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जोधपुर के डॉ. नरेंद्र भंडारी बने NASA की टीम का हिस्सा, 4.5 बिलियन वर्ष पुराने एस्टेरॉइड के नमूनों की करेंगे जांच - asteroid Bennu

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के स्पेसक्राफ्ट ओसिरिस रेक्स ( Osiris-Rex) ने सफलता पूर्वक 4.5 बिलियन साल पुराने एस्टेरॉइड को छू लिया है. इस दौरान भुजा में लगे उपकरणों ने बेनू की धूल मिट्टी और चट्टानों के नमूने कितने लिए है, इसका अभी खुलासा होना बाकी है, लेकिन नासा ने इसे नमूने लेने के प्रयास को सफल बताया है. इसरो से जुड़े जोधपुर के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र भंडारी बेनू के जो नमूने नासा को मिलेंगे उसके अध्ययन करने वाली टीम का हिस्सा है.

Scientist of Jodhpur Dr. Narendra Bhandari, जोधपुर के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र भंडारी
डॉ. नरेंद्र भंडारी
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Published : Oct 21, 2020, 12:20 PM IST

जोधपुर. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के स्पेसक्राफ्ट ओसिरिस रेक्स ( Osiris-Rex) ने सफलता पूर्वक 4.5 बिलियन साल पुराने एस्टेरॉइड (Asteroid Bennu) को छू लिया है. अमेरिकी समय के अनुसार मंगलवार रात डेढ़ बजे भारतीय समयनुसार बुधवार तड़के स्पेसक्राफ्ट ने मंगल और बृहस्पति के मध्य चक्कर लगा रहे एस्टेरॉईड को छुआ. इसके लिए स्पेसक्राफ्ट की 11 फुट भुजा ने बेनू के जिस हिस्से को छुने के लिए चिह्नित किया था उसकी सतह पर 5 से दस सेकेंड के लिए टच किया.

इस दौरान भुजा में लगे उपकरणों ने बेनू की धूल मिट्टी और चट्टानों के नमूने कितने लिए है. इसका अभी खुलासा होना बाकी है, लेकिन नासा ने इसे नमूने लेने के प्रयास को सफल बताया है. ओसिरिस रेक्स 2023 में पृथ्वी पर आएगा इस दौरान वह ऐसे सिर्फ तीन प्रयास कर सकता है. क्योंकि नमूने लेने में नाइट्रोजन का प्रयोग होगा जिसके प्रेशर से नमूने लिए जाएंगे. इस गैस की तीन बोतल ही स्पेसक्राफ्ट में है. जिस तरह से फाइटर जेट के किसी सड़क पर उतरने के लिए टच एंड गो शब्दावली का प्रयोग किया जाता है. इसी तरह से नासा ने भी इसे टच एंड गो प्रक्रिया के आधार पर ही अपने मिशन को पूरा किया है.

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खास बात यह है कि इस परियोजना में जोधपुर के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. इसरो से जुड़े जोधपुर के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र भंडारी बेनू के जो नमूने नासा को मिलेंगे उसके अध्ययन करने वाली टीम का हिस्सा है. यह टीम नमूनों के आधार पर वहां के वातावरण और बेनू के निर्माण के कारणों का पता लगाएगी. अगर नासा को नमूने मिल जाते हैं तो स्पेसक्राफ्ट में मौजूद संवदेनशील सेंसर से उनकी प्रकृति के अध्ययन शुरू होगा. नासा ने भी इस सफल अभियान की जानकारी जारी करते हुए इसे सफल मिशन करार दिया है. जो अंतरिक्ष के नए रहस्य खोल सकता है. बेनू सूर्य से 105 मिलियन मील दूर चक्कर लगाता है. जबकि पृथ्वी सूर्य से 93 मिलियन दूरी की कक्षा में परिक्रमा कर रही है.

