जोधपुर. कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका के बीच सरकार ने कोरोना की नई गाइड लाइन जारी की. जिसके मुताबिक सामूहिक आयोजनों पर कई तरह की पाबंदियां हैं. ये पाबंदियां सिर्फ आम-जन के लिए हैं. क्योंकि पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने जिस तरह से महंगाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, उसमें कहीं भी कोरोना गाइड लाइन का पालन नजर नहीं आया.
जोधपुर में तो हद ही हो गई. वैभव गहलोत ने साइकिल रैली निकाली थी. रैली में सैंकड़ों की तादाद में कार्यकर्ता जुटे. सोशल डिस्टेंसिंग को धता बताते हुए निकाली गई इस रैली पर महामारी एक्ट लागू कैसे होता ? क्योंकि प्रदेश के मुखिया का बेटा रैली की अगुवाई कर रहा था. ऐसे में पूरा पुलिस प्रशासन रैली के दौरान वैभव की सुरक्षा में तैनात नजर आया.
सत्ता का अपना रसूख होता है. बात अगर वैभव की साइकिल रैली तक सीमित रहती तो ठीक था. लेकिन ऐसी ही साइकिल रैली जोधपुर में दलित समाज की ओर से एक दिन पहले निकाली गई थी. उस रैली पर पुलिस ने आंखें टेढ़ी कर ली. रैली में शामिल दलितों पर महामारी एक्ट लगा दिया गया. इतना ही नहीं बल्कि मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया.
दरअसल, महात्मा गांधी अस्पताल की मोर्चरी में चार दिनों से तुलसीराम खटीक का शव रखा है. चार दिन पहले बनाड थाना क्षेत्र में कबाड़ की एक दुकान में आग लग गई थी. इस आग में जलने से तुलसीराम की मौत हो गई. परिजनों ने आरोप लगाया कि तुलसीराम की हत्या करने के बाद उसे जला दिया गया. शव नहीं उठाने पर हत्या का मामला दर्ज किया गया. अब परिजन और समाज के लोग हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. इसी मांग को लेकर दलित समाज ने शुक्रवार को जोधपुर शहर में साइकिल रैली निकाली. रैली चूंकि आम दलितों की थी, वैभव की तरह उनका कोई वैभवशाली रसूख तो था नहीं. लिहाजा शहर की महामंदिर पुलिस ने महामारी अधिनियम सहित धारा 144 के उल्लंघन का मामला दर्ज कर लिया.
थाने के सब इंस्पेक्टर कैलाश पंचारिया ने यह मामला दर्ज किया. दलित समाज के कई पदाधिकारियों पर मामला दर्ज कर लिया गया. अब दलित समाज के लोग कह रहे हैं कि वैभव की साइकिल रैली में धारा 144 की धज्जियां उड़ाई गई. सोशल डिस्टेंस का मजाक बनाया गया. लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. खटीक समाज के सुरेश सामरिया कहते हैं कि पुलिस को दलितों की ही रैली में नियम टूटते नजर आते हैं, वैभव की रैली उन्हें नियम विरुद्ध नहीं लगती. सामरिया ने कहा कि हमारे समाज के एक व्यक्ति की हत्या हो गई. समय पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की. पुलिस का रवैया ठीक नहीं था.
वैभव का मामला चूंकि सीधे तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से जुड़ रहा है. अशोक गहलोत गृह मंत्री भी हैं. ऐसे में दलितों ने पुलिस पर भेदभाव का जो आरोप लगाया है वह सरकार पर सवाल खड़े करता है. ऐसे में पुलिस को मुखिया का बचाव करना ही था. हालांकि जोधपुर पुलिस के अधिकारी मौन हैं. कोई भी यह बताने को तैयार नहीं है कि वैभव गहलोत को साईकिल रैली के लिए अनुमति दी गई थी या नही ? अगर बिना अनुमति रैली की गई तो वैभव पर भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए. अगर अनुमति दी गई थी तो पुलिस और प्रशासन पर सवाल उठता है. क्योंकि नई गाइड लाइन के अनुसार अनुमति नहीं दी जा सकती.
इतना ही नहीं पुलिस के आला अधिकारी वैभव गहलोत की सुरक्षा में मौजूद भी रहे. एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि हमने कोविड उल्लंघन को लेकर कांग्रेस की रैली के कार्यकर्ताओं के सोशल डिस्टेंसिंग के चालान काटे थे. कुल मिलाकर पुलिस ऐसा कहकर अपना दामन बचाना चाहती है. लेकिन गृह मंत्री के बेटे की रैली में चालान काटना स्वीकर करके कौन सरकार से बैर मोल ले, इसलिए नाम बताने से भी बच रहे हैं.
कुल मिलाकर, कोरोना की नई गाइड लाइन के मुताबिक सामूहिक कार्यक्रमों को अनुमति नहीं दी जा सकती. लेकिन महंगाई के विरोध में कांग्रेस अपनी ही गाइड लाइन भूल चुकी है. कोरोना मैनेजमेंट को लेकर अपनी पीठ थपथपाने वाले मुख्यमंत्री के बेटे और आम जनता के लिए नियम अलग-अलग कैसे हो सकते हैं. या तो दोनों रैलियों को छूट दी जानी चाहिए थी, या फिर दोनों पर पुलिस को समान कार्रवाई करनी चाहिए थी.