कोटा. योग गुरु बाबा रामदेव के एलोपैथी पर दिए गए बयान पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आपत्ति जता दी और एलोपैथी वर्सेज आयुर्वेदिक एक विवाद छिड़ गया है. जिनमें हर तरफ से लगातार बयानबाजी का क्रम जारी है. कोटा के चिकित्सकों से ईटीवी भारत से बात की, तो किसी ने एलोपैथिक को अच्छा बताया तो किसी ने दोनों को. किसी चिकित्सक ने दोनों पद्धतियों को समान बताया है.
ऐसे में मेडिकल कॉलेज कोटा में नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. अशोक मीणा का कहना है कि बाबा रामदेव योग गुरु है. उनका काम योग सिखाने का है, न तो वह आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, न कोई डिग्री हासिल की हुई है. आयुर्वेद के बारे में भी वह ज्यादा नहीं जानते हैं, न होम्योपैथी के बारे में. इसके बावजूद एलोपैथी के बारे में गलत बयान दे रहे हैं. जबकि यह रिसर्च और साइंस तकनीक के आधार पर ही उपचार एलोपैथी से होता है. मरीज की जो क्रिटिकल कंडीशन होती है. उसके अनुसार एक्यूट ट्रीटमेंट दिया जाता है. ट्रॉमा होने पर मरीज की रोशनी तक चली जाती है. ऐसे में सर्जिकल ट्रीटमेंट भी जरूरी होता है. यह केवल एलोपैथी से ही संभव है.
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कोटा के ही चिकित्सक डॉ. संजीव सक्सेना का कहना है कि भारत में रहने वाले सभी लोग सभी पैथियों का सम्मान करते हैं. यह लड़ाई आयुर्वेद से किसी की नहीं है. आयुर्वेद ने इस देश को काफी कुछ दिया है. बाबा रामदेव ने आयुर्वेद की ठेकेदारी भी नहीं ली है. उन्होंने एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए कहा था. बहुत अच्छी बात है, लेकिन एलोपैथी का विरोध कर रहे हैं. इमरजेंसी में तो केवल एलोपैथी ही कारगर है और यही सहारा है. अगर सभी पैथियों को साथ लेकर चलेंगे, तो मरीज और देश के लिए अच्छा होगा. साथ ही उनका कहना है कि सुश्रुत देश के सबसे पहले सर्जन थे. आयुर्वेद से जुड़े थे, इसलिए हम उनका भी सम्मान करते हैं.
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डॉ. राकेश उपाध्याय का कहना है कि बाबा रामदेव को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था. क्योंकि एलोपैथी और आयुर्वेदिक अलग-अलग नहीं है. दोनों चिकित्सा की विधाएं हैं. होम्योपैथी भी हमारी ब्रांच है. हम हर पैथी के चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ या कोई भी अन्य व्यक्ति है, उसका सम्मान करते हैं. हर स्तर पर देश जब परेशानी को जाकर ढूंढ रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कोविड-19 से लड़ाई की बात कर रहे हैं. बच्चों की जान बचाने के लिए कह रहे हैं, तो इस तरह के विवादास्पद बयान देने से बाबा रामदेव को बचना चाहिए था, उनकी पर्सनालिटी को भी शोभा नहीं देता. मुझे विश्वास है कि वह अपने कथन पर खेद जताएंगे और बयान वापस लेंगे. डॉ. विनोद आहूजा का कहना है कि आयुर्वेदिक पद्धति हो या एलोपैथिक या यूनानी सभी में कुछ लिमिटेशन है और सभी में बहुत कुछ अच्छा भी है. जब किसी पद्धति का विरोध करके अपनी पद्धति को अच्छा बताया जाता है, तो यह बात सही नहीं है. सभी पद्धतियां अपने आप में बहुत कारगर है और कोई भी पद्धति किसी से कम नहीं है. क्रोमा ट्रॉमा की सिचुएशन में एलोपैथी ही कारगर है. आयुर्वेदिक का उसमें ज्यादा रोल नहीं है.
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डॉ. करनेश गोयल का कहना है कि यह जो पद्धति सब अपनी अपनी जगह है. आयुर्वेदिक बहुत पुरानी है. एलोपैथी नई और एडवांस है. दोनों का अलग-अलग उपयोग है. इमरजेंसी में केवल एलोपैथी चलेगी. एक्सीडेंट, स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज और कुछ भी हो जाए इसमें एलोपैथी ही काम करेगी. आयुर्वेदिक कोई काम नहीं कर पाएगी. यह विवाद जबरदस्ती छेड़ा गया है. इसका कोई मतलब नहीं है. बाबा रामदेव को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था. आयुर्वेद भी अपनी जगह सही है. एलोपैथी भी बहुत अच्छी है.