5 सूत्रीय थीम पर हो रही स्टडी : अमित गुप्ता का मानना है कि क्लास 6 से लेकर 10वीं तक के विद्यार्थियों के यहां पर तैयारी करवाई जाती है. बच्चों को कॉम्पिटेटिव एग्जाम के लिए तैयार करवाया जाता है. यह पूरी तरह से एकेडमिक नहीं है. इसमें एप्टिट्यूड, स्किल्स डेवलपमेंट, एक्सपोजर और लैंग्वेज पर भी काम किया जाता है. इसके हम 5 सूत्रीय थीम कहते हैं. इसके परिणाम भी काफी उत्साहजनक हैं. इन बच्चों की मेडिकल व इंजीनियरिंग ही नहीं चार्टर्ड अकाउंटेंट या अन्य कोर्सेज में उनकी नींव काफी मजबूत होती है. बच्चों को पूरा शैक्षणिक वातावरण दिया जाता है. यूनिफॉर्म व स्टडी मटेरियल दिया जाता है. जैसे कि एक स्कूल में स्टडी होती है, वैसे ही यहां पर पढ़ाई की जाती है. बच्चों की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पर काम होता है.
क्लास से ही मेंटल एबिलिटी, रीजनिंग व लॉजिकल की स्टडी : स्टुडेंट्स को फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथमेटिक्स, बायोलॉजी, एसएसटी, हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत के अलावा विशेष रूप से मेंटल एबिलिटी, रीजनिंग, लॉजिकल प्रश्नों की तैयारी कराई जाती है. इन बच्चों के लिए लिटरेरी एक्टिविटीज करवाई जाती है. जिसमें लैंग्वेज डेवलपमेंट, क्विज, वर्कशॉप, इनडोर व आउटडोर स्पोर्ट्स एक्टिविटी, पिकनिक, मूवी, आउटडोर ट्रिप्स भी करवाई जाती है. साथ ही स्पोर्ट्स भी यहां पर करवाए जाते हैं.
देश में कॅरियर की राह ऑब्जेक्टिव एक्जाम पर : आईआईटी मुंबई से पासआउट और निजी कोचिंग में फाउंडेशन डिवीजन के हेड प्रशांत जैन का मानना है कि छोटी उम्र में ही अपने करियर को ऊंची उड़ान देने के लिए बड़ी संख्या में बच्चे यहां आ रहे हैं. ये बच्चे बड़ी उम्र में जेईई व नीट में अच्छे रिजल्ट दे रहे हैं. यहां पर देश के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों से बच्चे आ रहे हैं. यह बच्चे यहां पर कॉम्पिटेटिव एक्जाम की तैयारी करते हैं. भारत में हर कंपटीशन एग्जाम में मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन पूछे जाते हैं. यानी कि हर करियर का रास्ता ऑब्जेक्टिव एग्जाम के जरिए जाता है. इसमें यूपीएससी, आरपीएससी, सीए, सीएस, क्लैट या कोई भी एंट्रेंस एग्जाम ऑब्जेक्टिव होता है. ऑब्जेक्टिव एग्जाम की तैयारी ही फाउंडेशन कोर्स से करवाई जाती है. उन्होंने कहा कि हमारा बच्चा आगे कोई भी करियर स्ट्रीम को सेलेक्ट करे, वहां पर बेहतर ही परफॉर्म करते हैं.
जरूरी नहीं मेडिकल या इंजीनियरिंग में जाएं : आईआईटी मुंबई से पासआउट प्रशांत जैन का कहना है कि बच्चे अच्छे से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. ये साइंस, मैथ्स ओलंपियाड, केवीपीवाई, एनटीएसई, पीआरएमओ और आईजेएसओ की तैयारी और इनमें भाग भी लेते हैं. इन एग्जामिनेशंस में बच्चे अच्छा परफॉर्म करते हैं, तो उनका जेईई और नीट एग्जाम में काफी सुधार होता है. हालांकि इनमें से सभी जेईई व नीट की तैयारी करें यह जरूरी नहीं है. इन कोर्सेज की पढ़ाई कोटा में 35 से 55 हजार रुपए सालाना में हो रही है. जिनमें स्कूल की तर्ज पर ही बच्चों को पढ़ाया जाता है. इसमें 2 तरह की क्लासेज लगाई जाती हैं. जिनमें बच्चे स्कूल में जाकर सीधा कोचिंग में ही स्टडी कर लेते हैं. इसके अलावा कुछ बच्चे स्कूल के बाद सप्ताह में 3 दिन क्लासेस ले लेते हैं.