पढ़ेंः रामेश्वर डूडी के घर पर बदमाशों के हमले पर राजेन्द्र राठौड़ बोले- गृहमंत्री और मुख्यमंत्री गहलोत पूरी तरह विफल

बेनू और पृथ्वी के परिभ्रमण के दौरान प्रत्येक 6 साल में बेनू की पृथ्वी से दूरी घट रही है. वैज्ञानिकों को मानना है कि आने वाली सदी में बेनू पृथ्वी से टकरा भी सकता है. नासा ने जिस जगह से नमूने लिए उसे नाईट एंगल और एक उंची जगह को मांउट डूम नाम दिया है. नासा के अनुसार बेनू का निर्माण 4.5 बिलियन साल पूर्व हुआ था. वह समय था जब पृथ्वी के सोलर सिस्टम का भी निर्माण हुआ था. इसलि बेनू को टाइम केप्सूल माना जा रहा है. जिसके मिट्टी और अन्य नमूनों से पृथ्वी के भी कई रहस्य सामने आ सकते है. उल्लेखनीय है कि नासा इससे पहले अंतरिक्ष के कई नमूने ले चुका है, लेकिन पहली बार किसी एस्टेरॉइड के नमूने लेने का प्रयास किया गया है.

जोधपुर. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के स्पेसक्राफ्ट ओसिरिस रेक्स ( Osiris-Rex) ने सफलता पूर्वक 4.5 बिलियन साल पुराने एस्टेरॉइड (Asteroid Bennu) को छू लिया है. अमेरिकी समय के अनुसार मंगलवार रात डेढ़ बजे भारतीय समयनुसार बुधवार तड़के स्पेसक्राफ्ट ने मंगल और बृहस्पति के मध्य चक्कर लगा रहे एस्टेरॉईड को छुआ. इसके लिए स्पेसक्राफ्ट की 11 फुट भुजा ने बेनू के जिस हिस्से को छुने के लिए चिह्नित किया था उसकी सतह पर 5 से दस सेकेंड के लिए टच किया.

इस दौरान भुजा में लगे उपकरणों ने बेनू की धूल मिट्टी और चट्टानों के नमूने कितने लिए है. इसका अभी खुलासा होना बाकी है, लेकिन नासा ने इसे नमूने लेने के प्रयास को सफल बताया है. ओसिरिस रेक्स 2023 में पृथ्वी पर आएगा इस दौरान वह ऐसे सिर्फ तीन प्रयास कर सकता है. क्योंकि नमूने लेने में नाइट्रोजन का प्रयोग होगा जिसके प्रेशर से नमूने लिए जाएंगे. इस गैस की तीन बोतल ही स्पेसक्राफ्ट में है. जिस तरह से फाइटर जेट के किसी सड़क पर उतरने के लिए टच एंड गो शब्दावली का प्रयोग किया जाता है. इसी तरह से नासा ने भी इसे टच एंड गो प्रक्रिया के आधार पर ही अपने मिशन को पूरा किया है.

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खास बात यह है कि इस परियोजना में जोधपुर के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. इसरो से जुड़े जोधपुर के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र भंडारी बेनू के जो नमूने नासा को मिलेंगे उसके अध्ययन करने वाली टीम का हिस्सा है. यह टीम नमूनों के आधार पर वहां के वातावरण और बेनू के निर्माण के कारणों का पता लगाएगी. अगर नासा को नमूने मिल जाते हैं तो स्पेसक्राफ्ट में मौजूद संवदेनशील सेंसर से उनकी प्रकृति के अध्ययन शुरू होगा. नासा ने भी इस सफल अभियान की जानकारी जारी करते हुए इसे सफल मिशन करार दिया है. जो अंतरिक्ष के नए रहस्य खोल सकता है. बेनू सूर्य से 105 मिलियन मील दूर चक्कर लगाता है. जबकि पृथ्वी सूर्य से 93 मिलियन दूरी की कक्षा में परिक्रमा कर रही है.

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बेनू और पृथ्वी के परिभ्रमण के दौरान प्रत्येक 6 साल में बेनू की पृथ्वी से दूरी घट रही है. वैज्ञानिकों को मानना है कि आने वाली सदी में बेनू पृथ्वी से टकरा भी सकता है. नासा ने जिस जगह से नमूने लिए उसे नाईट एंगल और एक उंची जगह को मांउट डूम नाम दिया है. नासा के अनुसार बेनू का निर्माण 4.5 बिलियन साल पूर्व हुआ था. वह समय था जब पृथ्वी के सोलर सिस्टम का भी निर्माण हुआ था. इसलि बेनू को टाइम केप्सूल माना जा रहा है. जिसके मिट्टी और अन्य नमूनों से पृथ्वी के भी कई रहस्य सामने आ सकते है. उल्लेखनीय है कि नासा इससे पहले अंतरिक्ष के कई नमूने ले चुका है, लेकिन पहली बार किसी एस्टेरॉइड के नमूने लेने का प्रयास किया गया है.

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