जोधपुर. आमतौर पर दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा में सोन-चांदी, जेवरात और नगदी से सभी जगह पूजा की जाती है, लेकिन आम चलन से विपरित जोधपुर के श्रीमाली समाज दिवाली में शमी के वृक्ष की मिट्टी से पूजा करता है. खास बात यह है कि यह मिट्टी शहर के चांदपोल क्षेत्र स्थित गोवर्धन तालाब की ही होती है. श्रीमाली समाज के लोगों में मान्यता है कि सोना चांदी सभी पृथ्वी की देन है. यानी पृथ्वी में ही धन होता है. ऐसे में पृथ्वी की मिट्टी की पूजा श्रेष्ठतम होती है. इसलिए ये लोग पहले प्रकृति पूजा करते हैं. इस कड़ी में शुक्रवार को भी सुबह से ही लोग गोवर्धन तालाब पहुंचे और वहां पर पूजा अर्चना करने के बाद मिट्टी घर ले गए.
समाज के लोगों का कहना है कि मिट्टी ले जाने की परंपरा वर्षो पुरानी है उनके पूर्वज भी लगातार यह क्रम दोहराते रहे हैं और जिसे वे खुद भी लगातार अपने बच्चों के साथ दोहरा रहे हैं, जिससे कि समाज की संस्कृति बनी रहे. पिछले कुछ वर्षों से श्रीमाली समाज के अलावा क्षेत्र से जुड़े अन्य लोग भी इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं. उनका भी मानना है कि यह पुरानी परंपरा है, जिससे लोगों को ऐश्वर्य प्राप्त होता है. वहीं शमी वृक्ष विषय खेजड़ी के नाम से जाना जाता है. यह राजस्थान का राज्य वृक्ष है. इसकी कटाई पर भी प्रतिबंध है. यह वृक्ष अकाल के दौरान भी पशुओं को चारा प्रदान करता है, जिसके चलते किसान भी इसकी पूजा करते हैं.
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श्रीमाली समाज के चारु जोशी का कहना है कि वह मिट्टी को सोना की तरह मानती है. इसलिए वह मिट्टी की पूजा करने के बाद दिवाली मनाती है. वहीं हेमलता को इसकी मान्यता के बारे पता नहीं है, लेकिन वे परंपरा के अनुसार मिट्टी लाकर दिवाली के दिन पूजा करती है. इस चलन के बारे में शिव प्रकाश का कहना है कि ये सिर्फ मिट्टी नहीं, बल्कि यह लक्ष्मी का रूप है. वह इसकी पूजा करते हैं और 12 महीने सुख समृद्धि की कामना करते हैं.
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वहीं विजय लक्ष्मी का कहना है कि मिट्टी की पूजा करने से मां लक्ष्मी और धन कुबेर दोनों की पूजा हो जाती है. उनका कहना है कि धन पृथ्वी के अंदर होता है. इस लिए मिट्टी की पूजा करने से धन की वृद्धि होती है. जिज्ञासा बोहरा का कहना है कि दूसरे समाज की तरह उनके समाज में सोने चांदी की जगह मिट्टी की पूजा की जाती है. जो भी हो एक मायने में इस समाज का दिवाली अन्यों की अपेक्षा अलग और विशेष अवश्य है.