ज्यादातर स्टडी प्रैक्टिकली, न्यूज, थॉट्स और जनरल नॉलेज : फाउंडेशन कोर्स की बिल्डिंग इंचार्ज शलभ यादव का कहना है कि हमारी तो ज्यादातर क्लासेज प्रैक्टिकल बेस्ड होती है. बच्चों को पहले थ्योरी समझा दी जाती है. उसके बाद उसे प्रैक्टिकली पढ़ाया जाता है. डे-टू-डे लाइफ में साइंस का कैसे यूज होता है. उन्हें बता दिया जाता है. जिससे कि वह कनेक्ट कर सके. उदाहरण के रूप में जैसे एयर कंडीशन कैसे वर्क करता है, वह ऊपर क्यों लगाया जाता है, हीटर को नीचे क्यों रखा जाता है. जिससे बच्चे अपने आसपास फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायलॉजी को समझ सकें. बच्चों के लिए डाउट काउंटर भी शुरू रहते हैं. इसके अलावा बच्चों के लिए एक्टिविटी रूम भी हैं. जब स्टडी से थोड़े फ्री हैं, तो वहां जाकर रिफ्रेश हो सकते हैं. इनडोर गेम्स खेल सकते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों को सोशियली कनेक्शन रखने के लिए लगातार एक्टिविटी की जाती है. इसके अलावा क्लासेज के पहले होने वाली असेंबली में न्यूज़, थॉट्स और जनरल नॉलेज बच्चों को दी जाती है.
कोटा को बताया बच्चों के नींव मजबूत करने के लिए बेस्ट : मथुरा की रहने वाली सुमन चौधरी अपने सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे पुष्पेंद्र के साथ कोटा में रहती हैं. वह इसी साल मथुरा से कोटा बच्चे को लेकर आई है. यहां पर वह कॅरियर फाउंडेशन डिविजन की क्लासेज ले रहा है. पुष्पेंद्र का लक्ष्य डॉक्टर बनने का है. वह सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम 5:00 बजे तक यहीं पढ़ाई करता है.
इसी तरह से रावतभाटा निवासी खुशी (Expert Opinion on Students Career) कक्षा 9 में पढ़ रही है वह भी अपनी मां के साथ कोटा में रहती हैं. खुशी का कहना है कि वह दसवीं के बाद में बायोलॉजी लेना चाहती हैं. उनकी मां अनीता कहती हैं कि बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए हम यहां पर आए हैं. कोटा से अच्छी जगह नहीं है. कंपटीशन बच्चों में काफी टफ हो गया है. ऐसे में अब शुरुआत से ही उन्हें तैयारी कराना जरूरी हो गया है.
फाउंडेशन कोर्सेज में स्टूडेंट का 40 प्रतिशत का इजाफा : बीते 2 साल 2020 और 2021 कोविड-19 के चलते ऑफलाइन कोचिंग लगभग बंद रहे थे. इसके चलते फाऊंडेशन कोर्सेज करने वाले बच्चे भी ऑनलाइन ही अपनी पढ़ाई कर रहे थे. इस कारण बच्चों ने एडमिशन भी कम लिया था. हालांकि वर्ष 2019 में कोटा में करीब 7000 बच्चे थे, इस संख्या में 2022 में करीब 40 फीसदी का इजाफा हुआ है. इस साल बच्चे 10 हजार से ज्यादा हैं. जिनमें कोटा के सभी बड़े प्रमुख कोचिंग संस्थान शामिल हैं, जहां फाउंडेशन कोर्सज चल रहे हैं.
यह दो कारण भी कर रहे फाउंडेशन डिवीजन को मदद : होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का मानना है कि बड़े मेट्रो शहरों में रहने का खर्चा काफी ज्यादा हो जाता है. इसको लेकर भी कम उम्र के बच्चों को पेरेंट्स कोटा भेज रहे हैं. यहां वे हॉस्टल में रहते हैं या फिर अपने मां के साथ पीजी या फ्लैट में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. यहां पर हॉस्टल में 10 से 15 हजार में मासिक खर्च में रहना, खाना सहित सभी सुविधा मिल जाती है. जबकि फ्लैट में परिवार का खर्चा 20 से 25 हजार माहवार के आसपास होता है. इसकी अपेक्षा बड़े मेट्रो शहरों में इतने राशि में फ्लैट भी नहीं मिल पाता है. इसीलिए देश के ग्रामीण या कस्बों में रहते वाले अधिकांश पेरेंट्स अपने बच्चों को मेट्रो शहर में दाखिला कराने की जगह कॅरियर बनाने के लिए ऑप्शन के रूप में कोटा को चुन रहे हैं.
साथ ही कई स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो कि 11वीं और 12वीं में कोटा से मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस की कोटा से तैयारी कर रहे हैं. ऐसे बच्चे अपने छोटे भाई बहनों की पढ़ाई के लिए उन्हें भी साथ लेकर आ जाते हैं और फाउंडेशन डिवीजन में एडमिशन करा देते हैं. कुछ पेरेंट्स भी नीट और जेईई एंट्रेंस की तैयारी करने वाले बच्चों के साथ आते हैं. उनके छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को भी फाउंडेशन कोर्सज में दाखिला करा रहे हैं. ऐसे में बड़े बच्चें के साथ छोटे को भी एजुकेशन कोटा में मिल जाए, इसलिए परिवार यहां पर शिफ्ट हो रहे हैं.